चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
लखनऊ: जमीन की रार, लव अफेयर और छिटपुट विवाद यूपी में होने वाली हत्याओं की सबसे बड़ी वजह हैं। यूपी (up crime) में 2017 से लेकर 2021 के बीच हत्या के 19,644 मामले दर्ज हुए। इनमें से 11,515 मामलों में हत्या की वजह जमीन, पारिवारिक, आपसी विवाद, छिटपुट झगड़े, अवैध संबंध और लव अफेयर से जुड़े थे।
यूपी में बीते पांच साल में सबसे ज्यादा 3,021 हत्याएं जमीनों के लिए हुई हैं। देवरिया के फतेहपुर से पहले 17 जुलाई 2019 में सोनभद्र के उम्भा गांव में जमीन विवाद को लेकर हुए नरसंहार ने पूरे देश को हिला दिया था। जमीन कब्जे को लेकर हुए विवाद के बाद आदिवासियों पर हुई फायरिंग में 11 लोगों की जान चली गई थी। जमीन विवाद के बाद आपसी रंजिश दूसरी सबसे बड़ी वजह है यूपी में हत्याओं की। बीते पांच वर्षों के दौरान यूपी में आपसी रंजिश को लेकर 2,165 लोगों की हत्या हो चुकी है। हालांकि साल दर साल इस तरह के मामलों में कमी आ रही है।
तीसरे नंबर पर यूपी में होने वाली हत्याओं की सबसे बड़ी वजह लव अफेयर हैं। बीते पांच वर्षों में यूपी में लव अफेयर के चलते 1,743 मर्डर हो चुके हैं। ये मामले अब भी यूपी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। वहीं अवैध संबंधों को लेकर यूपी में पांच वर्षों के दौरान 602 हत्याएं हो चुकी हैं। मामूली और छिटपुट विवाद में हत्याएं कर देना भी यूपी में आम चलन है। बीते पांच वर्षों में छिटपुट विवाद में हुई हत्याओं की संख्या भी काफी ज्यादा है। पांच वर्षों में मामूली विवाद में यूपी में 1659 हत्याएं हुई हैं। इसी तरह पारिवारिक विवाद को लेकर भी 1564 हत्याएं बीते पांच वर्षों में हुई हैं। जबकि पैसों के विवाद में यूपी में 597 हत्याएं हुई हैं।
राजस्व अधिकारी सक्रिय हों तो रोकी जा सकती हैं हत्याएं’
यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि जमीन विवाद के मामलों में हत्याएं तुरंत नहीं होती हैं। एक लंबी प्रक्रिया के बाद जब राजस्व के स्तर से निपटारा नहीं होता है तो खूनी संघर्ष की नौबत आती है। अक्सर कब्जे व नापजोख को लेकर विवाद होते हैं। राजस्व व तहसील के अधिकारी विवादों को लटकाए रहते हैं। कई बार भ्रष्टाचार भी इसकी बड़ी वजह होती है। डीएम व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के आदेशों के बाद भी नाप जोख नहीं होती है। अगर तहसील व राजस्व के अधिकारी समय पर कदम उठा लें तो हत्याओं को रोका जा सकता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."