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November 24, 2024 10:42 pm

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हम आपको बता रहे हैं इस गांव के बारे में जिसे “आईएएस की फैक्ट्री” कहा जाता है…

14 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

यूपी में एक ऐसा गांव है जिसे आईएएस की फैक्ट्री बोला जाता है। इस गांव ने राष्ट्र को कई बड़े अधिकारी दिए हैं। पूरे विश्व में इस गांव के किस्से सुने जाते हैं। गांव के लगभग हर घर में कम से कम एक अधिकारी है। राजधानी लखनऊ से करीब 300 किलोमीटर दूर बसे जौनपुर जिले के गांव माधोपट्‌टी की ये कहानी तो आप सब ने पढ़ी या सुनी होगी। लेकिन कई वर्ष से इस फैक्ट्री ने आईएएस अधिकारी बनाने कम कर दिए हैं। गांव के लोगो की माने तो यूपीएससी परीक्षा की रेस में 2019 से कोई बाजी नहीं मार पाया।

75 घरों का गांव है माधोपट्टी गांव

माधोपट्‌टी के निवासी श्रवण सिंह बताते हैं कि इस गांव में करीब 75 घर हैं। गांव के 51 लोग राष्ट्र भर में बड़े पदों पर तैनात हैं। वहीं, रणविजय सिंह ने बताया कि गांव से 40 लोग आईएएस, पीसीएस और आईपीएस अधिकारी हैं। इस गांव के कई लोग इसरो, भाभा और विश्व बैंक में भी सेवाओं के लिए जा चुके हैं।

2019 के बाद नहीं बना कोई अधिकारी

मीडिया रिपोर्ट और गांव के लोगों की मानें तो माधोपट्टी गांव से पहली बार वर्ष 1952 में डॉ इंदुप्रकाश आईएएस बने थे। उन्होंने यूपीएससी में दूसरी रैंक हासिल की। डॉ इंदुप्रकाश फ्रांस समेत कई राष्ट्रों के राजदूत रह चुके हैं। डॉ इंदुप्रकाश के बाद उनके चार भाई आईएएस अधिकारी बने। लेकिन 2019 के बाद इस गांव से कोई आईएएस आईपीएस अधिकारी बना हो, गांव वालों को नहीं मालूम। दरअसल, ऊंचे पदों पर पहुंचे ज्यादातर लोगों का गांव से नाता नहीं के बराबर रह गया।

माधोपट्‌टी के मॉडल विलेज न बनने की कसक

गांव माधोपट्‌टी के रणविजय सिंह की माने तो अफसर बने गांव के युवक-युवतियों ने अपने-अपने क्षेत्र में नाम रौशन किए। लेकिन गांव नहीं चमका सके। उच्च प्रशासनिक पदों पर जॉब करने वाले लोगों को इतनी फुर्सत नही मिली कि गांव के विकास को लेकर सरकारों का ध्यान आकर्षित कर सकें। रणविजय सिंह को इस बात की कसक है कि उनका गांव एक मॉडल विलेज के रूप में विकास नहीं कर सका। स्मार्ट और हाईटेक विकास योजनाओं से यह अभी भी अछूता है। हालांकि उन्हें दूसरी तरफ इस बात की खुशी भी है कि माधोपट्टी गांव ग्रामीण अंचल के युवाओं को प्रेरित कर रहा है।

गांव की बेटियों-बहुओं ने भी लहराया है परचम

एक के बाद एक-एक करके भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाते गये। जिसे देख लोग, गांव को आईएएस की फैक्ट्री कहने लगे। डॉ इंदुप्रकाश के चार भाईयों के बाद उनकी दूसरी पीढ़ी भी यूपीएससी परीक्षा पास करने लगी। वर्ष 2002 में डॉ इंदुप्रकाश के बेटे यशस्वी आईएएस बने। उन्हें इस परीक्षा में 31वीं रैंक मिली. वहीं, 1994 में इसी परिवार के अमिताभ सिंह भी आईएएस बने थे। वे नेपाल में राजदूत भी रहे. गांव से न सिर्फ पुरुष अधिकारी बने, बल्कि बेटियों और बहुओं ने भी परचम लहराया है। 1980 में आशा सिंह, 1982 में ऊषा सिंह और 1983 में इंदु सिंह अधिकारी बनी। गांव के अमिताभ सिंह की पत्नी सरिता सिंह भी आईपीएस रही हैं।

गांव के कई लोग रहे हैं पीसीएस अधिकारी

माधोपट्टी गांव से आईएएस के अतिरिक्त कई पीसीएस अधिकारी भी बने हैं। यहां के राजमूर्ति सिंह, विद्या प्रकाश सिंह, प्रेमचंद्र सिंह, महेंद्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह, विशाल विक्रम सिंह, विकास विक्रम सिंह, एसपी सिंह, वेद प्रकाश सिंह, नीरज सिंह और रितेश सिंह पीसीएस अधिकारी रहे हैं। गांव की महिलाएं भी पीसीएस अधिकारी बनी हैं। इसमें पारुल सिंह, रितू सिंह, रोली सिंह के अतिरिक्त गांव की बहू शिवानी सिंह पीसीएस अधिकारी बनीं. शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सामाजिक सेवा करने वाले गांव के निवासी रणविजय सिंह बताते है कि शिवानी सिंह के बाद से उन्हें और किसी को आईएएस, आईपीएस, पीसीएस बनने की जानकारी नहीं है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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