ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट
वृंदावन। तुम कैसी मां हो। पूस में तुझे धूप बनना था। मेरी रक्षा को तेरा हाथ सिर पर होता। तू निष्ठुर निकली। जन्मते ही मुझे त्याग दिया। मैं तेरा ही अंश थी। मगर, मेरा अंग अब जख्मों से भरा है।
जन्मते ही झाड़ियों में तूने फेंक दिया। पीछे मुड़कर भी नहीं देखा और इधर कुत्तों ने मेरे शरीर को नोच डाला। एक हाथ तो शरीर से अलग ही कर दिया। मेरा शरीर मंगलवार को जिस किसी ने भी ठाकुर बांकिबिहारी मंदिर से थोड़ी दूर सूरज घाट के पास खेतों में देखा, तुझे कोसा।
मां मैं तो आपकी ही बेटी थी, फिर इतना निष्ठुर कैसे हो गईं। नौ माह कोख में रखकर पाला। फिर क्या मजबूरी आ गई। आप तो मुझे बैग में फेंककर चली गईं, लेकिन कुत्तों ने बाहर निकाल मेरा हाथ काट लिया। छाती पर इतने जख्म किए कि मैं बता नहीं सकती। मां, आपको याद करके खूब रोई, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। तेरी कोख में मैने तो नए संसार की रचना ही कर ली थी। सोचा था कि मां और पापा का प्यार मिलेगा।
दोस्तों संग खिलखिलाऊंगी। स्कूल जाऊंगी, खूब पढ़ूंगी। पापा का नाम रोशन करूंगी। आप गर्व से कहतीं कि ये मेरी बेटी है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इस तरह लावारिस फेंक दिया जाएगा। जिन हाथों को आपको चूमना था, उसे कुत्ते नोच खाएंगे।
दर्जनों महिलाएं मुझे देखने आईं थीं, खून से लथपथ निर्जीव देख रो पड़ीं। एक ने तो आपकी मजबूरी भी गिनाई। मैं सबकी बातें सुनती रही। फिर सोचा क्या मुझे एक बेटी होने के कारण ये सजा दी गई। मां आपने चाहे मेरे साथ जो किया, लेकिन मैं आपकी बेटी हूं। आपको हमेशा दुआएं दूंगी। अब पुलिस मेरा पोस्टमार्टम करा रही है। बस अपने ठाकुर बांकेबिहारी से यही कामना करूंगी कि किसी बेटी को अब ऐसी सजा न मिले।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."