प्रशांत झा की रिपोर्ट
सहरसा: कभी कोशी में बंदूकों की गर्जन के साथ उछाले जाते थे जयकारा के साथ जो दो नाम। बन बैठे थे एक अगड़ा और एक पिछड़ा की शान। जमाना उन्हें याद करता था आनंद मोहन और पप्पू यादव के नाम। यह कहानी 1990 के दशक के परवान पाती रही। यह जमाना वह था तफरका (अलगाव) के धागे से बुना गया था समाज का ताना बाना। यह वह समय था जब आरक्षण समर्थन और विरोध के नाम पर गोलियां पहले बोलती थी और इंसान की जुवान बाद में। जाति के नाम पर वह एक दूसरे के भक्षक बने थे तो अपने जात के संरक्षक। जी हां! यह दौर लालू प्रसाद का था जहां कमंडल और मंडल की टकराहट से रोज नई इबारत गढ़ी जा रही थी।
शादियों की शहनाई में दब गई गोलियों की गूंज
आनंद मोहन के बेटे की शादी में पप्पू यादव का प्यार एक बार फिर बरसा। इसके पहले आनंद मोहन की बिटिया की शादी में गर्मजोशी से आनंद मोहन अपने जानी दुश्मन मिले। अब एक बार फिर आनंद मोहन के बेटे की शादी की शहनाई में पप्पू यादव ने प्यार की झोली इतनी फैलाई, जिसमें आनंद मोहन का सारी रंजिशे काफूर हो गए। दोनों गलबहियां डाल अदावत को हरी झंडे दिखा कर एक मिसाल कायम की।
वो जो था दुश्मनी का दौर
जातीय उन्माद में जब आनंद मोहन और पप्पू यादव समाज को बांट रहे थे तब कोशी का पहला इलाका गोलियों की आवाज से थर्रा रहा था। ऐसे कई मौके आए जब जब इनकी मुठभेड़ हुई और इस मुठभेड़ में न जाने कितनी की जान गई। दो घटना तो आज भी मानस पटल पर चस्पां है। और वह घटना है सहरसा का पामा और पूर्णिया का भंगरा कांड, जहां न जाने कितनी गोलियां चली। दरअसल, इनकी लड़ाई व्यक्तिगत नहीं थी। ये आपने अपने जाति के रोबिनहुड बने हुए थे। और ये दोनों ही अपनी जातीय सेना तैयार कर एक दूसरे को परास्त करने की जुगाड़ में लगे रहते।
कभी की थी एक दूसरे की मदद
एक दूसरे के जानी दुश्मन होने के बाबजूद आनंद मोहन ने इंसानियत का परिचय उस वक्त दिया जब उनके इलाके में पप्पू यादव की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। ग्रामीणों ने उन्हें घेर रखा था। तब ऐन वक्त पर आनंद मोहन सदलबल पहुंच कर उनकी सहायता की।
मिले तो सारे गम भुला कर मिले
दुश्मनी की धार से कम नहीं थी आनंद मोहन और पप्पू यादव के मिलन से उपजा प्यार। बड़ी गर्मजोशी से गले मिले। कुछ देर तक थपथपाई दोनों ने एक दूसरे की थपथपाई पीठ।भर आई आंखे। प्यार में झुके इस कदर की सर नवा कर लवली आनंद का किया अभिनंदन। ऐसा लगा की एक ख्वाब जो धीरे धीरे जमीन पर उतर रहा है। सच ही कहा है कि राजनीति में स्थाई न तो दुश्मन और न ही होते दोस्त।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."