नवीन नवाज़ की रिपोर्ट
श्रीनगर : ‘…बाप रे बाप, इतनी बड़ी स्क्रीन…और इतना शानदार सिनेमाहाल। सच में एक बड़े हाल में अलग-अलग कुर्सी पर ठाठ से बैठकर अंधेरे में फिल्म देखने का मजा ही कुछ और है। …आमिर खान ने तो हंसा-हंसा कर लोटपोट कर दिया। सीटियों और तालियों की आवाज अभी तक मेरे जहन में घूम रही है।’ यह नजारा था कश्मीर के बारामुला जिले में श्रीनगर-मुजफ्फराबाद मार्ग पर स्थित पट्टन में जोरावर हाल (सिनेमाघर) के बाहर का। करीब 32 साल से वीरान पड़े इस सिनेमाघर को सेना ने शनिवार को फिर दर्शकों के लिए गुलजार कर दिया।
पहले दिन सिनेमाहाल में थ्री इडियट्स फिल्म का प्रदर्शन हुआ। फिल्म देखने वालों में कई ऐसे थे, जिन्होंने पहली बार थियेटर देखा और कुछ ऐसे थे, जिन्होंने जम्मू, चंडीगढ़ या दिल्ली में जाकर एक-दो बार फिल्म तो देखी है, लेकिन कश्मीर में पहली बार देख रहे हैं। सच में, कश्मीर बदल रहा है। पट्टन के हैदरबेग में स्थित यह सिनेमाहाल कभी बारामुला और पट्टन के लोगों के बीच ही नहीं कश्मीर के अन्य शहरों व कस्बों के निवासियों में भी लोकप्रिय था, क्योंकि सैन्य छावनी के भीतर स्थित इस हाल में अपने समय की हिर हिंदी फिल्में दिखाई जाती थीं।
कश्मीर में सुधरते हालात का असर अब हर जगह नजर आने लगा है और बचे-खुचे सिनेमाहाल फिर खुलने लगे हैं। इसी क्रम में सेना की 10 सेक्टर आरआर ने शनिवार को जोरावर हाल को जीर्णाेद्धार के बाद खोला है। पहले दिन पट्टन और बारामुला समेत वादी के विभिन्न हिस्सों से आए स्कूली छात्रों व स्थानीय लोगों ने बड़े पर्दे पर थ्री इडियट्स फिल्म का आनंद लिया।
सेना की 10 आरआर के सेक्टर कमांडर ने कहा कि करीब एक साल से हमारी जब कभी बारामुला, पट्टन, करीरी, सोपोर, संग्रामा, कुंजर व अन्य इलाकों में स्थानीय लोगों से बातचीत होती तो वे अन्य मुद्दों पर बातचीत के दौरान यह जरूर कहते कि यहां सिनेमाहाल होना चाहिए। कुछ स्थानीय युवाओं ने एक कार्यक्रम में जब यह कहा कि उन्होंने थियेटर में कभी फिल्म नहीं देखी तो मुझे बड़ी हैरानी हुई। हमने जोरावार हाल को फिर से शुरू करने का फैसला किया और आज यह शुरू हो गया।
इसलिए छात्रों को पहले दिन दिखाई थ्री इडियट्स फिल्म : सैन्य कमांडर ने कहा कि यह थियेटर भी 1990 में बंद हो गया था। फिलहाल, हमने इसे छात्रों के लिए खोला है। आने वाले समय में इसे आम लोगों के लिए भी खोल दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि आज के दिन को उत्तरी कश्मीर में सिल्वर स्क्रीन की वापसी के दिन के रूप में याद किया जाएगा। थ्री इडियट्स दिखाने का हमारा मकसद यह था कि यह फिल्म कई मिथकों को तोड़ती है, यह छात्रों के भीतर की प्रतिभा को बढ़ाने पर जोर देती है।
…तो सिनेमाहाल में फिल्म देखने में कोई बुराई नहीं : नासिर नामक एक छात्र ने कहा कि मैं 12वीं में पहुंच गया हूं। मैंने दो बार जम्मू में और एक बार दिल्ली में थियेटर में जाकर फिल्म देखी है। मैं सोचता था कि यहां थियेटर क्यों नहीं है। यहां कुछ लोग कहते हैं कि थियेटर में फिल्म देखना सही नहीं है। मैं उनसे पूछता हूं कि अगर आप घर पर यू-ट्यूब पर फिल्म देख सकते हैं तो फिर सिनेमाहाल में क्या बुराई है।
कभी थियेटर के बाद आधी रात तक होती थी रौनक : पेशे से वकील सलीम वानी ने कहा कि कश्मीर के सिनेमाहाल में मैंने अंतिम फिल्म चांदनी देखी थी। फिर यहां सबकुछ बदल गया। मुझे दो दिन पहले पता चला था कि यहां सिनेमाहाल शुरू हो रहा है, मैं यहां पहुंच गया। मजा आया। मुझे अपना पुराना दौर याद आया है जब यहां थियेटर के बाद आधी रात तक रौनक होती थी।
आतंकियों व अलगाववादियों ने बंद करा दिए थे थियेटर : कश्मीर के लोगों में शुरू से ही सिनेमा के प्रति जबरदस्त रूची रही है। वर्ष 1990 से पहले कश्मीर के विभिन्न शहरों में करीब 20 सिनेमाहाल थे। इनके अलावा करीब आधा दर्जन सिनेमाहाल सैन्य छावनियों के बीच थे। आतंकी हिंसा शुरू होने के साथ ही कश्मीर घाटी में सिनेमाहाल का पर्दा गिरने लगा। आतंकी संगठनों और अलगाववादियों ने इन्हें बंद करने का फरमान सुनाना शुरू कर दिया, जिसने फरमान पर अमल नहीं किया, वहां ग्रेनेड हमला हुआ या फिर अंधाधुंध फार्यंरग। यही कारण था कि कश्मीर सिनेमा से दूर होता गया।
Author: samachar
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