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एक तोले सोना की कीमत में बिके फिल्म के टिकट ; आप इस खबर को पढ़कर अभी और चौंकेंगे

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ईफत कुरैशी की रिपोर्ट 

जगह- मुंबई का वॉटसन होटल

शाम के करीब 6 बजे शहर के 200 नामी रईस लोग होटल के ऑडिटोरियम में जमा हुए। यहां एक चमत्कार दिखाया जाना था। ऑडिटोरियम के एक तरफ सफेद पर्दा लगा था, उसके सामने कुर्सियों पर सभी लोगों को बैठाया गया, वैसे ही जैसे आज थिएटर में होता है। कुछ अंग्रेज यहां वो चीज दिखाने वाले थे, जिसे सिनेमा कहा जा रहा था। दावा था कि पर्दे पर लोग और जानवर चलते-फिरते दिखेंगे। इस चमत्कार को देखने के लिए इन 200 लोगों ने 1 रुपया कीमत चुका कर टिकट खरीदे थे। 1896 के उस दौर में सोना 1 रुपए तोला ही था।

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खैर, ऑडिटोरियम में अंधेरा किया गया और सिनेमा शुरू हुआ। जो दावा किया जा रहा था, वो सच निकला। सामने लगे सफेद पर्दे पर कुछ लोग एक फैक्ट्री से निकल रहे थे, इस फिल्म का नाम था ‘वर्कर्स लीविंग द लूमियर फैक्ट्री’। ये वाकई चमत्कार था। लोग आंखें गढ़ाए पर्दे की तरफ एकटक देख रहे थे। ऐसा कैसे संभव है। कपड़े के पर्दे पर लोग चलते हुए कैसे दिख सकते हैं। सबके चेहरे पर ये सवाल दिख रहा था। 46 सेकेंड की फिल्म खत्म हुई। लोग आश्चर्य से भरे थे। वाकई चमत्कार था। कुछ देर में दूसरी फिल्म शुरू हुई, ये भी कुछ सेकेंड्स की थी। नाम था ‘द अराइवल ऑफ अ ट्रेन’ जिसमें एक ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आती दिखाई जानी थी।

फिल्म शुरू हुई और पर्दे पर चलती ट्रेन देख चीख-पुकार मच गई। फिल्म देख रहे लोगों को लगा, सच में ट्रेन उनकी ओर आ रही है। वो मारे जाएंगे। थिएटर में जितनी औरतें थीं, वो डर के मारे बेहोश हो गईं। ज्यादातर पुरुष दर्शक थिएटर छोड़कर भाग निकले। सबको लग रहा था, आज अंग्रेज ट्रेन से कुचलवाकर मार डालेंगे।

127 साल पहले कुछ इस अंदाज में भारत में सिनेमा दिखाए जाने की शुरुआत हुई। हालांकि, ये कोई पहले से तय प्लानिंग के हिसाब से नहीं हुआ था। फिल्म का शो ऑस्ट्रेलिया में होना था लेकिन जो लूमियर ब्रदर्स ये फिल्म लेकर ऑस्ट्रेलिया जा रहे थे, उनका प्रोग्राम कैंसिल हो गया। फिर उन्होंने सोचा क्यों ना भारत में ही फिल्में दिखाई जाएं। बस यहीं से भारत में फिल्में दिखाने का सिलसिला शुरू हुआ।

1896 में भारत में सिनेमा आया, लेकिन दुनिया में सिनेमा लाने की कहानी जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा

बात है 1878 की, जब UK के वैज्ञानिक एडवियर्ड मुईब्रिज देखना चाहते थे कि दौड़ते हुए घोड़े के चारों पैर हवा में होते हैं या नहीं।

इसके लिए उन्होंने 40 स्टिल फोटोग्राफी कैमरे लगाकर दौड़ते हुए घोड़े की एक सीरीज में तस्वीरें लीं।

पैरों की पोजिशन जानने के लिए एडवियर्ड ने सारी तस्वीरों को एक-एक कर बदलकर देखा। जब स्पीड में तस्वीरें बदलीं तो उन्हें वो घोड़ा स्टिल इमेज होने के बावजूद दौड़ता हुआ नजर आया।

1888 में फ्रैंच वैज्ञानिक लुइस ली प्रिंस ने मोशन कैमरे का आविष्कार किया। इसी साल लुइस ने 14 अक्टूबर 1888 को इंग्लैंड में पहली मोशन पिक्चर को उस मोशन कैमरे से शूट किया गया। उसकी अवधि सिर्फ 2.11 सेकेंड थी, जिसका नाम राउंडहे गार्डन सीन है।

पहली मोशन पिक्चर बनाने वाले साइंटिस्ट हुए अचानक लापता, आज भी गुत्थी अनसुलझी

लुइस अपनी पहली मोशन पिक्चर 1890 को मैनहैटन में पेश करना चाहते थे, लेकिन इससे पहले 16 सितंबर 1890 को वो अचानक गायब हो गए। उनके साथ क्या हुआ, वो कहां गए या क्यों गए, ऐसे कई सवाल वो अपने पीछे छोड़ गए। दुनिया को आविष्कार दिखाने वाले लुइस का अचानक गायब हो जाना आज भी अनसुलझी गुत्थी है, क्योंकि फिर वो कभी दुनिया के सामने नहीं आए।

लुइस को हमेशा पहली मोशन पिक्चर बनाने का क्रेडिट दिया गया, लेकिन उनके आविष्कार को दुनिया तक पहुंचाने वाले लूमियर ब्रदर थे। उन्होंने मोशन पिक्चर कैमरे से 1895 में द अराइवल ऑफ द ट्रेन बनाई। उन्होंने उसी साल इसकी स्क्रीनिंग पेरिस में रखी।

आगे लूमियर ब्रदर ने 10 और छोटी-छोटी मोशन पिक्चर (फिल्में) बनाईं और दुनियाभर में उनकी स्क्रीनिंग करने लगे। स्क्रीनिंग में आए शहरों के रईस लोग लूमियर ब्रदर्स से मोशन कैमरा खरीदकर फिल्म बनाने लगे।

एक संयोग से भारत पहुंचा सिनेमा

लूमियर ब्रदर्स अपनी फिल्मों को लेकर दुनियाभर में घूम रहे थे और पैसे कमा रहे थे। वो 1896 में अपनी 6 फिल्में लेकर ऑस्ट्रेलिया जा रहे थे, लेकिन टूर कैंसिल होने पर उन्हें बीच में भारत में ठहरना पड़ा। भारत में अंग्रेजों की हुकूमत के बीच जब लूमियर ब्रदर को मुंबई में ठहरना पड़ा तो उन्होंने सोचा कि क्यों न और रुपए कमाने के लिए भारत में भी अपनी फिल्में दिखाई जाएं। दोनों वॉटसन होटल में ठहरे थे तो उन्होंने वहीं स्क्रीनिंग का फैसला किया।

7 जुलाई 1896 को फिल्म का प्रीमियर हुआ, जहां 1 रुपया टिकट लेकर शहर के 200 नामी रईस लोग फिल्म देखने पहुंचे। उस स्क्रीनिंग में लूमियर ब्रदर ने पहली फिल्म वर्कर लीविंग द लूमियर फैक्ट्री दिखाई। उस दिन भारत में सिनेमा आया। लोगों को वो फिल्म इतनी पसंद आई कि लूमियर ब्रदर ने नॉवल्टी थिएटर में कुछ और दिनों तक अपनी फिल्में दिखाईं।

भारत में दिखाई गई पहली फिल्म 

1897 में कलकत्ता के स्टार थिएटर में विदेशी फिल्ममेकर प्रोफेसर स्टीवसन ने एक फिल्म प्रेजेंटेशन की। इस प्रेजेंटेशन को भारतीय फोटोग्राफर हीरालाल सेन ने अपने मोशन कैमरे में रिकॉर्ड किया और अगले साल उसकी स्क्रीनिंग की।

उस फिल्म को हीरालाल ने द फ्लावर ऑफ पर्शिया नाम दिया जो 1898 में रिलीज हुई। ये भारत की पहली मोशन पिक्चर थी। एक साल बाद जब एच.एस, भातवदेकर ने मुंबई के हैंगिंग गार्डन में हुए रेसलिंग मैच की रिकॉर्डिंग की, तो वो भारत में रिकॉर्ड हुई पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनी।

सालों बाद दादा साहेब तोर्ने ने 1912 में भारत की पहली फुल-लेंथ फिल्म बनाई, हालांकि ये एक प्ले की रिकॉर्डिंग थी, इसलिए इसे पहली फीचर फिल्म का दर्जा नहीं मिला। अगले साल 1913 में दादा साहेब फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र बनाई, जो भारत की पहली फीचर फिल्म है।

बॉक्स ऑफिस की शुरुआत

1904 में बॉक्स ऑफिस शब्द को फिल्मों की कमाई का अंदाजा लगाने के लिए शुरू किया गया।

ये शब्द 1786 से थिएटर की टिकट सेलिंग विंडो के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन 1904 से इसे फिल्मों के कलेक्शन के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।

अब 2400 रुपए तक बिक रही हैं फिल्मों की टिकट

समय के साथ मल्टीप्लेक्स आने के बाद टिकट प्राइज में तेजी से उछाल देखने को मिला है। आज भी जहां सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर में टिकट की कीमत 120-180 के बीच है, वहीं महानगरों के कुछ मल्टीप्लेक्स एक टिकट के 2000 से 2400 रुपए तक चार्ज करते हैं। 25 जनवरी को रिलीज हुई फिल्म पठान की टिकट गुरुग्राम स्थित ऐंबिएंस मॉल में 2400 रुपए तक की बेची गई थी। वहीं हाल ही में रिलीज हुई फिल्म आदिपुरुष की टिकट की कीमत 2200 रुपए तक की थीं।

1908 में बनी दुनिया की पहली रंगीन फिल्म, भारत आने में लगे 19 साल

दुनिया की पहली रंगीन फिल्म ए विजिट टु द सी साइड है। 8 मिनट की इस फिल्म को ब्रिटिश में बनाया गया था, जिसमें कुछ महिलाएं समुद्र किनारे नजर आ रही हैं। इसे इंग्लैंड के ब्रिंगटन सदर्न के बीच पर शूट किया गया था। इसे जॉर्ज अलबर्ट स्मिथ ने बनाया था। वहीं भारत में कलर फिल्मों का दौर आने में 19 साल लगे। साल 1937 में आर्देशिर ईरानी ने भारत की पहली रंगीन फिल्म किसान कन्या बनाई थी।

1927 में दुनिया को मिली बोलती फिल्में, रिलीज से एक दिन पहले हुआ हादसा

1920 में साउंड रिकॉर्डिंग का आविष्कार हुआ और 6 अक्टूबर 1927 को दुनिया की पहली बोलती फिल्म द जैज सिंगर रिलीज हुई थी। बोलती फिल्म का मतलब कि फिल्म में किरदारों के डायलॉग थे और बैकग्राउंड म्यूजिक था। इससे पहले रिकॉर्डिंग की सुविधा न होने पर साइलेंट फिल्में ही बनती थीं, जिनके लिए पर्दे के पास कुछ और्केस्ट्रा वाले बैठते थे। वो हर सीन के अनुसार म्यूजिक देते थे।

इस फिल्म को वॉर्नर ब्रदर्स ने बनाया था। शूटिंग के दौरान ही सभी भाइयों को निमोनिया हो गया वहीं उनमें से एक सैम वॉर्नर को ब्रेन में इन्फेक्शन डिटेक्ट हुआ। कुछ समय बाद ही वो कोमा में चले गए और द जैज सिंगर रिलीज होने के ठीक एक दिन पहले उनकी मौत हो गई। वॉर्नर ब्रदर्स में से कोई फिल्म के प्रीमियर में नहीं पहुंच सका।

दुनिया में साउंड फिल्में 1927 में आईं, लेकिन भारत की पहली साउंड फिल्म 1931 में आई आलम आरा थी। रंगीन फिल्मों की तरह साउंड फिल्में भी आर्देशिर ईरानी भारत लाए थे।

ये भी हैं फिल्मों के इतिहास से जुड़े कुछ रोचक फैक्ट्स

दुनिया की सबसे लंबी फिल्म- मात्रजोच्का- 5700 मिनट (95 घंटे / 3 days, 23 hours)

दुनिया की पहली एनिमेटेड/कार्टून मूवी- फैंटासमैगोरी (1908)

1915- फिल्म के सेट बड़े बनाए जाने लगे। सॉफ्ट लाइट, स्पॉट लाइट और सॉफ्ट फोकस भी इसी समय इस्तेमाल किया जाने लगा।

1920 में USA (हॉलीवुड) में फिल्में बड़े स्तर पर बनने लगीं।

1920 तक US में 800 फिल्में बनती थीं, जो दुनिया का 80% फिल्म प्रोडक्शन था। (साभार)

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"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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