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November 22, 2024 7:44 pm

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ममतामई मिनी माता से क्या है सियासी दलों को फायदा? चर्चा हो रही है तेज…..सब लगा रहे जुगाड़

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रघू यादव मस्तूरी की रिपोर्ट 

रायपुर: छत्तीसगढ़ में सतनामी समाज को साधने बाबा गुरु घासीदास की जयंती हर साल सियासी दल मनाते हैं। इस बार सियासी दल मिनी माता (Mini Mata Kaun Hai) की जयंती को चुनाव से पहले इवेंट का रूप देने में लगे हैं। दरअसल, चुनाव में सतनामी समाज को साधने की कवायद दोनों राजनीतिक दल करते हैं। बाबा गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसंबर में पड़ती है। इसलिए चुनाव के ठीक पहले समाज को एक बड़ा संदेश देना है कि उनका दल सतनामी समाज के हितों की चिंता करता है। मिनी माता की जयंती मनाकर इस मैसेज को समाज के लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।

राज्य के आदिवासी इलाकों को छोड़ दें तो मैदानी इलाकों में ओबीसी वर्ग के बाद दूसरी सबसे बड़ी कम्युनिटी सतनामी समाज है। रायपुर संभाग, दुर्ग और बिलासपुर संभाग में सतनामी समाज का बड़ा प्रभाव चुनाव में देखने को मिलता है। सरगुजा और बस्तर संभाग में सतनामी समाज कुछ खास प्रभाव नहीं डाल पाता है। क्योंकि बस्तर और सरगुजा संभाग आदिवासी बाहुल क्षेत्र है। वहीं, प्रदेश में 10 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो कि एससी कम्युनिटी के लोगों के लिए आरक्षित है। पिछले विधानसभा चुनाव में सतनामी समाज ने एकजुट होकर कांग्रेस के पक्ष में वोट किया था, जिसका नतीजा साल 2018 के चुनाव में साफ देखने को मिला।

वहीं, 10 विधानसभा सीटों में से वर्तमान में 7 कांग्रेस के पास है, दो बीजेपी और एक बसपा के पास है। इनमें से एससी वर्ग की दो सीटें सरायपाली और सारंगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशियों ने 50-50 हजार के बड़े वोट के अंतराल से जीत दर्ज की थी। अब साल के आखिरी में छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस चुनाव में सतनामी वर्ग को साधने कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही मिनी माता की जयंती के उपलक्ष्य में कार्यक्रम करने जा रही है।

कौन हैं मिनी माता

साल 1931 में असम के नुवांगांव के ग्राम जमुनामुख में जन्मी मीनाक्षी देवी, जिन्हें आज छत्तीसगढ़ का सतनामी समाज ममतामई मां मिनीमाता के नाम से जानता है। साथ ही उनकी पूजा होती है। बताया जाता है कि असम में अकाल की स्थिति के दौरान मिनीमाता के दादा जीविकोपार्जन के लिए छत्तीसगढ़ के मुंगेली ग्राम में रहने लगे थे। मिनी माता की शुरुआती शिक्षा असम में हुई। इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ में अपने आगे की पढ़ाई की।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि राज्य में शुक्ल बंधुओं का राज हुआ करता था। प्रदेश की राजनीति में जो शुक्ल बंधुओं के खिलाफ वाला खेमा था, उसने मिनीमाता को सांसद बनवाया। वहीं, एससी समाज के बीच एक बड़ा मैसेज देने का काम किया, जिसमें मिनीमाता को ममतामई माता का नाम दिया।

वह सांसद रहीं और छत्तीसगढ़ के दलित समाज में उन्होंने काम किया। उस समय से ही एससी समाज के लोगों ने उन्हें समाज सुधारक के रूप में ममतामई मां मिनी माता का नाम दिया। समय के साथ वह राजनीति में सक्रिय होती गईं। उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई और सतनामी समाज में उन्हें देवी के रूप में पूजा जाने लगा।

सतनामी समाज के पास पहले से उनके संत बाबा गुरु घासीदास हैं। इनके बाद वह मिनी माता को पूजते हैं। आज पूरे प्रदेश में मिनी माता को छत्तीसगढ़ में बड़ा सम्मान दिया जाता है। वहीं, प्रदेश की कई योजनाओं को उनके नाम से चलाया जा रहा है। इसके साथ ही कई चौक चौराहे सड़कों का निर्माण मिनी माता के नाम पर किया गया है।

कैसा रहा मिनी माता का राजनीतिक सफर

साल 1955 में उपचुनाव जीतकर पहली महिला सांसद बनने का मिनी माता को गौरव प्राप्त हुआ। 1957 में एक बार फिर संसदीय क्षेत्र रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग से जीतकर सांसद बनीं। 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में संयुक्त संसदीय क्षेत्र रायपुर बिलासपुर दुर्ग में चुनाव जीतीं। साल 1967 में जांजगीर संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर दमदार प्रतिनिधि होने का गौरव प्राप्त किया।

राजनीति के जानकार बताते हैं कि पंडित रविशंकर शुक्ल के समय मिनी माता रायपुर से सांसद चुनी गईं। ‌ देश के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पंडित रविशंकर शुक्ल जैसे बड़े नेता मिनी माता का सम्मान करते थे।

मिनी माता ने राजनीति में रहते हुए बाल विवाह, दहेज, छुआछूत, गोवध जैसे कार्यों का विरोध किया। साल 1972 के अगस्त माह में दिल्ली से रायपुर आते वक्त मिनी माता का सड़क दुर्घटना में दुखद निधन हो गया था।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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