दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
मैं अयोध्या हूं। मैंने स्वर्णकाल देखा है। रामराज्य देखा है। मैंने हिंदू राजाओं के शासन देखे तो मुस्लिम शासकों का भी राज देखा। फिर, मैंने मुगलिया सल्तनत का वह रूप भी देखा, जब मेरे प्रभु श्रीराम के मंदिर को ढाहकर मस्जिद का निर्माण करा दिया गया।
16 शताब्दी का समय था। यह वह दौर था, जब साम्राज्य विस्तार और धर्म विस्तार को आधार बनाकर राज्यों को जीतने की कोशिश की जा रही थी।
इसी क्रम में मुगल आक्रांता बाबर ने अपनी सीमा विस्तार की कोशिश शुरू की। वर्ष 1519 से लेकर वर्ष 1526 तक बाबर ने हिंदुस्तान पर पांच बार आक्रमण किया।
वर्ष 1526 में पानीपत की लड़ाई में दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर आक्रांता बाबर ने भारत में मुगलिया सल्तनत की नींव रखी। इसके बाद अगले दो सालों यानी वर्ष 1528 तक बाबर ने हिंदुस्तान में मुगलिया सल्तनत को स्थापित करने के लिए कई जंगें लड़ीं। छोटी-छोटी रियासतों पर कब्जे जमाया। जिन्होंने मुगलिया सल्तनत की खिलाफत की, उन्हें कुचला गया। इसके साथ ही बाबर के सैनिकों ने धार्मिक स्थलों पर भी खूब हमले हुए। इसके जरिए हिंदुस्तान की संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया है।
इसी क्रम में वर्ष 1528 में मेरी धरती पर भी मुगलों का आक्रमण हुआ। बाबर के सिपहसालार मीरबाकी की अगुवाई में आई मुगल सेना ने प्रभु श्रीराम की नगरी को तहस-नहस कर दिया। राम मंदिर को तोड़ दिया गया। वहां मस्जिद की स्थापना की गई। जिस धर्म नगरी में प्रभु राम के भजन गूंजते थे। वहां अजान सुनाई देने लगे। इस पूरे घटना की गवाही तुलसीदास ने भी अपनी किताब तुलसी दोहा शतक में दी है।
तुलसी की नजर में अयोध्या आक्रमण
प्रभु श्रीराम की कथा अपने महाकाव्य श्ररामचरित मानस से जनमानस तक पहुंचाने वाले गोस्वामी तुलसीदास पर अरोप लगता रहा है कि उन्होंने अपनी किताब में राम मंदिर के विध्वंस का जिक्र नहीं किया।
कई इतिहासकार दावा करते हैं कि अगर मंदिर का विध्वंस मुगलों ने किया तो उन्होंने इसका जिक्र तुलसी ने अपने महाकाव्य में क्यों नहीं किया?
मैं अयोध्या हूं। मुझे पता है कि तुलसी भी मेरी उस समय की स्थिति पर खूब रोए थे। निर्बल थे, तो दोहों का हथियार बनाया। भविष्य को आइना दिखाया। तुलसी ने भले रामचरित मानस में इसका वर्णन नहीं किया, लेकिन ‘तुलसी दोहा शतक’ में तो उस घटना का विस्तार से जिक्र किया है।
अगर आप तुलसी की रामचरित मानस को प्रमाणिक मानते हैं तो तुलसी दोहा शतक से क्या ऐतराज है? इसमें तो उन्होंने मुगलों की उस बर्बरता का बड़े ही सटीक अंदाज से वर्णन किया है। मैं बताती हूं, तुलसी ने मेरी छाती पर हुए अत्याचार का कैसे वर्णन किया है।
तुलसी दोहा शतक में अयोध्या विध्वंस
तुलसी दोहा शतक में गोस्वामी तुलसीदास ने बड़े ही सटीक अंदाज में मुगल सिपहसालार मीरबाकी की क्रूरता का जिक्र किया है। उन्होंने बताया है कि कैसे प्रभु श्रीराम के मंदिर को तोड़कर अधम मीरबाकी ने मेरी धरती पर बाबरी का निर्माण कराया।
मुगल काल की इस बर्बरता ने अगले 496 सालों तक देश की राजनीति को प्रभावित किया। हिंदुओं की आस्था पर प्रहार किया। उन्हें बार- बार आक्रोशित करता रहा।
मंत्र उपनिषद ब्राह्मनहुं, बहु पुरान इतिहास।
जवन जराए रोष भरि, करि तुलसी परिहास॥
तुलसी दोहा शतक के इस दोहे में तुलसी ने मेरे दर पर हुए अत्याचार का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। वे इस दोहे में लिखते हैं कि क्रोध से भरकर यवनों ने बहुत सारे मंत्रसंहिता, उपनिषद, वेद के अंग माने जाने वाले ब्राह्मण ग्रंथों एवं पुराण और इतिहास संबंधी ग्रंथों का परिहास करते हुए उन्हें जला दिया। मतलब, हिंदू धर्म के प्रति मुगलों के उस उग्रता का जिक्र किया है, जो उन्हें किसी भी सामान्य इंसान से अलग बनाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों को मुगल सैनिकों के जलाए जाने की बात तुलसी ने साफ तौर पर कही है।
सिखा सूत्र से हीन करि, बल ते हिंदू लोग।
भमरि भगाए देश ते, तुलसी कठिन कुजोग॥
दोहे में तुलसी लिखते हैं कि बलपूर्वक हिंदुओं की शिखा यानी चोटी काट दी गई। यज्ञोपवीत यानी जनेऊ तोड़ दिया गया। उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया। यह कैसा कुयोग है। तुलसी इस प्रकार की स्थिति देख चीत्कार करते हैं कि यह कैसी स्थिति है, जब हिंदुओं को उनके घरों से भगाया जा रहा है। इसे उन्होंने मुगलों की ताकत का प्रदर्शन से जोड़ा है।
बाबर बर्बर आइके, कर लीन्हे करवाल।
हने पचारि पचारि जन, जन तुलसी काल कराल॥
तुलसीदास ने इस दोहे में मेरी धरती पर बर्बर बाबर के अत्याचार का जिक्र किया है। वह लिखते हैं कि हाथ में तलवार लिए बर्बर बाबर आया। लोगों को ललकार- ललकार कर हत्या की। लोग काल के गाल में समा गए। यह समय अत्यंत भीषण था।
तुलसीदास ने यह बताने की कोशिश की है कि बर्बर बाबर के सामने भी लोग तनकर खड़े हुए। मुकाबला करने का प्रयास किया गया। लेकिन, सत्ता और विस्तार के मद में चूर बाबर ने निर्बल हिंदुओं की हत्या करने में कोई संकोच नहीं किया।
संबत सर वसु बान नभ, ग्रीष्म ऋतु अनुमानि।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन, अनरथ किय अनखानि॥
बाबर के अत्याचार के वर्ष के बारे में तुलसीदास ने सबको इस दोहे में समझाया है। मैं तो हर काल के बारे में जानती हूं। लेकिन, सबूतों की बात करने वालों को इस दोहे का भाव समझना जरूरी है। तुलसी इस दोहे में ज्योतिषीय काल गणना का जिक्र करते हैं। इसमें लिखे गए काल गणना के अंकों को आप दाएं से बाईं ओर पढ़ सकते हैं।सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम संवत 1585 और इसमें से 57 वर्ष घटा देने पर अंग्रेजी वर्ष 1528 आता है। तुलसी लिखते कि विक्रम संवत 1585 (वर्ष 1528) की गर्मी के दिनों में जड़ यवनों ने अवध में वर्णन न किए जाने योग्य अनर्थ किया। यानी हिंदुओं पर मुगलों की बर्बरता का वर्ष सीधे तौर पर तुलसी यहां बताते दिखते हैं।
राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी कीन्ही हाय॥
तुलसीदास ने इस दोहे में प्रभु रामलला की जन्मभूमि के मंदिर को नष्ट किए जाने की बात कही है। यह दोहा सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें तुलसी लिखते हैं कि राम जन्मभूमि का मंदिर नष्ट करके मुगलों ने एक मस्जिद बनाई।
बड़ी ही बेरहमी से इस दौरान हिंदुओं की हत्या की गई। यह सुनकर- देखकर तुलसी के मुख से हाय निकल रहा था। वे खुद शोकाकुल हैं। तुलसीदास यहां बताते दिखते हैं कि राम जन्मभूमि के मंदिर को नष्ट किए जाने का विरोध उस समय भी किया गया था। लेकिन, जिन हिंदुओं ने विरोध की आवाज उठाई, उनकी बर्बर मुगलों ने हत्या कर दी।
दल्यो मीरबाकी अवध, मन्दिर राम समाज।
तुलसी रोवत हृदय हति, त्राहि- त्राहि रघुराज॥
मेरी धरती पर हो रहे अत्याचार को देखकर मेरे तुलसी का हृदय चीत्कार उठता है। वह प्रभु रामलला को याद कर बिलखते हैं।
अपने इस दोहे में तुलसी कहते हैं कि अधर्मी मीरबाकी ने मंदिर को नष्ट कर दिया। राम समाज यानी राम दरबार की मूर्तियों को तोड़ दिया।
भगवान राम से जन्मस्थान की रक्षा की याचना करते हुए तुलसी भारी मन से रो रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि उस समय राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान श्रीराम के साथ-साथ चारो भाई, माता सीता, भक्त हनुमान आदि की मूर्तियां भी रखी गई थीं। इन्हें मुगल सेनापति मीराबाकी और उसकी सेना ने नष्ट कर दिया था।
राम जनम मंदिर जहां, तसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहं, मीरबकी खल नीच॥
मेरी धरती पर बने भगवान राम के मंदिर को ढाहकर उस पर मस्जिद का निर्माण किया गया। इसका जिक्र भी तुलसीदास ने अपनी किताब में किया है।
वह लिखते हैं कि राम मंदिर जहां स्थित था, उसी बीच अवध में मस्जिद का निर्माण किया गया। नीच मीरबाकी ने राम मंदिर पर मस्जिद का निर्माण कराया। तुलसी के इस दोहे से साफ हो जाता है कि बाबर के सिपहसालार मीरबाकी के नेतृत्व में आई मुगलिया सेना ने अवध में राम मंदिर को गिराने में बड़ी भूमिका निभाई।
रामायन घरि घट जहां, श्रुति पुरान उपखान।
तुलसी जवन अजान तंह, करत कुरान अजान॥
तुलसीदास ने इस दोहे में अयोध्या में राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाए जाने के बाद की स्थिति का जिक्र किया है। मेरी धरती पर कैसे स्थिति बदली। आप इस दोहे में उसको जान सकते हैं।
तुलसी लिखते हैं कि जिस जगह पर रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से संबंधित प्रवचन और पाठ होते थे। घंटे और घड़ियाल बजते थे। वहां अज्ञानी यवनों की कुरान के पाठ और अजान होने लगे। ऐसे में मेरे तुलसी पर सवाल उठाने वालों के लिए यह पुस्तक इतिहास को जानने का जरिया है। यह पुस्तक मुगलों की बर्बरता की कहानी को प्रदर्शित करती है।
496 सालों की लंबी लड़ाई
राम मंदिर को लेकर हिंदू पक्ष ने 496 सालों की लंबी लड़ाई लड़ी है। इसकी गवाह तो मैं स्वयं हूं। 496 सालों के मंदिर की लड़ाई ने कई अहम दौर देखे। मंदिर की लड़ाई लगातार चलती रही। कई पीढ़ियां आंदोलन में खप गई।
तुलसी की गवाही साफ करती है कि 496 साल पहले वर्ष 1528 में मुगल शासक बाबर के सिपहसालार मीरबाकी ने विवादित स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था।
उस समय मेरी धरती के सपूतों ने कहा कि यह भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है। यहां पर प्राचीन मंदिर थी। यहां मस्जिद का निर्माण किया जाना गलत है। ताकत में चूर मुगल शासक के सिपहसालार को यह बात कहां मंजूर थी। उसने जान- बूझकर मस्जिद का निर्माण कराया। मेरी धरती के जिन लाल ने उस समय की आवाज उठाई, उन पर तलवार चली। लेकिन, आवाज अगले 500 सालों तक उठती रही।
एक बड़े वर्ग को तुलसी से जवाब
तुलसीदास के श्रीरामचरित मानस को आधार बनाकर मुगलों को महान बताने वालों के लिए तुलस दोहा शतक एक प्रकार से जवाब है।
श्रीरामचरित मानस भगवान श्रीराम के चरित्र का वर्णन है। लेकिन, तुलसी दोहा शतक में गोस्वामी तुलसीदास ने तत्कालीन राजनैतिक बदलावों को दोहे के माध्यम से चित्रित किया है।
हमारे तुलसी ने मुगल साम्राज्य के अत्याचार और मंदिर तोड़े जाने पर कुछ नहीं लिखा, कहने वालों के लिए यह ग्रंथ जवाब है। मेरे प्रभु रामलला की जन्मभूमि का विवाद अदालतों में चल रहा था तो इस तुलसी दोहा शतक के इन श्लोकों को इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान पेश किया गया। सुनवाई में कोर्ट के सामने 1528 की पूरी स्थिति को पेश किया गया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."