दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
अमेरिका के न्यूयॉर्क में शुक्रवार (12 अगस्त) को बुकर पुरस्कार विजेता लेखक सलमान रुश्दी पर हमला हुआ। रुश्दी को पिछले कई सालों से जान से मारने की धमकियां मिल रही थी। सलमान रुश्दी पर उस समय हमला किया गया जब वे पश्चिमी न्यूयॉर्क में भाषण देने वाले थे। रुश्दी जब मंच पर अपने संबोधन के लिए पहुंचे, इसी दौरान हमलावर ने लेखक पर चाकू से कई वार किए। हमलावर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।
सितंबर 1988 में ‘द सैटेनिक वर्सेज’ के प्रकाशन के बाद से उन्हें कई बार जान से मारने की धमकियां मिली हैं। 14 फरवरी, 1989 को, इस किताब के लिए ईरान के दिवंगत धार्मिक नेता अयातुल्ला रुहोल्ला खुमैनी ने एक फतवा जारी किया था जिसमें रुश्दी की मौत का फरमान किया गया था। मुस्लिम समुदाय ने इस उपन्यास का काफी विरोध किया था। जिसके बाद इस उपन्यास के छपने के बाद रुश्दी कई साल तक अंडरग्राउंड रहे।
कई सालों तक मिलती रही मौत की धमकियां: ईरान ने रुश्दी को मारने वाले को 30 लाख डॉलर से ज्यादा का इनाम देने की पेशकश की थी। यहां तक कि जब रुश्दी फतवे के बाद अंडरग्राउंड हो गए, फिर भी उनकी किताबों पर प्रतिबंध, किताबों को जलाना, फायरबॉम्बिंग और मौत की धमकियां कई सालों तक बेरोकटोक जारी रहीं। लेकिन लेखक ने अपने लेखन से कोई समझौता नहीं किया।
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1989 में ‘द सैटेनिक वर्सेज’ के प्रकाशन के तुरंत बाद, चैनल 4 को दिए एक इंटरव्यू में सलमान रुश्दी ने किताब की आलोचना पर जवाब दिया था। उन्होंने कहा था, “अगर आप किताब नहीं पढ़ना चाहते हैं, तो आपको इसे पढ़ने की ज़रूरत नहीं है। द सैटेनिक वर्सेज से नाराज होना बहुत कठिन है। इस पढ़ने के लिए लंबे समय तक गहन अध्ययन की जरूरत होती है। यह सवा लाख शब्दों का है।”
फेक नाम रखकर घूमना पड़ा: लेखक की हत्या के लिए 3 मिलियन डॉलर से अधिक के इनाम की पेशकश के बाद अगले नौ सालों तक रुश्दी छिपकर रहे। बॉडीगार्ड्स और सेफ़्टी के बीच एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहे। सलमान रुश्दी ने बताया कि कैसे उन्हें अलग-अलग फेक नाम रखकर घूमना पड़ा ताकि वो जांच से बच सकें और अपनी असली पहचान छुपा सकें।
2000 में भारत लौटे: साल 1998 के बाद एक बार फिर रुश्दी सार्वजनिक जीवन में लौटे। कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज फॉर बेस्ट बुक की घोषणा के लिए वह अपने बेटे जफर के साथ फतवे के बाद पहली बार 2000 में भारत लौटे। भारत में, इसके प्रकाशन के नौ दिन बाद राजीव गांधी सरकार ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए द सैटेनिक वर्सेज पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। किताब को बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, सूडान, केन्या सहित कई देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालांकि, ईरान शुरूआत में पुस्तक का विरोध करने वाले देशों में से नहीं था।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."