राकेश तिवारी की रिपोर्ट
देवरिया। जिला के भागलपुर विकासखंड मईल थाना अंतर्गत ग्राम नेनुआ निवासी पंडित अरविंद नारायण दुबे जी द्वारा गया कुछ रोचक जानकारी दी गई।
हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती मनाई जाती है, इस साल वामन जयंती 7 सितंबर 2022 को मनाई जाएगी।
भगवान वामन श्रीहरि विष्णु के अवतार थे। त्रेतायुग के प्रारंभ होने में भगवान विष्णु ने वामन रूप में देवी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए — बालक रूपी ब्राह्मण अवतार । इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। इनके पिता महर्षि कश्यप थे तथा माता अदिति थीं। सूर्यनारायण , इंद्रदेव , वरुणदेव , महर्षि मार्तण्ड , अग्निदेव , पवनदेव सहित अन्य आदित्य थे।
भागवत कथा के अनुसार विष्णु ने इन्द्र का देवलोक में अधिकार पुनः स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक असुरराज दैत्य बली अपने यज्ञ वा तपोबल से हड़प लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में दानवीर बली के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला।
भगवान वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया जहाँ पर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल के जल से वामन के पाँव धोये ,इसी जल से गंगा उत्पन्न हुयीं। तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये। चूँकि बली के दादा प्रह्लाद विष्णु के परम् भक्त थे, वामन रूप भगवान ने बाली को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुँच गये।
महाबलि की उपाधि ने ही बचन देने हेतु इस मन्त्र की उत्पत्ति की –
‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेंद्रो महाबलः, तेन त्वाम रक्ष बध्नामि, रक्षे माचल माचल:’
एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।
नमः शांग धनुर्याण पाठ्ये वामनाय च। यज्ञभुव फलदा त्रेच वामनाय नमो नमः।।
जो भक्ति श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक वामन भगवान की पूजा करते हैं वामन भगवान उनको सभी कष्टों से उसी प्रकार मुक्ति दिलाते हैं जैसे उन्होंने देवताओं को राजा बलि के कष्ट से मुक्त किया था।
वामनावतार के रूप में विष्णु ने बलि को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खु़शहाल है |प
रामायण के अनुसार राजा बलि भगवान वामन के सुतल लोक में द्वारपाल बन गयेऔर सदैव बने रहेंगे।तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में भी इसका ऐसा ही उल्लेख है।
Author: samachar
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