आत्माराम त्रिपाठी
आज का सभ्य समाज औरत को कभी शक्ति रूपा के रूप में उसको मान्यता देता है तो कभी उसे अन्नपूर्णा देवी के रूप में तो कभी बंसुधरा के रूप में। यानी हर रूप में मां की मान्यता प्रदान करता है। किंतु यही सभ्य समाज इसी औरत को “लूटने खसोटने” में भी पीछे नहीं हैं। कहीं निर्भया कांड सुनने को मिलता है तो कहीं “दहेज” की बलबेदी पर चढ़ती हुई, तो कहीं इसी सभ्य समाज ने उसे “नगरबधू” बनाकर गरम गोस्त के बाजार में हरपल पीड़ा सहने को मजबूर किया और उसे लोग “वेश्या” की उपाधि दे हर पल अपनी जुंबा से वेश्या नाम से पुकारने लगे किन्तु उसे दलदल में बैठाने वाले कौन हैं?
नामों पर अगर देखें तो वेश्या ही एक ऐसा नाम है जिसे “हेय द्रष्टि” से देखा जाता है। किन्तु यही वह जगह भी है जहां समाज के अनगिनत लोग अपना चेहरा छुपा अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए कोई रात्रि के अन्धकार में तो कोई दिन के उजाले में चेहरा ढक कर पहुंचने में कोई संकोच नहीं करता हैं। इतना ही नहीं आज इस इंटरनेट के युग में अश्लीलता हावी होने के चलते ना जाने कितनी नाबालिग बच्चियों के साथ “वहशी दरिंदों” द्वारा दरिंदगी का शिकार होना एक बहुत ही चिंता एवं चिंतन का विषय बन चुका है जिसे आज का यही सभ्य समाज पराई बिपदा समझ अनदेखा कर कहीं न कहीं बहुत बड़ी भूल कर रहा है जो कि अपने आप में निंदनीय ही नहीं आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
जिस तरह से आए दिन यौन शोषण की सुर्खियां अखबारों के पन्नों में पढ़ने को मिलती शोसल मीडिया में देखने को मिलती हैं उससे लगता है कि हम किस दुनिया में है ? कंहा जा रहे हैं?इसके दुष्परिणाम क्या होंगे ? इसके लिए जिम्मेदार कौन है? स्वयं या समाज या फिर परवरिष या आस पास फैला वातावरण? नारा लगाते हैं “नारी” “सशक्तिकरण” का उसे दकियानूसी ख्यालो से आगे बढ़ नयी जिंदगी नए तरीके से जीने का अधिकार देने का पर वास्तव में ऐसा कुछ नहीं दिखाई दे रहा। जो नारा लगाता है वहीं सर्वप्रथम इसके विपरित कार्य करता दिखाई देता है। ऐसे में हम कैसे मान लें कि नारीसशक्तीकरण की पहल ईमानदारी से हो रही है या होगी इसमें बड़ा संशय है।
नारी ना…री शत्रु नहीं मित्र है वह अपने मित्र के साथ हर सुख दु:ख में बराबर हाथ बंटाती है। फिर चाहे वह बेटी के रूप में हो या बहन मां पत्नी के वह हमेशा नर के साथ सहयोग के रूप में ही दिखाई देती है किन्तु बदले में उसे क्या मिलता है क्या मिला यह किसी से छिपा नहीं और हम बात करते हैं नारी सशक्तिकरण की अगर इसी को सशक्तिकरण कहते हैं तो असशक्ती करण का स्वरूप क्या है? कोई सभ्य समाज से जवाब देगा ?या फिर औरत की कहानी पहले भी अजब थी और आज तो वहशी दरिंदों द्वारा पल पल में प्रताड़ना से पीड़ित नजर आ रही है आखिर किसी ने सच ही कहा है की “औरत तेरी अजब कहानी दिल में दर्द और आंखों में पानी” जिसकी हकीकत आइने की तरह साफ नजर आ रही है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."