मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट
आज वह ऐतिहासिक दिन है, जब भारत दुनिया की ‘आंखों का चांद’ बन सकता है। ‘चंद्रयान-3’ का ‘विक्रम लैंडर’ आज 23 अगस्त की शाम को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतरेगा। हमारे वैज्ञानिकों ने गहन शोध और अनगिनत प्रयासों के बाद यह ऐतिहासिक मिशन तैयार किया है, लिहाजा हम पूरी तरह आशान्वित और सकारात्मक हैं कि ‘विक्रम लैंडर’ चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर सकेगा और फिर ‘प्रज्ञान रोवर’ बाहर निकल कर चांद पर घुमक्कड़ी कर सकेगा। अत्यंत कल्पनातीत लगता है यह एहसास! दरअसल यह मिशन की बुनियादी कामयाबी का ही प्रतीक है कि बीते 4 सालों से चांद की कक्षा में चक्कर काट रहे ‘चंद्रयान-2’ के ऑर्बिटर और ‘विक्रम लैंडर’ की मुलाकात हुई है और पुराने साथी ने ‘नए दोस्त’ का स्वागत कर मिशन की सफलता की शुभकामनाएं दी हैं। अर्थात हमारे पुराने मिशन की चांद पर उपस्थिति आज भी है, बेशक सितंबर, 2019 में ‘चंद्रयान-2’ नाकाम हो गया था। तब से हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने कई सबक सीखे होंगे! दिलचस्प यह है कि अब लैंडर चांद पर अपने लिए उपयुक्त और सुरक्षित स्थान खुद ढूंढेगा। तय करेगा कि नीचे सतह पर कोई बड़ी, ऊंची, नुकीली चट्टान न हो, कोई अत्यंत गहरे गड्ढे न हों और कोई खतरनाक ढलान न हो! यह लैंडिंग के आखिरी 19 मिनट के दौरान लैंडर गति पर नियंत्रण के साथ ऑनबोर्ड सिस्टम से दक्षिणी ध्रुव की यात्रा का बेहद नाजुक दौर होगा। इस बार लैंडर के चारों पांव इतने मजबूत किए गए हैं कि यदि उतरते समय गति 3 मीटर प्रति सेकंड भी होगी, तो लैंडिंग सुरक्षित हो सकती है। लैंडिंग के दौरान लैंडर को इसरो के कमांड सेंटर से कोई भी निर्देश नहीं दिया जा सकेगा।
यह वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के विकास की पराकाष्ठा है कि पृथ्वी से इतनी दूर एक मिशन चांद पर उतरने का स्वायत्त प्रयास कर रहा है और उसे एक कमांड सिस्टम, सेंसर तथा अन्य उपकरणों से संचालित किया जा रहा है। इसरो के चेयरमैन डॉ. एस. सोमनाथ के मुताबिक, लैंडर सेंसर और कैमरे की मदद से सुरक्षित जगह का अनुमान लगाकर ही उतरेगा। यदि सभी सेंसर फेल हो जाते हैं अथवा हरेक व्यवस्था नाकाम हो जाती है, तब भी लैंडर चांद की सतह पर उतर सकता है, बशर्ते प्रॉपल्शन सिस्टम अच्छी तरह काम करता रहे। ‘चंद्रयान-3’ को इस तरह डिजाइन किया गया है। यदि दो इंजन भी काम करना बंद कर दें, तब भी लैंडर चांद की सतह पर लैंड कर सकता है। ‘चंद्रयान-3’ को इस तरह भी डिजाइन किया गया है कि यदि कई स्तरों पर मिशन असफल रहता है, तब भी वह अपना लक्ष्य हासिल करने में समर्थ होगा। इसरो चेयरमैन का यह विश्वास भारत की जनता को हौसला देने में सक्षम है। चांद पर जाने और लगातार अनुसंधान करने और सूचना-चित्र आदि जुटाने का यह मिशन यहीं तक सीमित नहीं है। ‘चंद्रयान-4’ और ‘चंद्रयान-5’ पर भी वैज्ञानिक और इंजीनियर काम करने में जुटे हैं। चांद पर एक रोबोट भेजना भी विचाराधीन है।
हमारा मिशन ‘आदित्य’ सूर्य के संसार को खंगालने भी जाएगा। कभी हमने ऐसी कल्पना की थी। जो भी कहानियां और कविताएं लिखी गईं, उनमें सूर्य और चंद्रमा को ‘भगवान’ माना गया है। ‘चंदा मामा’ तो बहुत प्यारा और अपनत्व वाला संबोधन लगता रहा है, लेकिन आज इनसानी वैज्ञानिक ही उन ‘देवताओं’ के आंगन में मानव-जीवन की संभावनाओं को टटोलने में जुटे हैं। ‘विक्रम लैंडर’ के चारों ओर सोलर सेल भी लगाए गए हैं, ताकि वह गलत स्थान या दिशा में उतर जाता है, तो सोलर पैनल को सूर्य की किरणें मिलती रहें और ऊर्जा पैदा होती रहे। इस तरह वैज्ञानिकों ने ऊर्जा का जरिया भी बना लिया है। बहरहाल इसरो का टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क ‘चंद्रयान-3’ के संपर्क में है। सभी वैज्ञानिक शांत भाव से अपने अंतरिक्ष मिशन को देख रहे हैं। भारत के नागरिक भी टीवी पर लैंडिंग का सीधा प्रसारण देख सकेंगे। अब मिथकीय अथवा आख्यान मूर्त रूप में हमारे सामने प्रकट हो रहे हैं, लिहाजा इस स्थिति का भी आनंद लीजिए और विज्ञान को साधुवाद दीजिए। यह भी कहा जा रहा है कि अगर किसी तरह की कठिनाई आई, तो सॉफ्ट लैंडिंग 23 अगस्त के बजाय 27 अगस्त को होगी। इसके लिए अलग प्लान बनाया गया है।
Author: samachar
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