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19 January 2025 2:43 pm

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यूपी निकाय चुनाव में हर बार कैसे घटता गया ओबीसी कोटा ?

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट 

लखनऊ: चुनाव-दर-चुनाव लखनऊ नगर निगम के सदन में पिछड़ा वर्ग के पार्षदों की संख्या घटती गई है। जिला निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2006 में ओबीसी वर्ग के 39 प्रत्याशी नगर निगम सदन पहुंचे थे। इसके बाद साल 2012 में इनकी संख्या घटकर 38 हो गई तो साल 2017 में ओबीसी वर्ग के महज 31 प्रत्याशी सदन पहुंचे। चुनाव दर चुनाव रैपिड सर्वे के मुताबिक तय होने वाला ओबीसी कोटा भी घटता गया।

दस्तावेज के मुताबिक, साल 2006 में ओबीसी के लिए 26 सीटें आरक्षित थीं। इसके बाद साल 2012 में 22 सीटें हुईं तो साल 2017 में घटकर 21 हो गईं। इस बार भी ओबीसी के लिए 21 सीटें आरक्षित की गई हैं।

रैपिड सर्वे से चलता है पता

जानकारी के मुताबिक, ओबीसी और एससी की सीटें आबादी की तुलना में तय की जाती हैं। इसके लिए 2011 जनगणना को आधार बनाया जाता है। चुनाव से पहले वॉर्डों में ओबीसी की गणना के लिए रैपिड सर्वे होता है, जिसके आधार पर ओबीसी के लिए सीटें आरक्षित की जाती हैं।

इस बार चुनाव के लिए हुए रैपिड सर्वे के आधार पर 21 ऐसे वॉर्ड ओबीसी आरक्षित किए गए हैं।

’29 सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित होनी चाहिए’

इस पर 7 अप्रैल तक जिला प्रशासन में आपत्ति दर्ज करवाई जा सकती है। इस बीच गोमतीनगर विस्तार निवासी देवेश यादव ने आपत्ति करते हुए दावा किया है कि ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए। इसके तहत 110 में कम से कम 29 सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित होनी चाहिए। उनका तर्क है कि आबादी के मुताबिक सीटों की गणना एससी के लिए है, न कि ओबीसी के लिए, लेकिन अफसर इसका पालन नहीं कर रहे। वहीं, एडीएम प्रशासन विपिन मिश्रा ने बताया कि शनिवार को आपत्ति दर्ज करवाने का पहला दिन था। सात अप्रैल तक आपत्तियां दर्ज की जाएंगी। इसके बाद सबकी सुनवाई कर निस्तारण होगा। फिर अंतिम आरक्षण लिस्ट जारी होगी।

अनारक्षित सीटों पर ओबीसी की संख्या भी घटी

अनारक्षित सीटों पर लड़कर जीतने वाले ओबीसी दावेदारों की संख्या भी पिछले दो चुनावों के दौरान घटी है। साल 2012 में अनारक्षित सीटों पर चुनाव लड़कर 16 ओबीसी प्रत्याशी सदन में पहुंचे थे। वहीं, साल 2017 में अनारक्षित सीटों पर चुनाव लड़कर जीतने वाले ओबीसी प्रत्याशियों की संख्या 11 पर पहुंच गई।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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