आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
जिन राज्यों में चुनाव हैं वहां मुख्य रूप से बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो कम से कम ऐसे ही हालात हैं. बीएसपी प्रमुख मायावती ने एमपी और छत्तीसगढ़ के चुनावों के लिए कुछ स्थानीय पार्टियों के साथ चुनावी गठबंधन किया है. पिछली बार के विधानसभा चुनावों में बीएसपी को तीनों ही राज्यों में सीटें मिली थीं, मध्य प्रदेश और राजस्थान में किंगमेकर बनकर उभरी थी.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. लोकसभा चुनावों के लिए एकला चलो के फार्मूले का ऐलान करने वाली मायावती ने विधानसभा चुनावों के लिए अलग तरह की रणनीति बनाई है. वे पहले ही इस बात की घोषणा कर चुकी हैं कि जरूरत पड़ने पर चुनाव बाद बीएसपी सरकार में शामिल हो सकती हैं. जुलाई के महीने के आखिर में दिल्ली में मायावती ने चुनावी राज्यों के नेताओं की बैठक बुलाई थी. इस मीटिंग के बाद ही मायावती ने अपना स्टैंड बदल लिया था. आमतौर पर चुनाव से पहले तक मायावती का ऐसा रूख नहीं रहता है, लेकिन इस बार सरकार में जाने का फैसला कर उन्होंने सबको चौंका दिया.
बीएसपी प्रमुख मायावती ने कहा कि बैलेंस ऑफ पावर बनाए रखने के लिए उन्होंने इस तरह का फैसला किया है. जनहित में इस तरह की मजबूर सरकार में शामिल होकर बीएसपी दलितों और आदिवासियों की बेहतरी का काम कर सकती है. मायावती के राजनीतिक गुरु कांशीराम का ये फार्मूला था. इसी रणनीति के तहत यूपी में बीएसपी ने पहले सपा और उसके बाद बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाई व चलाई. मायावती अब कांशीराम के फॉर्मूले को 2023 के विधानसभा चुनाव में आजमाना चाहती हैं, जो उनके लिए 2024 में गठबंधन के द्वार खोल सकता है.
बता दें कि 2018 में बसपा को मध्य प्रदेश में दो सीट, राजस्थान में छह और छत्तीसगढ़ में दो सीटें मिली थीं. बीएसपी ने राजस्थान और एमपी में कांग्रेस सरकारों को बाहर से समर्थन दिया था. दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. ऐसे में बसपा के समर्थन से ही कांग्रेस की दोनों ही सूबों में सरकार बन सकी थी, लेकिन उसके बाद मध्य प्रदेश में सियासी हालत बदल गए. कांग्रेस की जगह बीजेपी की सरकार बन गई, तो बसपा विधायकों ने पहले उन्हें समर्थन दे दिया, लेकिन पार्टी का एक विधायक बाद में बीजेपी में शामिल हो गया था.
क्या मायावती हैं एमपी-राजस्थान में तीसरी ताकत?
वहीं, राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीएसपी के सभी छह विधेयकों को कांग्रेस में शामिल करा लिया था. इससे पहले भी गहलोत ने बसपा के विधायकों को अपनी पार्टी में मिला था. इस बात से मायावती कांग्रेस से बहुत नाराज हो गई थीं. वे इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गई थीं. अशोक गहलोत ने बीएसपी के एक विधायक को मंत्री भी बनाया था.
मायावती को लगता है कि इस बार वे एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किंगमेकर बन सकती है. बीएसपी नेताओं से मिले फीडबैक के बाद मायावती आश्वस्त हैं कि कांग्रेस और बीजेपी के मुकाबले में उनकी पार्टी तीसरी ताकत बनकर उभर सकती है. इसकी वजह यह है कि दोनों ही राज्यों में अनुसूचित जाति यानी दलितों का बड़ा वोट बैंक है. इस तरह सत्ता की चाभी उनके हाथों में आ सकती है. अगर त्रिशंकु नतीजे आते हैं तो बसपा बाहर से समर्थन देने के बजाय सरकार में शामिल होकर अपनी बातें मनवा सकती है और भविष्य की राह में सियासी कदम बढ़ा सकती है.
मायावती इस बार किसी भी सूरत में पिछली बार की गलतियों को दोहराने के मूड में नहीं हैं इसलिए उनका पूरा फोकस अब विधानसभा चुनावों पर है और ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर है. राजस्थान और मध्य प्रदेश पर बसपा का खास फोकस है. मायावती को सबसे अधिक उम्मीदें राजस्थान से हैं, जहां बीएसपी चीफ ने अपने भतीजे और सबसे भरोसेमंद आकाश आनंद को चुनाव की जिम्मेदारी दी है. बीएसपी में नंबर दो और पार्टी के नेशनल कॉर्डिनेटर आकाश वहां लगातार रोड शो कर रहे हैं.
बीएसपी का रोल महत्वपूर्ण
राजस्थान के भरतपुर, झुंझुनूं, अलवर और बीकानेर जैसे इलाकों में बीएसपी का अच्छा खासा प्रभाव है. पार्टी अब तक छह उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है. मध्य प्रदेश में भी आकाश आनंद ताबड़तोड़ दौरे और रैलियां करके सियासी माहौल बसपा के पक्ष में बनाने में जुटे हैं. अब बहुत जल्द मायावती राजस्थान में चुनाव प्रचार शुरू करने वाली हैं. 2008 और 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जरूरी बहुमत नहीं मिला था. इन दोनों चुनावों में बीएसपी के छह-छह नेता जीत कर विधायक बने थे. सीएम अशोक गहलोत ने दोनों ही बार बीएसपी के विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया था इसलिए मायावती ने इस बार सारा झंझट खत्म करते हुए पहले ही जरूरत पड़ने पर सरकार में जाने का फैसला कर लिया है.
मध्य प्रदेश को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के सरकार बनाने के अपने-अपने दावे हैं. इन दावों से ठीक अलग मायावती ये मान कर चल रही हैं कि इस बार एमपी में किसी को बहुमत नहीं मिलने वाला है. इस हालात में बीएसपी का रोल महत्वपूर्ण हो सकता है. अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बीएसपी ने एमपी की लोकल पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से चुनावी तालमेल कर लिया है. मायावती ने ट्वीट करके कहा कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ चुनावी समझौता करने के अलावा, मिजोरम को छोड़कर, राजस्थान और तेलंगाना इन दोनों राज्य में अकेले ही बिना किसी से कोई समझौता किए हुए बीएसपी चुनाव लड़ रही हैं और इन राज्यों में वह अच्छे रिजल्ट की उम्मीद करती हैं.
मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 178 पर बीएसपी और जीजीपी 52 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. मायावती की रणनीति ये है कि दलित और आदिवासी वोटर मिलकर इस गठबंधन की तकदीर बदल सकते हैं. मध्य प्रदेश में दलित और आदिवासी वोटर काफी निर्णायक हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर हुई थी. किसी को बहुमत नहीं मिला. बीएसपी और दूसरी पार्टियों के बाहर से समर्थन की बदौलत कांग्रेस ने सरकार बना ली. मायावती का इरादा इस बार ऐसे हालात बनने पर सरकार के अंदर रहने की है.
कांग्रेस और बीजेपी में बराबरी का मुकाबला
छत्तीसगढ़ के चुनाव के लिए भी मायावती ने एमपी वाला गठबंधन किया है. पिछली बार कांग्रेस को यहां दो तिहाई बहुमत मिला था. मायावती की पार्टी के नेताओं की राय है कि इस बार कांग्रेस और बीजेपी में बराबरी का मुकाबला हो सकता है. ऐसे में अगर सरकार बनाने से कोई पार्टी चार सीटों से पीछे रह जाती है फिर तो मायावती किंगमेकर हो सकती हैं. छत्तीसगढ़ में भी बीएसपी ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से ही गठबंधन किया है. बीएसपी 53 और जीजीपी ने 37 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है.
बसपा के प्रदेश प्रभारी राम जी गौतम ने बताया कि बीएसपी अब तक 9 टिकटों का ऐलान कर चुकी है. पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन किया था. तब बीएसपी दो और जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ यानी जेसीसी पांच सीटें जीतने में कामयाब रही थी.
2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर देश की राजनीति दो खेमों में बंटी हुई है. एक तरफ बीजेपी की अगुवाई में एनडीए है, दूसरी ओर कांग्रेस के नेतृत्व में INDIA गठबंधन है, लेकिन मायावती ने दोनों गठबंधनों से बराबर की दूरी बना रखी है. लोकसभा चुनाव को लेकर उनकी पूरी रणनीति राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों पर टिकी है. अगर उनकी पार्टी किसी भी राज्य में किंगमेकर बनने में कामयाब रहीं तो फिर उनकी राजनीति के पंख लग सकते हैं.
कठिन दौर से गुजर रही हैं मायावती
मायावती ने हमेशा राजनीति अपनी शर्तों पर की है, लेकिन यूपी के 2022 विधानसभा चुनाव से ही वे कठिन दौर से गुजर रही हैं. बीएसपी का सियासी ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है और जनाधार वाले नेता भी साथ छोड़कर चले गए हैं. यूपी में बीएसपी का एक विधायक है और 13 फीसदी वोट हैं. ऐसे में बीएसपी अगर किसी गठबंधन का हिस्सा बनती है तो मायावती किस आधार पर बार्गेनिंग करेंगी. उनकी नजर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर है क्योंकि उसके नतीजे भविष्य की राह तय करेंगे. राजनीति में एक बाजी सारा गेम बदल देती है, क्या पता अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव मायावती के लिए गेम चेंजर साबित हों?
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."