आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ : समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव विपक्षी एकता की बैठक में शामिल होने के लिए बेंगलुरु में है। वहां की उनकी एक तस्वीर समाजवादी पार्टी के ट्विटर हैंडल से ट्वीट की गई है। तस्वीर में बसपा से सपा में आए लालजी वर्मा, रामअचल राजभर से लेकर सहयोगी अपना दल(कमेरावादी) की मुखिया कृष्णा पटेल तक शामिल हैं। विपक्षी एकता से पहले ‘आंतरिक एकता’ को दिखाती यह तस्वीर अखिलेश यादव की बचे हुए सहयोगियों को सहेजने की कवायद मानी जा रही है। चुनाव के पहले ‘भगदड़’ रोकने की एक बड़ी चुनौती उनके सामने है।
2022 के विधानसभा चुनाव के पहले समाजवादी पार्टी को इच्छित नतीजे भले नहीं मिले लेकिन पार्टी के वोट बेस में व्यापक विस्तार हुआ था। इसकी बड़ी वजह चुनाव के पहले भाजपा व बसपा छोड़कर आए नेताओं से बना मोमेंटम था। पिछड़ी-अति पिछड़ी जातियों के प्रभावी चेहरों की सपा से एंट्री में पार्टी गैर-यादव ओबीसी वोटों में भागीदारी बढ़ाने में सफल रही। साथ ही चुनाव के ठीक पहले सत्तारूढ़ दल से इस्तीफा देकर मंत्रियों-विधायकों के सपा में आने से यह मेसेज भी गया कि मुख्य विपक्षी दल के तौर पर भाजपा से वही मुकाबिल है। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले सपा के गठबंधन की गांठ कमजोर पड़ गई है। महान दल, सुभासपा जैसे सहयोगी पहले ही साथ छोड़ चुके हैं। ओमप्रकाश राजभर लगातार सपा पर हमलावर हैं। रालोद को लेकर संशय बना हुआ है। दारा सिंह चौहान के भाजपाई होने के बाद कुछ और चेहरों के पाला बदलने की कोशिशें तेज हैं।
लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी की बैठकों में अखिलेश संवाद व समन्वय बेहतर करने की लगातार नसीहत दे रहे हैं। हालांकि, उच्च स्तर पर भी यह संकट बना रहा। विधानसभा चुनाव के पहले भी सहयोगी दलों व नेताओं की ओर से संवाद को लेकर शिकायतें आ रही थीं। अखिलेश के करीबी कुछ नेता इसको लेकर लगातार उनके निशाने पर थे। चुनाव के बाद पार्टी सत्ता से दूर रह गई और आने वालों की उम्मीदें भी धूमिल। ऐसे में पार्टी व उसके मंचों पर प्रमुखता से जगह ही उनकी आखिरी उम्मीद थी। हालांकि, बहुत से चेहरों को इस स्तर से भी निराशा हाथ लगी। टिकटों के चयन से लेकर रणनीतिक निर्णयों में उपेक्षा के सवाल भी मुखर रहे। इसलिए, ऐसे चेहरों ने दूसरी जगहों पर संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। भाजपा की रणनीति भी है कि वह विपक्ष के अधिक से अधिक चेहरों को तोड़ सके जिससे एकजुटता दिखाने की विपक्षी कवायद को कुंद किया जा सके।
सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद और अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। रालोद को बेंगलुरु की बैठक का पहले से ही न्योता था। सूत्रों के अनुसार, अपना दल कमेरावादी की मुखिया कृष्णा पटेल को बैठक का हिस्सा अखिलेश की पहल पर बनाया गया। सोमवार को विपक्षी दलों के डिनर का वह भी हिस्सा बनीं। इसे छिटकते सहयोगियों के उपेक्षा के आरोपों को थामने की दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है। लालजी वर्मा और रामअचल राजभर की भी अपनी बिरादरी और क्षेत्र में ठीक दखल है। इनके ऊपर भी भाजपा की नजरें हैं। ये खिसके तो पूर्वांचल में सपा के समीकरण कई सीटों पर खराब होंगे। हालांकि, अखिलेश ने दोनों को पहले ही अपनी राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनाया है। बेंगलुरु में उनके साथ तस्वीर साझा कर सपा ने यह संदेश देने की कोशिश की है जो आए हैं, उनका पूरा सम्मान है और पार्टी उनको अपने साथ जोड़े रखने के लिए हर जतन करेगी।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."