दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
बुंदेलखंड को उत्तर भारत का कालाहांडी माना जाता था। सरकारी अफसर बुंदेलखंड में तैनाती को सजा के रूप में देखते थे। `भौंरा तेरा पानी गजब किए जाए, गगरी न फूटे चाहे खसम मरि जाए` कहावत बुंदेली धरती पर पानी का संकट बताने को प्रचलित थी। आज जल जीवन मिशन के तहत हर घर नल से जल ने इस कहावत को झुठला दिया है। पानी के लिए गगरी उठाए महिलाओं की कतार नहीं दिखती। खेत-खलिहान जरूरत के हिसाब से लबालब नजर आते हैं। यहां से जल संरक्षण के लिए जखनी गांव जैसा माडल मिला है। खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ अभियान से जल संरक्षण की मिसाल पेश करने पर उमाशंकर पांडेय को जल योद्धा की उपाधि के साथ नीति आयोग में जल संरक्षण समिति के सदस्य बनने का सम्मान मिला। अधांव के रामबाबू तिवारी ने खेत का पानी खेत में-गांव का पानी गांव में अभियान चलाया, जिससे प्रभावित प्रधानमंत्री ने मन की बात में प्रशंसा की। जखनी और अंधाव की मिसाल से प्रभावित होकर किए गए प्रयास अब रंग ला रहे हैं।
जब बुंदेलों ने हाथ बढ़ाए तो झील और दो नदियां जी उठीं। किसी ने श्रमदान किया तो कोई श्रम करने वालों की मेहनत के लिए दान स्वरूप धन लेकर आ गया। इस मुहिम के अगुवा बने बांदा के डीएम रहे अनुराग पटेल, जिनके प्रयास ने नरैनी की विलुप्त हो रही गहरार व चंद्रावल नदी, 123 बीघा में फैली मरौली झील की बंजर धरती को पानी से लबालब कर दिया है। उन्होंने झील से अवैध कब्जे हटवाने के बाद जनसहयोग से खोदाई अभियान चलाया। स्वयं ही फावड़ा चलाकर मिट्टी की डलिया सिर पर उठाई तो लोग जुड़ते गए। सक्षम लोग दान देकर इसके सुंदरीकरण को आगे आ गए।
बांदा को पानीदार बनाने के लिए तत्कालीन डीएम ने अभियान चलाया। उसमें आमजन को जोड़ा और नतीजा यह निकला कि नदियों और झील की खोदाई-सफाई के लिए सक्षम लोगों ने बैकहोलोडर, ट्रैक्टर-ट्राली लगा दिए। मरौली झील के लिए स्वयं डीएम अनुराग पटेल, प्रशांत कुमार शुक्ला, रफीक मंसूरी, अमीनुद्दीन ने 51-51 सौ रुपये देकर इस महायज्ञ में आहुति डाली। 2100 और 1100 रुपये देने वालों में आनंद चक्रवर्ती, गुड़िया सिंह, पुष्पांजलि पाठक, संतोष गुप्ता जैसे नाम सहायक बने। ऐसे 20 दानदाताओं के नाम बोर्ड में भी लिखे गए हैं। इसी तरह नदियों की खोदाई अभियान में लगभग 200 लोग सहयोगी बने।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."