पूरन शर्मा
राजधानी में लडक़ी के साथ गैंगरेप हुआ था। पूरा देश इस घटना से आक्रोशित था। राजधानी की जनता ने प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर अपराधियों को सजा-ए-मौत देने की मांग के लिए कूच किया था। सरकार ने इतना पुलिस बल लगा दिया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय में चिडिय़ा भी पर नहीं मार सकती थी। लेकिन जन सैलाब इतना ज्यादा था कि काफी लोग नॉर्थ ब्लॉक परिसर में घुस गए थे। अपने प्रधानमंत्री को बचाने के लिए और अपनी मुस्तैदी दिखाने के लिए पुलिस ने भीड़ पर भीषण ठंड में पानी की बौछारें मारी, आंसू गैस के गोले दागे और अंत में भयंकर लाठीचार्ज भी किया, लेकिन जनचेतना ऐसी कि बावजूद इसके भीड़ टस से मस नहीं हो रही थी। पुलिस की इस नाकामी पर गृहमंत्री ने पुलिस के आला अफसरों की शाम को अर्जेन्ट बैठक बुलाई और कहा -‘आप लोग कानून और व्यवस्था बनाने में नाकाम रहे। क्या पुलिस जनता का मुंह देखने के लिए होती है? कल प्रधानमंत्री जी को कुछ हो जाता तो मैं क्या जवाब देता?’ एक पुलिस अधिकारी हिम्मत करके बोला-‘सर, हमने भरसक प्रयत्न किया कि भीड़ तितर-बितर हो जाये, लेकिन कॉज ऐसा था कि जन आक्रोश थामे नहीं थम रहा था। फिर भी हमने अपनी पूरी क्षमता से भीड़ को रोकने का पूरा प्रयास किया।’
आपने तो टीवी पर देखा होगा, भीड़ बहुत ज्यादा थी। लोकतंत्र में ज्यादा ज्यादती भी तो नहीं की जा सकती। अरेस्ट भी कितने लोगों को किया जाता? वहां तो हर नौजवान गिरफ्तारी के लिए तैयार था।’ ‘तुम मुझे समझा रहे हो। इतना दुस्साहस कि मेरे सामने बोलो। चौबीसों घण्टे पुलिस सुस्ताती है और मुफ्त में पेट भरती है और काम के वक्त पीठ दिखाकर पथराव से डरकर भाग लेती है। क्या यही पुलिस नौकरी है? तुम्हें और सख्ती से पेश आना चाहिए था। ऐसे तो देश का कानून और व्यवस्था से विश्वास उठ जाएगा। प्रधानमंत्री मुझे फेल्योर मानकर हटा देंगे अथवा मंत्रालय बदल देंगे तो आपका क्या बिगड़ेगा? सजा तो मुझे मिली न?’ गृहमंत्री ने सवाल उठाया। दूसरे आला अफसर ने कहा-‘वह क्या था सर, इतने बड़े मोब में हम और क्या कर सकते थे?’ गृहमंत्री लाल-पीले हो गए, बोले -‘यह मैं बताऊंगा कि आप क्या करें? पुलिस बलों से काम लेना ऑफिसर्स की ड्यूटी है। मेरे पास अकेली राजधानी नहीं, पूरे देश का लॉ एंड ऑर्डर है। मुझे हजार काम देखने होते हैं।मैं तुमसे पूछता हूं, तुमने गोली क्यों नहीं चलाई?’ ‘सर, यह आप क्या कह रहे हैं, निर्दोष जनता पर गोली चलाने का कोई कारण भी तो पैदा हो। रैली का प्रदर्शन था और रेप पीडि़ता के लिए न्याय की मांग थी, इसमें गोली चलाकर व्यर्थ में दस-बीस लोगों की जान क्यों लेनी थी? आप समझते थे कि गोली चलाना जरूरी था तो आप हमें ऑर्डर दे देते।’ एक आला अफसर ने अपनी बेबसी जताई। ‘डेमोक्रेसी में राजनेता ऐसा ऑर्डर नहीं देता। मैं जनता के प्रति जवाबदेह हूं। लेकिन आप लोगों को अराजकता और अव्यवस्था की हालत में गोली चलानी चाहिए थी। सब डर कर भाग जाते या फिर कफ्र्यू की घोषणा करते। उलटे आप लोगों ने लापरवाही की और जवाब मुझसे मांग रहे हो? मैंने कहा न, आप लोगोंं को गोली से फायरिंग करनी चाहिए थी।’ गृहमंत्री का गुस्सा सातवें आसमान पर था। सारे अफसरों के सिर झुक गए। उनकी बोलती बंद हो गई और गृहमंत्री मीटिंग को बीच में ही छोडक़र अपने केबिन में चले गए। पुलिस अफसर आपस में बतियाने लगे -‘क्या हमें ऐसे हालात में फायरिंग करनी चाहिए।’ एक पुलिस अफसर लापरवाही से बोला -‘अपना क्या जाता है। कल गोली चलवा देंगे, मंत्री जी ने जो कहा है।’ अफसर भी किंकत्र्तव्यविमूढ़ से उठ खड़े हुए और चले गए। रह-रह कर उनके कानों में गृहमंत्री जी की यही बात गूंज रही थी कि ‘तुमने गोली क्यों नहीं चलाई?’(साभार)
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."