आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ: बंगाल, बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक गठबंधन की कवायद में कांग्रेस को झटका लग रहा है। सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्य यूपी में भी उसके लिए हालात कठिन ही दिख रहे हैं।
कांग्रेस के लिए 11 सीटों का ‘एकतरफा’ ऐलान करने वाली सपा आगे भी उसे बहुत रियायत देने के मूड में नहीं है। प्रत्याशियों की अगली सूची में भी कांग्रेस के दावे वाली कुछ सीटों पर सपा अपने चेहरे उतारने की तैयारी कर रही है।
क्षेत्रीय दलों की अमूमन हर राज्य में शिकायत यही है कि कांग्रेस अपनी जमीन से अधिक मांग रही है। यूपी में भी तस्वीर कुछ ऐसी ही है। कांग्रेस ने शुरुआती बातचीत में करीब 25 सीटों पर दावा किया था, लेकिन सपा ने उस सूची को किनारे कर दिया है। 16 उम्मीदवारों की जो पहली सूची सपा ने जारी की है, उसमें भी फर्रुखाबाद, खीरी, धौरहरा और लखनऊ लोकसभा सीट पर कांग्रेस की नजर थी।
फर्रुखाबाद से पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद सांसद रह चुके हैं। पिछले दो चुनावों में भी वह कांग्रेस के उम्मीदवार थे। लखनऊ में भी कांग्रेस को पिछली बार 1.80 लाख वोट मिले थे। खीरी में दो महीने पहले सपा के पूर्व सांसद रवि वर्मा ने टिकट की आस में कांग्रेस का दामन थामा था। अब उनकी उम्मीदें भी धूमिल हैं। हालांकि, कांग्रेस के दूसरे नेताओं की तरह वह भी दावा कर रहे हैं कि सपा की सूची गठबंधन की आधिकारिक सूची नहीं है। यह सीट गठबंधन के तहत कांग्रेस को आएगी।
सपा ने आगे के भी दे दिए संकेत
सपा मुखिया अखिलेश यादव के अपनी ओर से कांग्रेस के लिए सीटें तय करने के बाद कांग्रेस का नेतृत्व नासाज है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव जयराम रमेश, यूपी प्रभारी अविनाश पांडेय से लेकर कांग्रेस के यूपी अध्यक्ष अजय राय के बयानों से यह साफ है। हालांकि, सपा इन दावों को दरकिनार करते हुए आगे भी सख्ती बनाए रखने का संकेत दे रही है।
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटेल को लोकसभा क्षेत्र प्रभारी बनाया जाना इसकी नजीर है। सपा ने 45 से अधिक लोकसभा क्षेत्रों में पहले ही प्रभारी बनाए थे। इसमें कई नामों को पहली सूची में जगह मिली है। इसलिए, वाराणसी लोकसभा सीट के तहत आने वाली सेवापुरी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक सुरेंद्र पटेल का नाम तय होना अनायास नहीं है। कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अजय राय 2019 में वाराणसी लोकसभा सीट से प्रत्याशी थे और उन्हें 1.52 लाख वोट मिले थे। लिहाजा, कांग्रेस की 2024 के लिए इस सीट पर भी दावेदारी है। यहां से कांग्रेस का लड़ना मोदी विरोध का संदेश देने के लिहाज से अहम है।
बात बनेगी भी तो…
सपा के सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाएं खुली हैं। पार्टी ने सीटों के नाम अपनी तरफ से तय करके कांग्रेस पर दबाव बढ़ाया है। उन्हें साथ आना है तो 2009 के लोकसभा चुनाव की जगह 2019 और 2022 के चुनावों के प्रदर्शन पर बात करनी होगी। यही वजह है कि सपा ने उन महानगरीय सीटों पर उम्मीदवार दिए हैं और आगे भी देने की तैयारी कर रही है जिन पर कांग्रेस अपना दावा कर रही है। राजधानी लखनऊ से लेकर बुंदेलखंड और वेस्ट यूपी तक की सीटें इसमें शामिल हैं। यह जरूर है कि बातचीत की दिशा और ‘टोन’ ठीक रही तो घोषित या अघोषित कुछ और सीटें कांग्रेस को मिल सकती हैं, लेकिन यह संख्या सीमित ही रहेगी।
इसलिए, तल्ख हैं तेवर
कांग्रेस यूपी में सपा के साथ ही बसपा से भी दोस्ती की संभावना तलाश रही थी। सीटों के बंटवारे से जुड़ी एक बैठक के टलने को भी इसी से जोड़ा गया था। यह बात सपा नेतृत्व को नागवार गुजरी। बसपा से दरवाजे बंद होने के बाद कांग्रेस की उम्मीद अब सपा से ही है। इसलिए, सपा ने भी अपने तेवर तल्ख कर लिए हैं।
सपा के रणनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस की यहां जमीन कमजोर है इसलिए उनको अधिक सीटें देने से सपा को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी अलग बढ़ेगी। इससे बेहतर है कि पार्टी खुद अपना उम्मीदवार उतारे, जिससे वहां 2027 के लिए भी जमीन मजबूत हो सके। पहले भी अधिक सीटें देने के परिणाम अच्छे नहीं मिले हैं। वहीं, कांग्रेस के पास चूंकि यूपी में नए साथियों का विकल्प न के बराबर है। इसलिए भी सपा दबाव बनाने की स्थिति में है।
Author: samachar
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