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18 January 2025 1:29 pm

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कहीं “बेचन बाबा” करते हैं मस्जिद की देखभाल तो कहीं देवी मां के लिए चुनरी बनाते हैं मुसलमान; पढ़िए रोचक समाचार

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला, नौशाद अली और चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

धर्म को लेकर इतनी खींचतान के बीच आज हम आपके लिए यूपी की 5 दमदार कहानियां लेकर आए हैं। यकीन मानिए ये कहानियां इतनी ताकतवर है कि इन्हें पढ़कर आप धर्म, जाति, ऊंच-नीच जैसी सारी बातों को भूल जाएंगे। चलिए एक-एक करके हर कहानी से गुजरते हैं

बनारस के चौखंभा इलाके में अनार वाली मस्जिद का मुतवल्ली हिंदू है। बेचन बाबा की 3 पीढ़ियां 60 साल से अनार वाली मस्जिद की देखरेख कर रही हैं। मस्जिद में होने वाले चांद की तारीख और ईद की खास नमाज की जिम्मेदारी बेचन बाबा ही संभालते हैं।

यहां रहने वाले कहते हैं, “60 साल से बेचन बाबा अनार वाली मस्जिद की देखरेख कर रहे हैं। मस्जिद के बगल में ही गोपाल मंदिर भी है। इस मंदिर में जो भी दर्शन के लिए आता है वो लौटते वक्त मस्जिद पर माथा टेकने जरूर जाता है।

मस्जिद का इतिहास काफी पुराना है। इसमें दरवेश सैयद तारा शाह बाबा, मीरा शाह बाबा, अनार शहीद बाबा, चौखंभा बाबा की मजार हैं। यहां रहने वाले मुस्लिम परिवार बेचन बाबा की बातों को मानते हैं। ये मस्जिद बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की पहचान है।”

यहां ईद पर हिंदू बांटते हैं मिठाइयां

यूपी के बाराबंकी में हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाने वाले सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह है। इसे देवा शरीफ के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इस दरगाह पर ईद पर हिंदू मिठाइयां बांटते हैं। यहीं होली पर धर्म की सारी सीमाएं तोड़कर हिंदू और मुसलमान गले लग कर होली खेलते हैं।

जो रब है वही राम है… हाजी वारिस अली शाह का यही संदेश हर साल होली पर यहां देखने को मिलता है। दरगाह पर चादर की दुकान लगाने वाले आसिफ बताते हैं, “इस मजार की बुनियाद ही हिंदू-मुस्लिम एकता पर टिकी है। हिंदू राजा पंचम सिंह ने ही इस दरगाह को बनवाया था।

यहां खेली जाने वाली होली बरसाने की होली से कम नहीं लगती है। यहां हर साल हजारों की संख्या में देशभर से हिन्दू ,मुसलमान ,सिख होली खेलने आते हैं। इस दौरान यहां कोई हिंदू मुसलमान नहीं रह जाता, सब इंसान बनकर होली खेलते हैं।”

हाजी वारिस अली शाह की मजार पर 100 साल से अधिक समय से होली खेली जा रही है। यहां होली पर देवा कस्बे के रहने वाले हिंदू परिवार वारिस सरकार की मजार पर रंग गुलाल चढ़ाते हैं। देवा कस्बे के रहने वाले शंकर लाल कहते हैं, “यहां आकर धर्म की सभी लकीरें अपने आप मिट जाती हैं। ईद पर यहां हिंदू मिठाइयां बांटते हैं और होली पर मुसलमान जम के रंग खेलते हैं।”

नवरात्र में मुस्लिम परिवारों में बढ़ जाती है चहल-पहल, रात-रात भर जागते हैं लोग

प्रयागराज से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर पड़ते हैं अहलादपुर और इब्राहिमपुर कस्बे। यहां नवरात्र आने पर हिंदुओं से ज्यादा चहल-पहल मुस्लिम परिवारों में दिखती है। इसकी वजह है मां दुर्गा पर चढ़ने वाली चुनरी और कलावा। यहां रहने वाले 1000 से ज्यादा मुस्लिम परिवार बीते 70 साल से चुनरी और कलावा बनाने के काम में लगे हुए हैं। यहां बनाई गई चुनरी मिर्जापुर में विंध्यवासिनी देवी और मैहर में मां शारदा के मंदिरों में बिकती हैं।

यहां रहने वाली सब्बाग बिरादरी ब्रिटिश काल से कढ़ाई-बुनाई का काम कर रही है। यहां रहने वाली आबादी की रोजी-रोटी इसी काम पर निर्भर है। इब्राहिमपुर के कपड़ा व्यापारी तनवीर बताते हैं, “देवी मां पर चढ़ने वाली चुनरी और कलावा बनाने के लिए यहां सुबह 4 बजे से ही काम शुरू हो जाता है।

पहले धागों को रंगा जाता है फिर धूप में सुखाया जाता है। इस काम में बहुत साफ सफाई का ध्यान रखा जाता है। ये विंध्यवासिनी देवी के रहम से हमारा काम बीते 15 साल से अच्छा चल रहा है।”

तनवीर कहते हैं, “नवरात्र में यहां पर काम बढ़ जाता है क्योंकि सबसे ज्यादा चुनरी के ऑर्डर तभी आते हैं। यही वजह है कि यहां रहने वाले मुस्लिम परिवार नवरात्र का इंतजार बेसब्री से करते हैं।”

शिव मंदिर में दर्शन के लिए मुसलमान लाइन लगाते हैं

गोरखपुर के खजनी गांव के झारखंडी शिव मंदिर में मुस्लिम पूजा के लिए लाइन लगाते हैं। शिव मंदिर को लेकर मुसलमानों की इस आस्था का कारण यहां का शिवलिंग है। यहां के रहने वाले मुस्लिम कहते हैं कि मंदिर में शिवलिंग पर उर्दू भाषा में ‘ला इलाहा इल्लललाह मोहम्मदमदुर्र रसुलुल्लाह‘ लिखा हुआ है। इस्लाम में इन शब्दों को पवित्र माना जाता है।

खजनी के रहने वाले संदीप कहते हैं, “मोहम्मद गजनवी ने भारत पर जब आक्रमण किया था, तो उसने यहां के मंदिरों को खूब लूटा। जब उसकी नजर इस मंदिर पर पड़ी थी, तो उनसे यहां के शिवलिंग को उखाड़ने के आदेश दिए थे, लेकिन उसकी सेना इस शिवलिंग को उखाड़ नहीं सकी।

इसके बाद उसने गुस्से में यहां के शिवलिंग पर ये कलमा खुदवा दिया। इसके पीछे उसकी सोच थी कि ऐसा करने से हिंदू यहां पूजा करना बंद कर देंगे पर ऐसा नहीं हुआ। यहां तब से हिंदुओं के साथ मुसलमान भी दर्शन करने आने लगे।”

दानिश खान को लोग भगवान राम के नाम से जानते हैं

दूरदर्शन पर 90 के दशक में एक सीरियल आता था, जिसका नाम का ‘रामायण’। इसमें राम का किरदार निभाने वाले एक्टर अरुण गोविल को रीयल लाइफ में लोग भगवान राम मानने लगे थे। ठीक ऐसी ही पहचान बरेली के दानिश खान की बन गई है।

बरेली के बारादरी थाना क्षेत्र में पड़ता है पुराना शहर मोहल्ला। यहां दशहरे पर होने वाली रामलीला को देखने के लिए यूपी के साथ देशभर से लोग आते हैं। यहां की रामलीला में भगवान राम का किरदार निभाने वाले दानिश खान बरेली में कहीं भी चले जाएं, लोग उन्हें राम जी के नाम से जानते हैं। पुराना शहर मोहल्ले की रामलीला की खास बात ये है कि इसका मंचन करने वाले आधे से ज्यादा लोग मुस्लिम हैं। रामलीला में कैकेयी का किरदार समयून खान निभाती हैं।

रामलीला में भगवान राम का किरदार निभाने वाले दानिश कहते हैं, “राम जी का किरदार निभाना मेरे लिए गर्व की बात है। इसे निभाने के लिए रामलीला होने के दो महीने पहले से मैं सात्विक जीवन में आ जाता हूं। मांस-मछली तो दूर की बात रही, किसी भी बाहरी खाने को हाथ तक नहीं लगाता। यहां बीते 5 वर्षों से मुस्लिम परिवार के लोग रामलीला का मंचन करते रहे हैं। हमारे लिए जो अल्लाह है, वही राम है।”

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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