संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
2024 का वर्ष देवरिया जिले की राजनीति के लिए चुनावी हलचल और विकास के वादों के बीच संतुलन का समय था। लोकसभा चुनावों के दौरान जिले में मतदाताओं की प्राथमिकताएं और राजनीतिक दलों की रणनीतियां स्पष्ट रूप से सामने आईं। देवरिया की राजनीतिक परिदृश्य में इस साल कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, जो इस जिले की राजनीतिक दिशा को प्रभावित कर सकती हैं।
लोकसभा चुनाव 2024: संघर्ष और समीकरण
2024 के लोकसभा चुनाव में देवरिया संसदीय सीट पर प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा देखी गई। यह सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है, जो 2014 से लगातार जीतती आ रही है। हालांकि, पिछले तीन दशकों में यह सीट कई बार सपा, बसपा और कांग्रेस के हाथों में भी गई है।
मुख्य दल और उम्मीदवार
1. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
बीजेपी ने अपने विकास और राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ प्रचार किया।
2014 और 2019 में बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की थी, और 2024 में भी पार्टी ने इसी रुख को बनाए रखा।
2. समाजवादी पार्टी (सपा)
सपा ने क्षेत्रीय मुद्दों, पिछड़े वर्गों और किसानों की समस्याओं को प्रमुखता दी।
गठबंधन की राजनीति पर सपा का ध्यान रहा, जिससे दलित और अल्पसंख्यक वोटों को साधने की कोशिश की गई।
3. बहुजन समाज पार्टी (बसपा)
बसपा ने दलित समुदाय और सामाजिक न्याय के मुद्दों को उठाया।
हालांकि, पार्टी का जनाधार पिछले चुनावों में कमजोर पड़ा है।
चुनावी मुद्दे, विकास कार्य और इंफ्रास्ट्रक्चर
देवरिया में सड़कों, स्वास्थ्य सुविधाओं और औद्योगिक विकास की गति धीमी होने के कारण यह चुनावी मुद्दा बना रहा।
बेरोजगारी
युवाओं में रोजगार की कमी को लेकर असंतोष रहा।
महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण
महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए विभिन्न वादे किए गए।
धार्मिक और जातिगत समीकरण
जातीय समीकरण इस बार भी चुनावी गणित में महत्वपूर्ण साबित हुए।
आचार संहिता और प्रशासनिक सख्ती
चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता का सख्ती से पालन किया गया। प्रशासन ने प्रचार-प्रसार में नियमों के उल्लंघन पर कड़ी निगरानी रखी। वाहनों के काफिले और प्रचार सामग्री के इस्तेमाल पर विशेष प्रतिबंध लागू किए गए।
राजनीतिक दलों की रणनीतियां
1. बीजेपी की रणनीति
बीजेपी ने मोदी सरकार के विकास कार्यों को आधार बनाकर प्रचार किया।
राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे के साथ साथ स्थानीय विकास के वादे किए गए।
2. सपा और बसपा का गठबंधन प्रयास
सपा और बसपा ने वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए आपसी तालमेल की कोशिश की।
हालांकि, यह गठबंधन 2019 के चुनावों में सफल नहीं हुआ था, लेकिन 2024 में इसे दोबारा आजमाया गया।
3. कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस ने अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने के लिए क्षेत्रीय समस्याओं को उठाया, लेकिन उसकी पकड़ कमजोर होती गई।
साल के राजनीतिक उतार-चढ़ाव
1. लोकसभा चुनाव की तैयारी में जिले के विकास कार्यों को तेज करने की कोशिश की गई, जिससे मतदाताओं को लुभाया जा सके।
2. निवेश योजनाओं को लागू करने के वादे किए गए, जिनमें लगभग 930 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव स्वीकृत हुए।
3. जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण ने राजनीतिक माहौल को गर्म रखा। दलों ने अपने-अपने वोट बैंक को साधने के लिए सामाजिक मुद्दों को जोर-शोर से उठाया।
2024 का वर्ष देवरिया के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। जहां बीजेपी ने अपने विकास कार्यों और राष्ट्रवादी नीतियों के बल पर बढ़त बनाए रखने की कोशिश की, वहीं सपा और बसपा ने गठबंधन के जरिये मुकाबला करने की रणनीति अपनाई। कांग्रेस की स्थिति इस वर्ष भी कमजोर बनी रही।
इस चुनावी समर में देवरिया के मतदाताओं ने विकास, रोजगार और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। भविष्य में ये राजनीतिक गतिविधियां जिले की दशा और दिशा को प्रभावित करेंगी।