मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
जन्म पाकिस्तान के कराची में हुआ, लेकिन लगाव भारत से रहा। बाशिंदे पाकिस्तान के रहे, लेकिन दिल भारत के लिए धड़कता रहा। भारत के प्रति उनके लगाव का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि उन्होंने कई मौकों पर पाकिस्तान के खिलाफ भी मोर्चा खोलने से गुरेज नहीं किया। उम्मीद है, आप समझ गए होंगे कि हम किसकी बात करने जा रहे हैं। दरअसल, हम आपको तारिक फतेह के बारे में बताने जा रहे हैं। कैंसर से जूझ रहे तारिक आज हम सबको हमेशा के लिए छोड़कर चले गए।
मशहूर पाकिस्तानी पत्रकार और लेखक तारेक फतह का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें कैंसर हो गया था और लंबे समय से बीमार थे। उनकी बेटी नताशा फतह ने उनके निधन की पुष्टि की है। इससे पहले शुक्रवार को उनके निधन की अफवाह सामने आई थी, जिसके बाद लोगों ने श्रद्धांजलि देना शुरू कर दिया था। देखते ही देखते ट्विटर पर तारेक फतह ट्रेंड करने लगा था। तारेक फतह से सीधे तौर पर जुड़े लोगों ने इसका खंडन किया था। हालांकि इस बार उनके निधन की पुष्टि सीधे तौर पर उनकी बेटी ने की है।
तारेक फतह की बेटी ने अपने पिता के निधन पर ट्वीट किया, ‘पंजाब का शेर। भारत का बेटा। कनाडा का प्रेमी। सच बोलने वाला। न्याय के लिए लड़ने वाला। शोषितों और वंचितों की आवाज तारेक फतह ने अपनी मुहिम आगे बढ़ा दी है। उनकी क्रांति उन सभी के साथ जारी रहेगी जो उन्हें जानते और प्यार करते थे। क्या आप इसमें जुड़ेंगे?’ पाकिस्तानी पत्रकार आरजू काजमी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
पाकिस्तान में हुआ था जन्म
तारेक फतह का जन्म 20 नवंबर 1949 में पाकिस्तान के कराची में हुआ था। 1987 में वह कनाडा चले गए। उन्हें अपनी रिपोर्टिंग के लिए कई तरह के पुरस्कार भी मिल चुके हैं। कनाडा समेत दुनिया की कई प्रमुख पत्रिकाओं और अखबारों में उनके लेख छपते रहे हैं। भले ही उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ हो, लेकिन वह पाकिस्तान की कमियों को उजागर करने में पीछे नहीं रहते थे। सेना और कट्टरपंथियों के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोल रखा था, जिसके कारण उनकी सोशल मीडिया पर लाखो फॉलोअर्स थे। 1970 में उन्होंने कराची सन के लिए एक रिपोर्टर के रूप में काम शुरू किया। 1977 में तारेक फतह पर देशद्रोह का आरोप लगा था। जिया-उल हक शासन ने उन्हें पत्रकारिता करने से रोक दिया था। उन्हे अरबी भाषा भी आती थी, और वह कुछ दिन सऊदी अरब में भी रहे।
पत्रकारों ने दी श्रद्धांजलि
कनाडा में रहने वाले पत्रकार ताहिर गोरा ने तारेक फतह के साथ आखिरी शो का लिंक शेयर करते हुए लिखा, ‘भारी मन से मैं इस दुखद खबर को साझा कर रहा हूं कि हमारे मित्र, लेखक और एक्टिविस्ट तारेक फतह का आज सुबह देहांत हो गया। ओम शांति। रेस्ट इन पीस। उनका मेरे साथ आखिरी शो’ इसके साथ ही द जयपुर डॉयलॉग ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके साथ अपने आखिरी शो को शेयर किया।
तारिक इस्लामिक कट्टरपंथ के विरोध में खुलकर बोलते थे और इस्लाम में उदारवाद की खुलकर पैरोकारी किया करते थे, जिसकी वजह से कई बार इन्हें कट्टरपंथियों की आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ता था, लेकिन वह इन सबकी परवाह किए बगैर हमेशा ही अपने विचारों पर अडिग रहे, जिसकी वजह से भारत में इनके चाहने वालों की एक लंबी कतार है। वे भारतीय टीम चैनलों के डिबेटों में जमकर हिस्सा लेते थे और कई मसलों को लेकर वे भारत के पक्ष में बोलने से गुरेज नहीं किया करते थे, जिसकी वजह से उन्हें पाकिस्तान में आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ता था।
भारत के पक्ष में बोलने की वजह से उन्हें पाकिस्तानी पुलिस ने दो बार गिरफ्तार भी किया था। इसके बाद जनरल जिया-उल हक ने उन पर राजद्रोह का आरोप भी लगाया था। जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान में एक पत्रकार के रूप में काम करने से रोक दिया गया था। इसके बाद वे कनाडा चले गए थे और वहां पत्रकार के रूप में करने में जुट गए थे। तारिक ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उनके पूर्वज राजपूत थे, जिन्हें 1860 में जबरन इस्लाम कबूल करवा दिया गया था। उनकी खास बात यह थी कि तमाम प्रतिरोध के बावजूद भी वो भारत के पक्ष में बोलने से कोई गुरेज नहीं करते थे।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."