आत्माराम त्रिपाठी के साथ संतोष कुमार सोनी की रिपोर्ट
बांदा । जैसा कि हम सभी जानते हैं कि किसी समय हमारे देश में चारों तरफ “घने जंगलों” के चलते तरह तरह के “पक्षियों” की चहचहाहट से सारा वातावरण “गूंज उठता” था। किन्तु समय बदला और लोगों ने विकास की आड़ में सब कुछ “तहस” “नहस” कर दिया जिसके चलते आज पक्षियों की संख्या सिर्फ ना के बराबर ही रह गयी है। जो भी बची हुयी है उसे “सुरक्षित” करना शायद हमारे देश के “प्रत्येक नागरिक” का कर्तव्य भी है।
एक पत्रकार रामकिशोर उपाध्याय को “राष्ट्रीय” पक्षी मोर के 4-5 बच्चे असहाय हालत में नजर आये जिसके लिये उपाध्याय ने शासन प्रशासन से उनकी माँ सहित बच्चों की सुरक्षा की गुहार लगाने का बहुत ही “सराहनीय कार्य” किया। जिसका संज्ञान लेते हुये “पशु विभाग” से डा०अभिशेक गुप्ता (पशुचिकित्साधिकारी) अवकाश होने बाद भी अपने मातहतों के साथ मौके पर पहुंच कर प्रारंभिक इलाज करते हुए अपना फर्ज बखूबी निभाया।
एक तरफ वन विभाग बांदा अमित श्रीवास्तव रेंजर को सूचना मिलने पर तीन घंटे देरी से मौके पर पहुंचे भी तो उन्होंने कहा कि मोर के बच्चों को अभी अपने पास रखें इनके संरक्षण करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है।
वहीं दूसरी तरफ सूचना पाते ही एक गंभीर बीमार जानवर का इलाज करने जा रहे डाक्टर अभिषेक नरैनी मौके पर पहुँच जन्मे राष्ट्रीय पक्षी मोर के बच्चों का समुचित इलाज कर उन्हें उचित “आहार” भी दिलाया। किंतु जिस विभाग की पशु पक्षियों को “संरक्षित” सुरक्षित रखने की जवाबदेही है उनकी “उदासीनता” साफ नजर आई। वन विभाग के दरोगा राम बहोरी एवं रेंजर धर्मराज द्विवेदी ने खबर देने के बाद भी मौके पर पहुंचना उचित नहीं समझा।

Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."