इफत कुरैशी की रिपोर्ट
हिंदी सिनेमा में फिल्में तो खूब बनीं, लेकिन पाकीजा जैसी आला दर्जे की फिल्म न कभी बनी और न उसे बनाने वाले कमाल अमरोही की तरह कोई शख्सियत रही। जिद, गुस्से, अहंकारी और परफेक्शन में माहिर कमाल अमरोही का नाम आज भी सुनहरे अक्षरों में हिंदी सिनेमा में दर्ज है। कमाल 45 सालों में महज 4 फिल्में ही बना सके, लेकिन जो बनाईं, वो कभी कोई भूल नहीं सका। उनकी परफेक्शन की भूख इस कदर थी कि सिर्फ पाकीजा बनाने में उन्होंने अपनी जिंदगी के 18 साल और सब कुछ दांव पर लगा दिया।
हीरोइन भी कई थीं, लेकिन उन्होंने तलाक के बावजूद, जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहीं मीना कुमारी को ही फिल्म में लिया। ये उनकी जिद ही थी, जो एक खत से अस्पताल में भर्ती मीना कुमारी सेट पर आने को राजी हो गईं, जबकि उनकी बिगड़ी हालत का कारण कमाल अमरोही को ही समझा जाता था।
परफेक्शन ऐसा कि सिर्फ सेट पर शाही माहौल बनाने के लिए 433 मुर्गे और 45 बकरे कटवा दिए थे।
गुस्से के इतने तेज थे कि मीना कुमारी जैसी स्टार को भरी महफिल में बातें सुनाने से नहीं झिझकते थे, अहंकारी ऐसे कि मीना कुमारी का पति कहलाए जाने पर गवर्नर के सामने पत्नी से लड़ बैठे थे। कभी पत्नी की जासूसी करवाई, कभी उस पर पाबंदिया लगवाईं तो कभी अपने असिस्टेंट से सरेआम थप्पड़ लगवाया।
आज कमाल अमरोही को गुजरे 31 साल बीत चुके हैं। उनकी 31वीं पुण्यतिथि के मौके पर पढ़िए उनकी जिद, हुनर, मोहब्बत, अहंकार, गुस्से और परफेक्शन की भूख से जुड़े चुनिंदा किस्से-
बचपन में मां से कहा था तुम्हारा पल्लू चांदी के सिक्कों से भर दूंगा
सय्यैद आमिर हैदर कमाल नकवी, जिसे हिंदी सिनेमा का इतिहास कमाल अमरोही नाम से जानता है। इनका जन्म 17 जनवरी 1918 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था। ये अमरोहा से थे तो इन्होंने अपना सरनेम पहले अमरोहवी किया और फिर अमरोही। ये उर्दू शायरों के खानदान से ताल्लुक रखते थे।
पाकिस्तान के मशहूर राइटर जौन एलिया और रईस अमरोहवी इनके कजिन हैं। शायरी और लिखने का गुर इन्हें विरासत में ही मिला था, लेकिन इनके पिता इस पेशे के खिलाफ थे। शरारती इतने थे कि पूरा गांव इनकी बदमाशियों से परेशान रहता था। एक दिन जब मां ने शरारत करने पर डांट लगा दी तो इन्होंने वादा किया कि एक दिन मैं इतना कामयाब बनूंगा कि तुम्हारा पल्लू चांदी के सिक्कों से भरा होगा।
16 की उम्र में बहन के कंगन लेकर घर से लाहौर भाग गए
कमाल राइटर बनना चाहते थे, लेकिन पिता इसके लिए राजी नहीं थे। एक दिन बदमाशियों से परेशान बड़े भाई रजा हैदर ने उन्हें थप्पड़ मारा तो नाराजगी में उन्होंने पहले खुद को कमरे में बंद कर लिया और फिर कुछ घंटों बाद घर छोड़ दिया। उस समय ये महज 16 साल के थे। पैसे नहीं थे तो उन्होंने घर से ही बहन के चांदी के कंगन चोरी कर लिए और लाहौर चले गए।
लाहौर में अपने रिश्तेदारों की मदद से उन्हें एक लोकल उर्दू मैग्जीन में लिखने का मौका मिला। दो साल में इनका काम इतना बेहतरीन हो गया कि मालिक ने खुश होकर उनकी तनख्वाह 300 रुपए कर दी। 30 के दशक में ये रकम काफी ज्यादा थी। नौकरी से अच्छी कमाई होने लगी तो उन्होंने पारसी और उर्दू भाषा में ऑरिएंटल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इतना बेहतरीन लिखते थे कि पूरे कॉलेज में उनके चर्चे थे।
खाली डायरी देखकर सुना दी फिल्म की कहानी
उन दिनों के.एल. सहगल भी लाहौर आया-जाया करते थे क्योंकि यहां उनका एक करीबी दोस्त रहता था। एक दिन जब के.एल. सहगल ने उनकी लिखावट देखी तो वो खुश होकर उन्हें अपने साथ बॉम्बे (अब मुंबई) ले आए। यहां उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर फिल्मकार सोहराब मोदी से हुई, जो प्रोडक्शन हाउस मिनर्वा मूवीटोन के मालिक थे।
सोहराब मोदी ने मुलाकात के दौरान कमाल को अपनी स्क्रिप्ट के साथ ऑफिस बुलाया। उनके पास लिखी हुई स्क्रिप्ट नहीं थी तो वो एक खाली डायरी लेकर ऑफिस पहुंचे, क्योंकि वो जानते थे कि ऐसे ही कहानी सुनाने पर बात नहीं बनेगी। जब सोहराब मोदी ने उनसे कहानी सुनाने को कहा, तो वो खाली डायरी देखकर कहानी सुनाने लगे। वो कहानी सोहराब मोदी को पसंद आई, तो उन्होंने डायरी मांग ली। जैसे ही उन्होंने डायरी के खाली पन्ने देखे, तो वो दंग रह गए, लेकिन इस झूठ में ही सोहराब मोदी, कमाल अमरोही का हुनर भांप गए। उन्होंने कमाल को 750 रुपए देकर उनके साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया।
कमाल अमरोही पारसी थिएटर से काफी प्रभावित थे। उन्होंने इससे प्रेरित होकर फिल्म सेट में लाइटिंग और म्यूजिक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना शुरू किया। बतौर डायरेक्टर इनकी पहली फिल्म 1949 की महल रही। ये भारतीय सिनेमा की पहली हॉरर फिल्म मानी जाती है। मधुबाला फिल्म की हीरोइन चुनी गईं, लेकिन पहले कोई हीरोइन फिल्म करने को राजी नहीं हुई थी, क्योंकि ये नए डायरेक्टर थे।
फिल्म जबरदस्त हिट साबित हुई, जिसने मधुबाला और लता मंगेशकर को भी हिंदी सिनेमा में पहचान दिलाई। फिल्म के लिए गाया लता का गाना “आएगा, आएगा आनेवाला” उनका पहला हिट गाना था। पहली ही फिल्म ने कमाल को बतौर डायरेक्टर स्थापित कर दिया। इस फिल्म का 4 मिनट का गाना मुश्किल है बहुत मुश्किल है कमाल अमरोही ने सिंगल टेक में बनाया था।
पहली फिल्म हिट होते ही लॉन्च किया प्रोडक्शन हाउस
फिल्म महल के हिट होते ही कमाल अमरोही ने 1953 में कमाल पिक्चर्स प्रोडक्शन हाउस की शुरुआत की। वहीं इनका दूसरा प्रोडक्शन हाउस कमालिस्तान स्टूडियो था। पहले प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले ही इन्होंने मीना कुमारी को लेकर पहली फिल्म दायरा (1955) बनाई थी। ये फिल्म इन्होंने अपने और मीना कुमारी के रिश्ते पर बनाई थी, लेकिन अफसोस कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट न हो सकी।
जद्दनबाई की नौकरानी से की थी पहली शादी
कमाल अमरोही ने पहली शादी बिलकिस बानो से की थी, जो सिंगर जद्दनबाई (नरगिस की मां) की नौकरानी थी। पहली पत्नी का चंद सालों में ही निधन हो गया तो इन्होंने जमाल हसन की बेटी सईदा अल-जहरा मेहमूदी से दूसरी शादी कर ली। दूसरी पत्नी के होते हुए मीना कुमारी इनकी तीसरी पत्नी बनी थीं।
5 साल की मीना से हुई थी पहली बार मुलाकात
कमाल अमरोही की मीना कुमारी से पहली मुलाकात तब हुई थी जब वो महज 5 साल की थीं और इन्हें चाइल्ड आर्टिस्ट की जरूरत थी। उस समय तो बात नहीं बनी, लेकिन फिर 14 साल बाद अशोक कुमार ने दोनों की मुलाकात करवाई। दोनों की उम्र में 19 सालों का फासला था और कमाल पहले ही दो शादियां कर 3 बच्चों के पिता थे।
मीना फिल्म अनारकली में काम कर रही थीं, लेकिन एक रोड एक्सीडेंट के चलते उन्हें वो फिल्म छोड़नी पड़ी। जब वो अस्पताल में भर्ती थीं तो कमाल ने उनका खूब ख्याल रखा। आए दिन वो अस्पताल फूल लेकर पहुंचते थे और घंटों बातें करते थे। जब मुलाकात नहीं होती तो ये उनके लिए खत भेज दिया करते थे।
क्लिनिक जाने के बहाने की थी मीना कुमारी से शादी
मीना के पिता काफी सख्त थे, जो उन्हें अकेले बाहर जाने की इजाजत नहीं देते थे। फिजियोथेरेपी के लिए भी उन्हें छोटी बहन मधु के साथ रोज 8 बजे क्लिनिक छोड़ते और 10 बजे लेने आते। मीना जानती थीं कि उनके पिता इस शादी के लिए राजी नहीं होंगे। ऐसे में दोनों ने चोरी-छिपे शादी करने का फैसला किया।
14 फरवरी 1952 वैलेंटाइंस डे पर मीना और बहन मधु को पिता क्लिनिक छोड़कर निकल गए। पिता के जाते ही कमाल ने दोनों को पिक किया और शादी कर ली। इस शादी के लिए उन्हें सुबह 8 से 10 बजे के बीच महज 2 घंटे का समय ही मिला था। शादी होते ही दोनों पिता के पहुंचने से पहले क्लिनिक पहुंच गए।
शादी को सीक्रेट रखने के लिए दोनों साथ नहीं रहते थे। एक दिन जब मीना के पिता को शादी का पता चला तो उन्होंने तलाक का दबाव बनाया, लेकिन दोनों नहीं माने। आखिरकार पिता ने मीना को घर से निकाल दिया। वो कमाल के पास रहने आ गईं।
असिस्टेंट से मीना पर रखवाते थे नजर
कमाल अमरोही ने मीना को इन शर्तों पर फिल्मों में काम करने की इजाजत दी कि उन्हें शाम 6.30 बजे घर लौटना होगा, खुद की कार से आना होगा और उनके मेकअप रूम में कभी कोई आदमी नहीं आएगा। इसके अलावा कमाल का असिस्टेंट बकर अली उन पर नजर रखता था। सख्तियों से परेशान मीना को कई लोगों ने साहिब बीवी और गुलाम के सेट पर रोते देखा था।
गुस्से में प्रोड्यूसर में अपनी जगह लिखवा दिया था असिस्टेंट का नाम
कमाल बेहद गुस्सैल थे। परफेक्शन की चाह में कई लोग उनके गुस्से के शिकार भी हुए। इन्होंने 1960 की फिल्म दिल अपना और प्रीत पराई प्रोड्यूस की थी। फिल्म के डायरेक्टर किशोर साहू ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में इन्हें स्वार्थी और अभिमानी कहा। उन्होंने लिखा कि फिल्म की फाइनल एडिटिंग से नाखुश कमाल इसे बदलवाना चाहते थे, लेकिन दूसरे कलाकार इसके खिलाफ थे।
जब लोगों ने उनकी बात नहीं मानी तो इन्होंने फिल्म की रिलीज रुकवा दी। जब मीना कुमारी और दूसरे कलाकारों ने जिद की तो कमाल ने प्रोड्यूसर में अपनी जगह अपने असिस्टेंट बकर अली का नाम लिखवा दिया। हालांकि सालों बाद फिल्म हिट होने पर इन्होंने दोबारा अपना नाम देना शुरू कर दिया।
करियर बचाने के लिए लिखी थी पाकीजा की कहानी
फिल्म दायरा के फ्लॉप होने पर कमाल अमरोही अपने करियर को लेकर परेशान थे। दूसरी तरफ उन्हें मीना के लिए एक बेहतरीन फिल्म बनानी थी। उन्होंने 1956 के मई-जुलाई में महाबलेश्वर जाकर फिल्म पाकीजा का स्क्रीनप्ले लिख डाला। फिल्म लिखते हुए ये हर डायलॉग मीना कुमारी को सुनाकर उनसे सुझाव लिया करते थे।
मीना का पति कहलाने पर नाराज हुए थे कमाल
एक कार्यक्रम के दौरान जब सोहराब मोदी ने मुंबई के गवर्नर से कमाल और मीना का परिचय करवाया तो वो खूब गुस्सा हुए। दरअसल सोहराब ने कहा था, ये मीना कुमारी हैं और ये उनके पति कमाल। कमाल ने तुरंत टोका और कहा, जी नहीं, मैं कमाल अमरोही हूं और ये मेरी पत्नी मीना। गुस्से में कमाल कार्यक्रम छोड़कर तुरंत निकल गए और मीना को सबके सामने शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।
मीना कुमारी के खर्च का एक-एक हिसाब रखते थे कमाल
शादी के बाद कमाल अमरोही ही मीना की कमाई का हिसाब रखते थे। दोनों का पहला झगड़ा 2 रुपए के लिए हुआ था। जब मीना ने अपनी मालिशवाली औरत के 2 रुपए बढ़ाने को कहा तो कमाल ने ये कहकर इनकार कर दिया कि तुम्हें मालिश की जरूरत नहीं है। दोनों का झगड़ा इतना बढ़ गया कि मालिश वाली को नौकरी से निकाल दिया गया। ये किस्सा अन्नू कपूर ने टीवी शो सुहाना सफर में सुनाया था।
अवॉर्ड सेरेमनी में मीना का पर्स छोड़ा, कहा- आज पर्स उठाता, कल चप्पल
1955 की फिल्म परिणीता के लिए मीना कुमारी को बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। मीना अवॉर्ड फंक्शन में कमाल के साथ बैठी थीं। जब अवॉर्ड लेने वो स्टेज पर गईं तो पर्स कुर्सी पर ही छूट गया। घर आए तो मीना को पता चला कि पर्स वहीं छूट गया। कुछ समय बाद एक्ट्रेस निम्मी, मीना का पर्स लौटाने आईं। जब मीना ने कमाल से पूछा कि क्या आपको पर्स नहीं दिखा? जवाब मिला- दिखा था, लेकिन मैंने उठाया नहीं। आज तुम्हारा पर्स उठाता, कल चप्पल।
असिस्टेंट ने हाथ उठाया तो रिश्ता टूटा
कमाल ने अपने असिस्टेंट बकर अली को इतनी छूट दे रखी थी कि एक दिन उसने मीना को सरेआम थप्पड़ मार दिया। कारण था उनके मेकअप रूम में गुलजार का दाखिल होना। जब उन्होंने रोते हुए कमाल को कॉल किया तो उनकी शिकायत तक नहीं सुनी गई। आखिरकार उन्होंने कमाल का घर छोड़ दिया।
तलाक से रुक गई आइकॉनिक फिल्म पाकीजा
कमाल-मीना ने 1964 में तलाक ले लिया। 1954 में फिल्म आजाद की शूटिंग के दौरान कमाल ने मीना के सामने पाकीजा बनाने का प्रस्ताव रखा था। जिस पर कमाल अमरोही ने काम शुरू कर दिया था, लेकिन जैसे ही दोनों का तलाक हुआ तो पाकीजा फिल्म रुक गई।
अस्पताल में भर्ती मीना को खत लिखकर पाकीजा पूरी करने की विनती की
कमाल अमरोही से अलग होने के बाद मीना कुमारी शराब की आदी हो चुकी थीं। लगातार शराब पीने से मीना कुमारी बीमार रहने लगी थीं। 1968 में मीना कुमारी को लिवर सिरोसिस का पता चला। जून 1968 में ही मीना इलाज के लिए लंदन और स्विट्जरलैंड गईं। एक महीने बाद सितंबर में वो रिकवर होकर लौटीं जरूर, लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं हुईं। मीना को बताया जा चुका था कि उनके पास ज्यादा दिन नहीं है।
कमाल अमरोही ठान चुके थे कि वो मीना कुमारी के साथ ही फिल्म पाकीजा बनाएंगे। एक दिन कमाल अमरोही ने अस्पताल में भर्ती मीना कुमारी को खत लिखा, जिसमें उन्होंने विनती की थी कि मीना फिल्म पाकीजा पूरी करें।
आखिरकार, स्वाभिमानी पति को विनती करते देख मीना ने वादा पूरा करने का फैसला कर लिया। बीमारी के बीच ही 1969 में मीना कुमारी पाकीजा के सेट पर लौट आईं और शूटिंग शुरू कर दी। सेट पर पहुंचकर मीना कुमारी, कमाल अमरोही का हाथ पकड़कर खूब रोई थीं।
1 रुपए में मीना कुमारी ने की पाकीजा फिल्म
पति की फिल्म करने के लिए मीना कुमारी ने महज 1 रुपए फीस ली थी। ये फिल्म कमाल की तरफ से उनके लिए ट्रिब्यूट थी, ऐसे में उनके कैरेक्टर पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया था। वो खुद हीरोइन के लिए कपड़े डिजाइन करवाते थे।
फिल्म टलती गई और उम्र ढलती गई
1954 में जब फिल्म बननी शुरू हुई तो अशोक कुमार को लीड रोल दिया गया था, लेकिन 10 साल बाद उनकी उम्र बढ़ चुकी थी। ऐसे में अशोक कुमार की जगह सलीम के रोल में राजकुमार को साइन कर लिया, वहीं अशोक कुमार को शहाबुद्दीन का रोल दिया गया। शराब की आदी हो चुकीं मीना कुमारी की तबीयत भी नासाज रहने लगी थी। उन्हें आए दिन ट्रीटमेंट के लिए शूटिंग छोड़कर जाना पड़ता था। उनकी नामौजूदगी में उनकी बॉडी डबल के साथ शूटिंग की जाती थी।
पाकीजा के लिए मंगवाए गए थे असली इत्र
फिल्म के कई सीन के लिए कमाल अमरोही ने असली इत्र मंगवाए। लोगों ने सेट पर मजाक उड़ाते हुए कहा था कि आप इसके बदले कुछ भी इस्तेमाल कर लेते। कैमरे में क्या पता चलेगा। इन्होंने जवाब दिया, कैमरे में खुशबू तो कैद नहीं होगी, लेकिन इस खुशबू से कलाकारों के चेहरे का एक्सप्रेशन अच्छा और असली आएगा।
स्काईलाइन का घंटों इंतजार किया, तब बना गाना मौसम है आशिकाना
एक दिन मुंबई से ऊटी जाते हुए इन्होंने कार से बाहर एक स्काईलाइन देखी और अपनी डायरी में लिख लिया कि सुबह के वक्त स्काईलाइन आएगी। पाकीजा के गाने मौसम है आशिकाना के लिए कमाल अमरोही उसी स्काईलाइन की तलाश में रास्ते पर रुके। कई दिनों तक कमाल पूरी यूनिट के साथ उस रास्ते पर जाते रहे, जब तक वो स्काईलाइन नहीं नजर आई।
40 लाख के खर्च में 18 साल में बनी पाकीजा
1964 में फिल्म का बजट 40 लाख रखा गया था। इस बजट में सबसे ज्यादा खर्च फिल्म का सेट तैयार करने में लगा। गुलाम मोहम्मद ने पाकीजा के गाने कंपोज किए थे। काम के बीच ही 1955 में गुलाम को हार्ट अटैक आने से शूटिंग रोकनी पड़ी थी। इसके बाद 1963 में जब गुलाम मोहम्मद का निधन हुआ तो फिल्म फिर रोकनी पड़ी। डिस्ट्रीब्यूटर्स चाहते थे कि कमाल दूसरे कंपोजर के साथ फिल्म पूरी करें, लेकिन उन्होंने फिल्म में गुलाम मोहम्मद का कंपोजिशन रखा और बचा हुआ काम नौशाद से करवाया।
1971 में भी इंडो-पाक वॉर के चलते फिल्म रिलीज नहीं हो सकी। आखिरकार 3 फरवरी 1972 को फिल्म का प्रीमियर मराठा मंदिर थिएटर में हुआ। तमाम झगड़ों और शिकायतों के बावजूद कमाल अमरोही को प्रीमियर में पूर्व पत्नी मीना कुमारी का साथ मिला। वो कमाल के ठीक बाजू में बैठी थीं। फिल्म देखकर एक्ट्रेस भावुक हो गईं और कहा, मैं मान गई हूं कि मेरे पति एक मंझे हुए फिल्ममेकर हैं।
मीना कुमारी की मौत से मिला फिल्म को फायदा
शुरुआत में फिल्म को एक आम फिल्म माना गया, लेकिन जैसे ही कुछ समय बाद मीना कुमारी का निधन हुआ तो फिल्म देखने वालों का सैलाब आ गया। लोग कई किलोमीटर तक टिकट लेने के लिए लाइन्स में घंटों खड़े रहते थे। 40 लाख में बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 6 करोड़ रुपए कमाए थे। मीना की मौत के बाद कमाल ने कहा था, वो एक अच्छी हीरोइन थी, लेकिन अच्छी पत्नी नहीं। वो घर में भी हीरोइन की तरह बर्ताव करती थीं।
फिल्म देखने के लिए लाहौर के हर चौराहे पर खड़े थे सैकड़ों लोग
जब अमृतसर में दूरदर्शन चैनल पर फिल्म प्रसारित की गई तो पूरे शहर में खुशी का माहौल था। सिग्नल लाहौर तक जा रहे थे, ऐसे में लाहौर के चौराहे की दुकानों पर लगे हर टीवी के सामने हजारों लोगों की भीड़ थी। ये मंजर द इंडिपेंटेंड के राइटर कुलदीप सिंह ने एक लेख में लिखा था।
सीन असली दिखाने के लिए बनवाई थी डेढ़ टन बिरयानी
रजिया सुल्तान हिंदी सिनेमा के इतिहास की उस समय की सबसे महंगी फिल्म थी, जिसका बजट 10 करोड़ था। कमाल परफेक्शन के ऐसे जुनूनी थे कि उन्होंने इस फिल्म के सेट, कॉस्ट्यूम और युद्ध के सीन पर पानी की तरह पैसा बहाया। फिल्म में शाही भोज का एक सीन शूट करने के लिए कमाल ने 45 बकरे, 251 मछलियों, 455 मुर्गों से डेढ़ टन बिरयानी और शाही खाना तैयार करवाया था, जिससे सेट पर मौजूद लोगों को असल शाही फील आए। एक सीन के लिए तो कमाल ने ऑस्ट्रेलिया से सफेद काकाटू मिट्ठू भी मंगवाया था।
हॉलीवुड के स्टूडियो से तैयार करवाए थे स्पेशल इफेक्ट, बाद में कर दिए डिलीट
फिल्म के क्लाइमैक्स सीन के लिए कमाल खुद इंग्लैंड के रॉय फील्ड्स ऑफ पाइनवुड स्टूडियोज गए थे, वही स्टूडियो जहां स्टार वॉर्स और सुपरमैन के स्पेशल इफेक्ट्स तैयार किए गए थे। करोड़ों खर्च करने के बावजूद कमाल जब सीन से संतुष्ट नहीं हुए तो उन्होंने एडिटिंग में ये सीन हटवा दिए। कई एक्शन वाले महंगे सीन के फुटेज भी कमाल ने फेंक दिए। 10 करोड़ खर्च करने के बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फेल हो गई।
मीना से बिछड़ने के बाद दूसरी पत्नी का भी हुआ निधन
मीना की मौत के बाद कमाल अमरोही दूसरी पत्नी मेहमूदी के साथ रहने लगे। दोनों के तीन बच्चे थे। कुछ सालों बाद 1982 में मेहमूदी का भी निधन हो गया। कमाल अकेलेपन में परेशान रहने लगे थे। वो बच्चों पर बोझ बनने के डर से अलग रहने लगे।
आखिरी फिल्म बनाने की ख्वाहिश रह गई अधूरी
1983 की फिल्म रजिया सुल्तान कमाल अमरोही की आखिरी फिल्म साबित हुई। ये फिल्म कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी थी। इसके बाद कमाल फिल्म मजमून बनाने वाले थे, लेकिन ये बीच में ही रुक गई। आगे कमाल ने आखिरी मुगल बनाने का फैसला किया, लेकिन फिल्म शुरू करने से पहले ही उनका 11 फरवरी 1993 को 75 साल की उम्र में निधन हो गया।
आखिरी दिनों में अपनी ही डॉक्टर से शादी करना चाहते थे कमाल
बढ़ती उम्र के साथ कमाल अमरोही ज्यादातर बीमार रहने लगे। छोटी-मोटी तकलीफों के चलते उनका अक्सर अस्पताल आना-जाना हुआ करता था। आए दिन अस्पताल जाते हुए वो अपनी डॉक्टर को ही पसंद करने लगे। जैसे ही खबरें आईं कि 75 साल के फिल्ममेकर अपनी डॉक्टर से शादी करना चाहते हैं तो उन्हें मीडिया से तीखा रिएक्शन मिला। लोगों ने तरह तरह की बातें छापीं। चंद रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने चौथी शादी भी की थी, लेकिन इसकी कहीं भी पुख्ता जानकारी नहीं है।
मीना की कब्र के बाजू में दफन होने की आखिरी ख्वाहिश
भले ही कमाल अमरोही मीना कुमारी की जिंदगी का दर्दनाक हिस्सा रहे थे, हालांकि कमाल के लिए हमेशा मीना उनकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पहलू थीं। तलाक के बाद भी कमाल चाहते थे मीना उनके पास लौट आएं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जब मीना की मौत हुई तब कमाल ने उनके साथ ही कब्र बनाने का आखिरी ख्वाहिश का इजहार किया था। 11 फरवरी 1993 में जब 75 साल के कमाल अमरोही का इंतकाल हुआ तो उनकी आखिरी ख्वाहिश के मुताबिक उन्हें रहमतबाद के ईरानी कब्रिस्तान में मीना कुमारी की कब्र के बाजू वाली कब्र में दफनाया गया था।
2022 में कमाल के पोते बिलाल अमरोही ने सारेगामा लेबल के साथ मिलकर कमाल और मीना पर एक वेबसीरीज बनाने की अनाउंसमेंट की थी। सीरीज को यूडली फिल्म्स प्रोड्यूस कर रही है, जिसकी शूटिंग इसी साल शुरू होगी।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."