इरफान अली की रिपोर्ट
देवरिया। भाटपार रानी तहसील के लोगों ने धूमधाम से मनाया बरवफात यानी मोहम्मद साहब का जन्मदिन। इस जुलूस में अकीदत के साथ जश्ने ईद उल मिलाद उल नबी का जुलूस कस्बे के प्रमुख मार्गों पर निकाला गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मौलाना अहमद हुसैन वो ताहिर हुसैन तथा कस्बे के प्रमुख मार्गों पर चप्पे-चप्पे पर भारी संख्या में पुलिस बल मौजूद रहा। बताते चलें कि करोना काल के बाद लगभग 2 वर्षों के बाद जश्ने ईद उल मिलाद उल नबी का त्यौहार कस्बे में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कस्बे में दारुल उलूम मदरसे से यानी मेहरौना का जुलूस भी शामिल था। कस्बे में प्रमुख सड़कों से होते हुए स्टेशन रोड से भाटपार रानी जमा मस्जिद पर तथा विभिन्न गांव के यानी दुबौली सोहन पाल स्टेशन रोड की जुलूस भी शामिल रहे। हर चौराहे से होते हुए जुलूस आगे बढ़ती रही। लोग मिठाइयां और पानी बांटते रहे। जुलूस में लोग मिठाई और पानी पी के चलते रहे। धीरे-धीरे भाटपार रानी जमा मस्जिद पर आकर जुलूस को खत्म किया और शिरनी साथिया कराए। इस जुलूस में एहतराम और अकीदत का मिसाल देखा गया।
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जुलूस में शामिल हुए डॉक्टर जुनेद गुड्डू कुरैशी शम्स परवेज मुस्तफा मास्टर अदालत अंसारी चांदपुर ऐसी सर्फ उद्दीन कुरेशी इस्माइल अली इब्राहिम अली मुमताज अंसारी मंजूर अली मकबूल सिद्दीकी सोनू इतिहास लोग जुलूस में शामिल रहे।
बारावफात या फिर जिसे मीलाद उन नबी के नाम से भी जाना जाता है, यह दिन इस्लाम मजहब का एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि इसी दिन इस्लाम धर्म के संस्थापक मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था और इसके साथ ही इसी तारीख को उनका देहांत भी हुआ था।
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 12 रबी अल अव्वल की तारीख को पड़ने वाले इस दिन को पूरे विश्व भर के विभिन्न मुस्लिम समुदायों द्वारा काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग मस्जिदों में जाकर नमाज अदा करते हुए, मोहम्मद साहब के दिखाये हुए रास्ते को अपनाने का संकल्प लेते है।
बारावफात या फिर जिसे ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ के नाम से भी जाना जाता है, ईस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। पूरे विश्व भर में मुसममानों के विभिन्न समुदायों द्वारा इस दिन को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि मानवता को सच्चाई और धर्म का संदेश देने वाले पैंगबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म इसी दिन हुआ था और इसी तारीख को उनका देहांत भी हुआ था। ऐसा माना जाता है कि अपने इंतकाल से पहले मोहम्मद साहब बारह दिनों तक बीमार रहे थे।
बारा का मतलब होता है बारह और वफात का मतलब होता है इंतकाल और क्योंकि बारह दिनों तक बीमार रहने के पश्चात इस दिन उनका इंतकाल हो गया था इसलिए इस दिन को बारावफात के रुप में मनाया जाता है। यहीं कारण है कि इस्लाम में बारावफात को इतने उत्साह के साथ मनाया जाता है।
इसके साथ ही इस दिन को ई ए मीलाद मीलादुन्नबी के नाम से भी जाना जाता है। जिसका मतलब होता है मुहम्मद के जन्म का दिन क्योंकि मोहम्मद साहब का जन्म भी इसी दिन हुआ था। यही कारण है शिया जैसे मुस्लिम समुदाय द्वारा इस दिन को जश्न और उत्सव के रुप में भी मनाया जाता है।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."