दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
वाराणसी। डायट सभागार सारनाथ, वाराणसी में 11 सितम्बर को भारत तिब्बत सहयोग मंच के कानपुर प्रांत के संरक्षक अंतरराष्ट्रीय महामंडलेश्वर एवं राष्ट्रीय संत श्रीश्री 1008 स्वामी डॉ. अभिजितानंद पारिजात महाराज जी की अध्यक्षता एवं मुख्य अतिथि प्रभारी प्राचार्य डायट डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी, विशिष्ट अतिथियों डॉ.नीलम यादव (शोध प्रवक्ता, राज्य हिंदी संस्थान वाराणसी), डॉ. वीणा वादिनी (सहा.प्रोफे. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ), डॉ अजय (सहा. प्रोफेसर, बीएचयू), डॉ. बी.एल. विश्वकर्मा एवं पुस्तक के संपादक प्रमोद दीक्षित मलय, बांदा की गरिमामयी उपस्थिति में बेसिक शिक्षा उत्तर प्रदेश में कार्यरत 104 रचनाधर्मी शिक्षक-शिक्षिकाओं की प्रकृतिपरक रचनाओं पर आधारित ‘प्रकृति के आँगन में’ साझा संग्रह का लोकार्पण जौनपुर, गोरखपुर, गाजीपुर, मऊ, सोनभद्र, एवं वाराणसी के रचनाकारों एवं आमंत्रित श्रोताओं के सम्मुख मंचस्थ अतिथियों द्वारा करतल ध्वनि के मध्य किया गया।
इस अवसर पर उपस्थित श्रोता वर्ग को सम्बोधित करते हुए समारोह के अध्यक्ष स्वामी डॉ. अभिजितानंद पारिजात ने कहा कि जल, मृदा, वायु, ध्वनि प्रदूषण के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के रेडिएशन से भी पर्यावरण को नुक्सान हो रहा है। मानव द्वारा प्रकृति का अत्यधिक दोहन धरती पर बड़ा संकट का कारण बनता है। हमें प्रकृति के साथ जीने के पथ पर चलना पड़ेगा।
इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ मंचस्थ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन द्वारा हुआ। तत्पश्चात कार्यक्रम आयोजक शैक्षिक संवाद मंच की वाराणसी टोली द्वार सभी अतिथियों का बैज अलंकरण एवं पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत सत्कार किया गया।
कार्यक्रम की भूमिका एवं स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए कमलेश कुमार पांडेय ने शैक्षिक संवाद मंच द्वारा शिक्षक समाज में पढ़ने लिखने की संस्कृति विकसित करने के प्रयास अंतर्गत प्रकाशित साझा संग्रह ‘प्रकृति के आंगन में ‘ शामिल रचनाकारों, अतिथियों एवं आमंत्रित सुधी श्रोताओं का वंदन अभिनंदन किया। विशिष्ट अतिथि डॉ. अजय (सहा. प्रोफेसर, बीएचयू) ने भूमि से जुड़ने का आह्वान करते हुए विचार रखे कि हमारे अंदर प्रकृति प्रवहमान है। हम प्रकृतिमय हैं। पर विकास की यात्रा में प्रकृति पीछे छूट गयी है। लोकार्पित पुस्तक ‘प्रकृति के आंगन में’ आम जन को प्रकृति से जोड़ने में सहायक सिद्ध होगी।
मुख्य अतिथि प्रभारी प्राचार्य डायट डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी ने प्रकृति एवं मानव परस्पर सम्बन्धों में संतुलन साधने की बात करते हुए असंतुलन को प्राकृतिक विनाश के रूप में रेखांकित किया। डॉ. वीणा वादिनी ने कहा कि प्रकृति से जुड़ाव जन्म से हो जाता है। प्रकृति को संजोए रखना है ताकि प्रकृति मानव का भरण-पोषण करती रहे।
शोध प्रवक्ता डॉ. नीलम यादव ने कालिदास कृत अभिज्ञानशाकुन्तलम के मंगलाचरण का सस्वर गायन कर श्रोताओं को संस्कृत वांग्मय में प्रकृति की साधना, संरक्षण और स्तवन की समृद्ध परम्परा का बोध कराते हुए कहा कि प्रकृति के महात्म्य से ऋग्वेद की ऋचाएं लोक का मार्गदर्शन कर रही है तो आधुनिक संस्कृत साहित्य में भी प्रकृति के प्रति आत्मीयता का दर्शन दृष्टिगोचर है।
पुस्तक विमोचन के अवसर पर पुस्तक में शामिल रचनाकारों दुर्गेश्वर राय (गोरखपुर), आभा त्रिपाठी एवं राजेन्द्र प्रसाद राव (मऊ), शीला सिंह (गाजीपुर), डॉ. शालिनी सिंह (सोनभद्र), माधुरी जायसवाल, विजय मेंहदी एवं राजबहादुर यादव (जौनपुर), स्मृति दीक्षित, आलोक यादव, अनिल राजभर, अरविंद सिंह, कुमुद (वाराणसी) ने कविता पाठ एवं विचार व्यक्त किए।
सभी रचनाकारों को अतिथियों द्वारा अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र एवं पुस्तक की एक प्रति भेंट कर सम्मानित किया गया तथा कार्यक्रम आयोजकों कमलेश कुमार पांडेय, अनिल राजभर, अरविंद सिंह, कुमुद, आलोक यादव, स्मृति दीक्षित, डॉ. श्रवण कुमार गुप्त ने अतिथियों को अंगवस्त्र, सम्मान पत्र एवं स्मृति चिह्न भेंट कर श्रद्धा समर्पित की।
जौनपुर के शिक्षक राजबहादुर यादव एवं विजय मेंहदी ने फोटो फ्रेम में मढ़ी स्वरचित सरस्वती वंदना का उपहार भेंट किया। कृतज्ञता ज्ञापन डॉ. श्रवण कुमार गुप्त ने किया तो समारोह का काव्यमय संचालन अरविंद सिंह ने किया।
समारोह में अर्ध शताधिक शिक्षक-शिक्षिकाएं, रचनाकार, साहित्यकार एवं रंगकर्मी उपस्थित रहे। गायत्री त्रिपाठी, रुखसाना बानो, संतोष कुशवाहा, अर्चना सिंह, अजय सिंह, डॉ. उषा सिंह, रेखा वर्मा, रामसेवक यादव, अमित कुमार, सुरेंद्र प्रताप, गिरीश पांडेय, अंजुम, निर्मला देवी, आरती सिंह, स्नेहा श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे।आयोजकों द्वारा की गयी जलपान एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था एवं मधुर व्यवहार की खूब सराहना हुई।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."