सोनाक्षी राव की रिपोर्ट
‘मैं अलग कमरे में सोता हूं। सभी भाई अपने-अपने कमरे में। पत्नी और बच्चे एक साथ एक अलग कमरे में। रात में वो बारी-बारी सभी भाइयों के कमरे में खुद ही आ जाती है। हम भाइयों को इससे कोई दिक्कत नहीं होती। हम सबने इस मामले में तालमेल बिठा लिया है।’
55 पार उम्र, धंसी आंखें और भौंहों पर सफेद बाल। इस व्यक्ति को इस बार देखकर एहसास होता है कि उन्होंने जो व्याख्या अभी-अभी अपने घर के बारे में की है उसका उन्हें अफसोस नहीं।
शिलहान गांव के जगतराम और उनके तीन छोटे भाइयों की शादी एक ही महिला, कांता देवी से हुई है। दो भाई अब दुनिया में नहीं है।
यह जानने के बाद मैंने उनसे पूछा, ‘जब आपकी पत्नी की शादी आपके भाइयों से हो रही थी, तब आपने मना नहीं किया?
जवाब था- ‘शादी तो मुझसे ही हुई थी। उनके साथ तो बस तय हो गया था कि रहना है। हम तो बस घर के बूढ़े-बुजुर्गों की मर्जी से चलते थे। उन्होंने हमसे जो कहा, हमने वो किया।’
मैंने फिर सवाल किया…आपको नहीं लगता कि ये गलत है?
जगतराम कहने लगे, ‘ये रिवाज है, मुझे गलत नहीं लगता। इससे घर में बंटवारा नहीं होता। हम पहाड़ी लोग हैं। कोई यही रहकर चरवाही कर लेता है, तो कोई काम की तलाश में दूसरे शहर चला जाता है। ऐसा ही मेरे घर में हुआ। इस वजह से मेरे सारे भाई घर पर कम ही आते हैं।’
हिमाचल प्रदेश के सिरौमर का हाटी समुदाय, ये वो बिरादरी है जो बहुपति प्रथा में विश्वास रखता है। सितंबर 2022 में इन्हें ST यानी अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। इनकी कुल आबादी लगभग 2.5 लाख की है।
भोपाल से 14 घंटे का सफर तय कर चंडीगढ़ से मात्र 200 किलोमीटर दूर मैं इस समुदाय के बीच, हरिपुरधार पहुंचती हूं। हरिपुरधार स्थानीय कस्बा है। यह सिरमौर के जिला मुख्यालय नाहन से 85 किलोमीटर दूरी पर है।
39 साल की उत्तमू देवी आंगनबाड़ी केंद्र चलाती हैं। इस आंगनबाड़ी में पढ़ने वाला एक बच्चा, उनके पति का है और दूसरा देवर का। साल 2006 की 7 फरवरी को जब दीपराम से उनकी शादी हुई तो शर्त ही यही थी कि उन्हें अपने देवर के साथ भी रहना पडे़ेगा।
उत्तमू देवी बताती हैं, ‘ये (पति) बोले तो मुझे देवर के साथ रहना पड़ा। ये अगर कहते कि ऐसा नहीं करना है तो मैं भी नहीं करती। पहले मैं तो मुकर रही थी फिर शादी के लिए यह शर्त रख दी गई तो मैं और क्या करती। ’
आपको बुरा नहीं लगता कि देवर के साथ भी रहना पड़ता है? मैंने फिर सवाल किया।
उत्तमू कहती हैं, ‘अब तो 17-18 साल हो गए है, अब बुरा नहीं लगता। पहले इस बारे में सोचते भी थे, लेकिन एक स्त्री कर ही क्या सकती है। खासकर तब जब आपने किसी से प्रेम विवाह किया हो।’
आपने प्रेम विवाह किया है, इसके बावजूद शादी के बाद पति और देवर दोनों से एक बराबर प्रेम कैसे करती हैं?
सवाल खत्म होते ही जवाब मिलता है, ‘नहीं-नहीं। प्रेम तो मैं इनसे यानी अपने पति से ही करती हूं। लेकिन रिवाज की वजह से देवर के साथ भी रहना पड़ता है।’
अब मैं यह जानना चाहता था कि बच्चों को इस वजह से किस तरह की दिक्कतें होती होंगी?
उत्तमू देवी कहती हैं- ‘उन्हें क्यों दिक्कत होगी। उन्हें तो बाप का नाम पहले ही दे रखा गया है। उन्हें पिता को लेकर कोई कंफ्यूजन नहीं है। बड़े होंगे तो वो अपने आप ही इस परंपरा को समझेंगे।
मैंने थोड़ा और कुरेद कर पूछना चाहा कि जब प्रेम किसी एक से करती हैं तो दूसरे के बच्चे को पालना कैसा लगता होगा?
उत्तमू देवी लगभग बिफर कर कहती हैं, ‘वो बच्चा तो मेरा भी है। नौ महीने तो मेरे पेट में रहा। मैं तो मां हूं न। पति और देवर में प्रेम कम ज्यादा हो सकता है। बच्चों में नहीं, सब बराबर हैं एक मां के लिए।’
आपको नहीं लगता कि आपके साथ गलत हुआ?
‘नहीं जी, गलत की क्या बात है। यहां सब के साथ यही होता है। मुझे इससे कोई शिकायत नहीं।’
उत्तमू देवी के पति दीपराम भी बगल में बैठे हैं और उनके कई जवाबों के बीच में टोक चुके हैं। जमादारी (मजदूरी) करके पेट पाल रहे दीपराम और उत्तमू स्कूल में साथ पढ़ते थे। तब से दोनों के बीच प्रेम है।
अपने प्रेम विवाह की कहानी दीपराम खुश होकर बताते हैं, ‘मैंने ही इसे प्रपोज किया था। लेकिन शादी अकेले से नहीं हो सकती थी।
मैंने पूछा, क्यों?
दीपराम कहने लगे, ‘इस तरह की परंपरा और शादी से भाइयों के बीच प्यार बना रहता है। घर में झगड़ा नहीं होता है।
आपका मतलब यह है कि जहां एक ही विवाह होता है, वहां सिर्फ झगड़ा ही होता है?
कहने लगे, ‘नहीं। मेरा वो मतलब नहीं। ऐसी शादी के लिए एक मर्द को अपना बड़ा दिल करना पड़ता है। मैंने कुछ सोच कर ही उत्तमू से कहा था कि मेरे भाई से भी शादी करनी होगी।
अच्छा, क्या सोचा था आपने? मैंने तुंरत सवाल किया। मैं उनकी प्लानिंग समझना चाहता था।
जवाब आया, देखिए, पहाड़ के लोगों के पास जमीन कम होती है। थोड़ी सी जमीन है। सारे भाइयों की अलग-अलग बीवीयां होंगी, बच्चे होंगे तो यह सब में बंट जाएगा। इस समय हम खुश हैं।
परिवार तो ऐसे ही चलता है। यह तर्क देकर दीपराम ने हमें चाय-पानी पूछ लिया। पूरी बातचीत में कई बार दीपराम के पास मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं था। वो बस मुस्कुरा कर परिवार, बड़े-बुजुर्गों का कहा, यही रीत-परंपरा है इसका हवाला देकर बात टाल देते हैं।
मैं उनके बच्चों से बात करना चाहता था। उन्होंने साफ मना कर दिया। दीपराम का कहना था कि वो उन्हें इसमें नहीं ‘घसीटना’ चाहते। उत्तमू देवी भी नहीं चाहती हैं कि उनके बच्चों का विवाह बहुपति प्रथा में हो।
मैं देवरों का पक्ष जानना चाहता था, जिन्हें भाभी के साथ रहने का अधिकार मिला है। मैंने पूछा कि देवरों से शादी बकायदा होती है या सिर्फ परंपरा को निभाया जाता है?
स्थानीय लोग कहते हैं, ‘नहीं देवरों के साथ शादी की रस्में नहीं होती, लड़की उसके साथ फेरे नहीं लेती। बस सेटलमेंट होता है। देवर चाहे तो किसी महिला से शादी कर सकता है। लेकिन ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है।’

Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."