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11 April 2025 12:13 am

अजीबोगरीब कहानी है गणपति बप्पा के कई स्वरुपों वाले इस मंदिर का

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

कानपुर। शहर में गणेश पूजन का इतिहास आजादी से पहले का है। गणेशोत्सव के उत्साह की नींव वर्ष 1918 में बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी। अंग्रेजों के विरोध के चलते घंटाघर स्थित प्राचीन मंदिर मकान के रूप में निर्मित किया गया था।

शहर के घंटाघर इलाके में मौजूद गणेश मंदिर पूरे उत्तर प्रदेश का ऐसा इकलौता मंदिर है जिसका स्वरुप एक तीन खंड के मकान जैसा है। इसके साथ ही यहां भगवान गणेश के 10 रूप एक साथ मौजूद है। कहते है यहां भगवान गणेश का मंदिर बनने के दौरान अंग्रेजों ने रोक लग दिया था। क्योकि इस मंदिर के 50 मीटर की परिधि में एक मस्जिद मौजूद था। जिस पर अंग्रेज अधिकारियों का तर्क था कि मस्जिद और मंदिर एक साथ नहीं बन सकते। ऐसे में यहां मंदिर बनवाने के बजाय 3 खंड का मकान बनवाकर भगवान गणेश को स्थापित किया गया था।

जहां पर गणपति महाराज के कई स्वरूपों के दर्शन भक्तों को होते हैं। मंदिर में विह्नहर्ता के पुत्र शुभ और लाभ के साथ ऋद्धि-सिद्धि भी विराजमान हैं। प्रतिवर्ष गणेशोत्सव पर मंदिर में भगवान के दर्शन को देश-विदेश से भक्त आते हैं।

उनदिनों पूरे कानपुर में यहां अकेले गणेश उत्सव मनाया जाता था। इनकी भक्ति को देख इनके महाराष्ट्र दोस्तों ने उस खाली प्लाट में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर वहा मंदिर बनवाने का सुझाव दिया था।

बाबा रामचरण के पास एक 90 स्क्वायर फिट का प्लाट घर के बगल में खाली पड़ा था। जहां इन्होंने मंदिर निर्माण करवाने के लिए 1908 में नीव रखी थी।1921 में बाल गंगाधर तिलक ने किया था भूमि पूजन 1908 में जब बाल गंगाधर तिलक जी कानपुर आए तब बाबा ने उनके सामने गणेश मंदिर की स्थापना की बात कही। उस समय बाल गंगाधर ने अपनी व्यस्तता को लेकर अगली बार आकर भूमि पूजन करने के साथ गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना करने की बात कही थी। मगर बाल गंगाधर तिलक को कानपुर आने में करीब तेरह साल लग गए, और इनकी बाबा की जिद थी कि भूमि पूजन के साथ गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना वो उन्ही से करवाएंगे।

1921 में बाल गंगाधर ने इस मंदिर में गणेश प्रतिमा की स्थापना के लिए स्पेसल कानपुर आए थे। तिलक जी ने यहां भूमि पूजन तो कर दी मगर मूर्ति स्थापना नहीं कर पाए क्योकि पूजन के बाद किसी आवस्यक काम की वजह से उनको जाना पड़ा।

मंदिर में विघ्नहर्ता के साथ उनके बेटे शुभ-लाभ और ऋद्धि-सिद्धि की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। मंदिर के दूसरे खंड पर गणेश भगवान के नौ रूपों को स्थापित हैं। प्राचीन मंदिर में भगवान गणेश की दस सिर वाली अद्भुत प्रतिभा भी स्थापित है।

मंदिर स्थल के पास ही मस्जिद होने के चलते अंग्रेजों ने मंदिर का निर्माण नहीं दिया। जिसके बाद मकान के रूप में मंदिर का निर्माण वर्ष 1923 में पूरा हो हुआ। मंदिर में संगमरमर की मूर्ति के अलावा पीतल के गणेश भगवान के साथ रिद्धि और सिद्धि को भी स्थापित हैं।

उन दिनों पूरे कानपुर में यहीं से पहली बार गणेश उत्सव की शुरुआत हुई थी। मंदिर निर्माण के समय अंग्रेज अधिकारियों के मना करने के बाद बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के बड़े अधिकारी से मिलकर मंदिर निर्माण पर बात की थी। जिसके बाद से शहर में गणेशोत्सव का उत्साह धूमधाम से मनाया जाने लगा। प्रतिवर्ष गणपति महाराज का भव्य दरबार सजाकर दस दिनों तक विशेष पूजन अर्चन किया जाता है। कोरोना की बंदिशों से मुक्त होकर इस बार महाराष्ट्र की तर्ज पर शहर में गणेशोत्सव की छठा दिखेगी।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."