दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
अतर्रा (बांदा)। भारतीय संस्कृति में जल और जंगल को बहुत महत्व दिया गया है। समस्त प्राणियों के जीवन निर्वहन के लिए जल और जंगल की महती आवश्यकता होती है। प्राचीन काल में विद्यार्थियों को जंगल में स्थित गुरुकुल में रहकर शिक्षा ग्रहण करनी होती थी। शिक्षकों ने हमेशा पर्यावरण के संरक्षण में योगदान दिया है।
इस श्रंखला में शिक्षक प्रमोद दीक्षित मलय का पर्यावरण संरक्षण में प्रयास सराहनीय है। वह न केवल वृक्षारोपण कर रहे हैं अपितु बच्चों एवं अभिभावकों के बीच प्रकृति के आभूषण पेड़ों को अधिकाधिक लगाने और बचाने की अलख जगा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रमोद दीक्षित मलय लेखनी के भी धनी हैं और पर्यावरण, कृषि, सामाजिक वानिकी, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण के मुद्दों पर लगातार लिख रहे हैं। प्राथमिक विद्यालय पचोखर-2 में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हैं और परिसर को हरा-भरा किये हुए हैं।
एक भेंट में शिक्षक प्रमोद दीक्षित मलय बताते हैं कि मैंने अगस्त 2019 में इस विद्यालय में कार्यभार ग्रहण किया था। अवलोकन में पाया कि परिसर में एक भी वृक्ष नहीं है। यह बात मन को कचोट गयी। बरसात के मौसम का लाभ उठाते हुए शीशम, सागौन, शहतूत, बोगनविलिया और तमाम पुष्पीय पौधे रोपे। चारदीवारी छोटी होने के कारण कुछ लोगों द्वारा पौधों का नुक़सान हुआ। तनिक निराशा आयी पर फिर नये जोश के साथ अमरूद, अनार, आंवला,नीम, सीताफल, बेल, गिलोय, गेंदा, चांदनी, चमेली, स्थलकमल आदि रोपे। बराबर देखरेख खादपानी देने से सभी पेड़-पौधे बड़े होकर छाया देने लगे हैं। अब बच्चे भी सहयोग करते हैं। कोई भी विद्यालय आता है तो हराभरा परिसर देखकर खुश हो सराहना करता है।
प्रमोद मलय कहते हैं कि ये पेड़-पौधों से एक अपनेपन का रिश्ता बन गया है। प्रत्येक दिन हरेक पौधे के पास जाना और देखना दिनचर्या में शामिल है। वृक्ष मेरे सांसों में शामिल हो गये हैं।
Author: samachar
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