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November 22, 2024 9:50 am

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उत्तर प्रदेश का काला सच : खनन माफिया और सरकारी तंत्र का गठजोड़

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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के लखनऊ जनपद के सरोजिनी नगर तहसील क्षेत्र में अवैध खनन का मामला एक गंभीर और ज्वलंत मुद्दा है। ग्राम पंचायत उम्मेद खेड़ा और थाना बन्थरा क्षेत्र से शुरू होकर, यह समस्या थाना असोहा, जनपद उन्नाव तक विस्तृत है।

इस अवैध कारोबार में ठाकुर समाज से जुड़े खनन माफिया मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। इनके प्रभाव का विस्तार इतना गहरा है कि यह पूरे प्रशासनिक तंत्र पर अपनी पकड़ बना चुके हैं, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है और कानून-व्यवस्था के साथ-साथ राज्य के आर्थिक संसाधनों पर भी असर पड़ता है।

खनन माफियाओं के इस जाल के कारण उत्तर प्रदेश सरकार को भारी राजस्व हानि का सामना करना पड़ता है। मिट्टी खनन के व्यापार से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की अवैध आय होती है, लेकिन इस कारोबार की वजह से राज्य को वैध राजस्व से वंचित होना पड़ता है।

चौंकाने वाली बात यह है कि, इस गोरखधंधे के बारे में जानकारी होने के बावजूद, स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस अपनी आंखें मूंदे हुए हैं। कुछ मामलों में तो अधिकारी स्वयं इस अवैध खनन से लाभान्वित होते हैं, जिससे इस समस्या का हल निकलना और भी मुश्किल हो जाता है।

खनन माफियाओं के अलावा, प्रॉपर्टी डीलर, किसान यूनियन के कुछ नेताओं और भूमाफियाओं का प्रभाव इस क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। ये लोग न केवल खनन को बढ़ावा देते हैं बल्कि ग्रामीण इलाकों में दहशत का माहौल भी बनाते हैं। इनका गुंडाराज इस कदर बढ़ चुका है कि आम नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ महसूस करते है।

योगी आदित्यनाथ सरकार, जो ‘सख्त शासन और कानून व्यवस्था’ के वादे के साथ सत्ता में आई थी, अब इस मुद्दे पर जनता के आक्रोश का सामना कर रही है। इस तरह के भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई की कमी के कारण जनता में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। लोगों का मानना है कि जब तक प्रशासनिक और राजनीतिक तंत्र पूरी तरह से पारदर्शी और जवाबदेह नहीं बनता, तब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।

खनन माफियाओं के आतंक की चर्चा करते समय यह समझना आवश्यक है कि इनके अवैध काम के पीछे का डर और आतंक कैसे काम करता है। ये माफिया न केवल अवैध खनन का संचालन करते हैं बल्कि उनके नेटवर्क की गहराई और ताकत इतनी मजबूत होती है कि स्थानीय लोगों और अधिकारियों को उनके खिलाफ बोलने से डर लगता है।

इन खनन माफियाओं ने अपने रसूख और दबदबे का ऐसा जाल बिछा रखा है कि आम ग्रामीण और स्थानीय निवासी उनसे सीधे तौर पर टकराने की हिम्मत नहीं कर पाते। जब कोई व्यक्ति इनके अवैध कार्यों का विरोध करने की कोशिश करता है, तो उन्हें धमकियों का सामना करना पड़ता है। कई मामलों में, विरोधियों पर झूठे मुकदमे दर्ज कराए जाते हैं या उन्हें शारीरिक नुकसान पहुंचाया जाता है।

प्रॉपर्टी डीलरों और भूमाफियाओं के साथ मिलकर ये माफिया आतंक का ऐसा माहौल बनाते हैं कि किसान और छोटे जमीन मालिक अपनी जमीनें सस्ते दामों पर बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। उनके साथ पुलिस और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत होने के कारण, शिकायतें भी अक्सर अनसुनी रह जाती हैं। जो लोग इनके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत करते हैं, उन्हें सामाजिक बहिष्कार, हिंसा और आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ता है।

इनके आतंक का असर सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव सरकारी तंत्र और नीति-निर्माण प्रक्रियाओं तक पहुंचता है। कई अधिकारी और नेता, जो इस अवैध धंधे से किसी न किसी प्रकार से जुड़े होते हैं, माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने से बचते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि इन अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जाता, जिससे माफियाओं का हौसला बढ़ता है और वे और अधिक ताकतवर होते जाते हैं।

इस तरह के माहौल में, जनता के बीच डर का माहौल बना रहता है और वे इस डर के कारण प्रशासन और कानून पर विश्वास खोने लगते हैं।

इस पूरे परिदृश्य में, यह आवश्यक है कि उच्च स्तर पर स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच हो और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। साथ ही, भ्रष्ट अधिकारियों और माफियाओं की मिलीभगत को तोड़ने के लिए एक ठोस और दीर्घकालिक रणनीति तैयार की जानी चाहिए। केवल तभी यह संभव होगा कि सरकार जनता का विश्वास जीत सके और राज्य में कानून-व्यवस्था को मजबूत बना सके।

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