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November 22, 2024 11:43 am

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कहां विलुप्त हो गया अष्टमी और नवमी को होने वाला नाटक…

13 पाठकों ने अब तक पढा

विरेन्द्र कुमार खत्री की रिपोर्ट

हसपुरा/औरंगाबाद। औरंगाबाद जिले के हसपुरा बाजार में दुर्गा पूजा के अवसर पर अष्टमी और नवमी को होने वाला नाटक लुप्त हो गया। लगभग दो दशक से यहां का रंगमंच अपनी पहचान खोता जा रहा है। उस जमाने में हसपुरा के अलावा आस-पास के क्षेत्रों में यहां का नाटक काफी लोकप्रियता हासिल की थी। इसका समृद्ध इतिहास लगभग 40 वर्षों से चला आ रहा था। यहां का नाटक देखने के लिए बिन बुलाए भीड़ लगती थी। कलाकारों का तीसरी पीढ़ी तक रंगमंच से जुड़ा रहा और बखुबी दायित्व निभाई। परन्तु आज कलाकारों में भी उतनी जिज्ञासा नही रही। ग्रामीण इलाकों से आए दर्शक नाटक देखने के लिए पूरी रात भटकते रहते है। दो पीढ़ो 40 वर्ष तक जो लोकप्रियता दर्शकों से बटोरी वह तीसरी पीढ़ी नही बटोर सकी थी। दूसरी पीढ़ी में अब तक तीन चेहरे ही अपनी पहचान बना पाए। नायक में अशोक कुमार जैन, खलनायक में मुस्तकीम कौसर एवं स्त्री की भूमिका में दरोगा साव। जबकि कॉमेडियन में स्व. जगदीश मेहता और स्व. बैजनाथ प्रसाद आर्य इन दोनों की जोड़ियां ने एक खास पहचान बनाई थी।

कहा जाता है कि दोनों कलाकार मंच पर आते थें तो दर्शक हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाते थे। रामेश्वर प्रसाद ने एक हिंटर के रुप में लोकप्रियता हासिल की थी। हसपुरा का यह भी इतिहास रहा है कि एक ही घर से पिता उनके बेटे, भाई कई घरों से रंगमंच से जुड़े। इनमें बैजनाथ आर्य, भगवान साव, जगनाथ प्रसाद और शंकर प्रसाद ये चार सहोदर भाई रंगमंच से जुड़े। बीरेंद्र कुमार खत्री, उपेंद्र खत्री और दीपनारायण लाल खत्री ये तीन सहोदर भाई और ओम प्रकाश गुप्ता, लखन प्रसाद गुप्ता दोनों सहोदर भाई जो तीसरे पीढ़ी में रंगमंच से एक साथ जुड़े थे। शिवधारी प्रसाद आर्य के बेटे सुरेश आर्य और कुंदन आर्य भी एक साथ रंगमंच से जुड़े हुए थे।

मुस्तकीम कौसर, मिस्टर, हबीब खरीफा मुस्लिम परिवार जो दुर्गा पूजा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर हसपुरा में हिन्दू-मुस्लिम का एकता का मिसाल कायम किया था। अचानक एक हादसे में हास्य कलाकार जगदीश मेहता का निधन हो जाने के बाद मंच उदास हो गया था। नन्हे लाल खत्री, बैजनाथ गोस्वामी, अवध लाल खत्री, प्रदीप कुमार, सुरेश प्रसाद आर्य, कुंदन आर्य,(दोनों सहोदर भाई), नरेश सिन्हा उर्फ बुलाकी(स्त्री पात्र), अशोक कुमार ज्वाला, विनोद प्रसाद, अनिल आर्य, विनोद शौंडिक, अजय शौंडिक, अखिलेश प्रसाद, कृष्ण गोस्वामी, मोहन प्रसाद और कई नाम है जो इस रंगमंच से जुड़े।

कैसे प्रेरणा मिली रंगमंच की

दुर्गा पूजा रंगमंच के कलाकार अशोक कुमार जैन ने बताया कि 50 वर्ष पूर्व दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां बाहर से नौटंकी पार्टी आई थी जो लोगों को प्रेरणा देकर चली गई। उसके बाद ठाकुड़बाड़ी के महंत स्व. डोमा साव के नेतृत्व में एक संगीत टीम तैयार हुई। जिसमें स्व. शिवधारी प्रसाद आर्य ने काफी सहयोग किया था। पहला रंगमंच नौटंकी के रुप में सत्य हरिश्चंद्र का मंचन किया गया। इसमें हबीब खरीफा, झपसी साव, टिपुरन पनेरी, जितवहन गोस्वामी, जितवहन लाल खत्री, दरोगा साव, पन्ना लाल खत्री, बासुदेव सोनी, गोपाल साव, गुप्तेश्वर हलुवाई, सेवक प्रसाद ने अभिनय किया था। कई कलाकार अब स्वर्गवास हो चुके और कई लोग अभी भी जीवित हैं।

इसके बाद मौर्य ध्वज, गरीब की दुनिया, सावित्री सत्यवान, पति भक्ति, पूरनमल जैसी अनेक नौटंकी संगीत में प्रत्येक वर्ष मंचन किया गया। कहा जाता है कि सावित्री सत्यवान में जगरनाथ उर्फ भोला ने मंच पर स्त्री का रौल में दो घंटे बिलाप किया था। जिससे सभी दर्शक रो पड़े थे। राजा भर्तहरि में अशोक जैन भर्तहरि का अभिनय कर रंगमंच पर अपनी एक खास पहचान बनाई।

तब तक रंगमंच एक मिसाल कायम स्थापित कर लिया था। सोच में बदलाव आया तो नौटंकी (संगीत) को परिवर्तन कर नाटक मंचन प्रारंभ हुआ। पहला नाटक स्व. युगल प्रसाद के निर्देशन में व्याकुल भारत नाटक का मंचन किया गया। हसपुरा के रंगमंच से कई गांव के लोगों ने प्रेरणा ली। अधिकांश गांवों में दुर्गा पूजा के बाद दीपावली पर्व सहित कई पूजा के अवसरों पर गांव-गांव नाटकों का मचन होने लगा। कुछ गांवों में नाटकों का मंचन आज भी जारी है। परंतु खुद का हसपुरा का मंच पूरी तरह आज लुप्त हो गया है। कलाकार अनिल आर्य का कहना है कि रंगमंच अभिनय की आत्मा है जो मर नही सकती।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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