विम्रता जयराम हरियाणी की रिपोर्ट
महाराष्ट्र में हाल ही में हुए मतदान के बाद अब राजनीतिक जोड़-घटाव और संभावनाओं पर चर्चा तेज हो गई है। विभिन्न एग्जिट पोल के मुताबिक, किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ नहीं दिख रहा है। यह स्थिति महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के लिए खास तौर पर चिंताजनक है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में जहां इस गठबंधन ने बढ़त हासिल की थी, अब विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी 145 सीटों का आंकड़ा छूने में भी कठिनाई हो रही है।
महाविकास अघाड़ी की चुनौतीपूर्ण यात्रा
4 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी ने 151 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल की थी। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में हालात काफी बदल गए हैं।
आइए, उन प्रमुख वजहों पर नजर डालते हैं, जिनकी वजह से एमवीए को इस चुनाव में मुश्किलें झेलनी पड़ीं:
सीट बंटवारे में खींचतान
महाविकास अघाड़ी के अंदर सीटों के बंटवारे को लेकर काफी विवाद हुआ। कांग्रेस ने 120 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग की, जिसे शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी ने खारिज कर दिया। हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद कांग्रेस 102 सीटों पर मानने को तैयार हुई, लेकिन इससे पार्टी के स्थानीय नेताओं में असंतोष बढ़ गया।
शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस के बीच इस विवाद को लेकर बीजेपी ने विपक्ष को “अप्राकृतिक गठबंधन” बताकर निशाना साधा। यह विवाद जमीनी स्तर पर भी असर डाल गया और कई सीटों पर कार्यकर्ताओं में मनमुटाव देखने को मिला।
भितरघात और अंदरूनी कलह
महाविकास अघाड़ी की हार की एक बड़ी वजह कई सीटों पर भितरघात मानी जा रही है।
उदाहरण के तौर पर, सोलापुर दक्षिण सीट पर शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन कांग्रेस का गढ़ होने के बावजूद कांग्रेस के दिग्गज नेता सुशील कुमार शिंदे ने गठबंधन उम्मीदवार का समर्थन न करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार का समर्थन किया।
लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही “सांगली मॉडल” देखने को मिला था, जहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने गठबंधन उम्मीदवार की जगह निर्दलीय विशाल पाटिल को समर्थन दिया था। इससे शिवसेना का उम्मीदवार तीसरे स्थान पर पहुंच गया था।
मुख्यमंत्री पद पर असहमति
महाविकास अघाड़ी के अंदर मुख्यमंत्री पद को लेकर सहमति नहीं बन पाई।
2019 में उद्धव ठाकरे गठबंधन का चेहरा थे और जब उनकी सरकार गिरी तो उन्हें जनता की सहानुभूति भी मिली। लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी ने उन्हें सीएम उम्मीदवार घोषित करने से इनकार कर दिया और चुनाव बाद निर्णय लेने की बात कही।
सीएम पद को लेकर इस रस्साकशी ने गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए। उन सीटों पर, जहां कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) दोनों मजबूत स्थिति में थीं, वहां पर यह मतभेद गठबंधन को नुकसान पहुंचा गया।
कांग्रेस की कमजोर लीडरशिप
महाविकास अघाड़ी के तहत कांग्रेस सबसे ज्यादा 102 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन पार्टी के पास कोई राज्यव्यापी लोकप्रिय चेहरा नहीं है।
प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले केवल विदर्भ क्षेत्र तक सीमित रहे, जबकि देशमुख परिवार लातूर से बाहर नहीं निकल सका। मुंबई जैसे प्रमुख क्षेत्र में कांग्रेस कोई प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाई।
लोकसभा चुनाव में दलित और संविधान से जुड़े मुद्दों पर कांग्रेस ने विदर्भ में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार इन मुद्दों को लेकर पार्टी ने कोई मजबूत रुख नहीं अपनाया।
हालांकि, किसानों के लिए कांग्रेस के वादे को चुनावी गेमचेंजर माना जा रहा है। पार्टी ने कपास और प्याज के किसानों को राहत देने के लिए बड़े वादे किए हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में उसे कुछ समर्थन मिलने की उम्मीद है।
एग्जिट पोल क्या कहते हैं?
महाराष्ट्र में विभिन्न एग्जिट पोल के नतीजों से एनडीए को बढ़त मिलती हुई नजर आ रही है, जबकि इंडिया गठबंधन (महाविकास अघाड़ी) बहुमत से दूर दिख रही है।
Peoples Pulse: एनडीए को 175-195 सीटें, इंडिया गठबंधन को 85-112 सीटें।
पी मार्क: एनडीए को 137-157, इंडिया को 126-146।
MATRIZE: एनडीए को 150-170, इंडिया को 110-130।
चाणक्य Strategies: एनडीए को 152-160, इंडिया गठबंधन को 130-138।
क्या बदला 4 महीने में?
महाविकास अघाड़ी, जिसने लोकसभा चुनाव में प्रभावशाली प्रदर्शन किया था, अब विधानसभा चुनाव में कमजोर होती दिख रही है। इसका कारण गठबंधन के भीतर अंतर्कलह, सीट बंटवारे में विवाद, कमजोर नेतृत्व और स्पष्ट सीएम चेहरे का अभाव है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि महाविकास अघाड़ी इन चुनौतियों से कैसे निपटती है और चुनाव के अंतिम नतीजे क्या संकेत देते हैं।