ज़ीशान मेहदी की रिपोर्ट
आए दिन नई दिल्ली और लखनऊ में प्रेस कान्फ्रेंस आयोजित कर भाजपा को ताल ठोंक कर चुनौती देने वाली कांग्रेस उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के चार महीने बाद प्रदेश अध्यक्ष तक नहीं दे पाई है। यह लोक सभा चुनाव को लेकर उसकी गंभीरता का सुबूत है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के माल एवेन्यू इलाके में स्थित जिस नेहरू भवन के दरवाजे आमजन और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए कभी खुले रहते थे, आज उस प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय (Uttar Pradesh Congress Headquarters) के बंद रहने वाले गेट से घुसने के लिए कांग्रेसियों को जिद्दोजहद करनी पड़ती है। यह उस कांग्रेस का हाल है जिसका उत्तर प्रदेश से लोकसभा में मात्र एक सांसद, विधानसभा में दो सदस्य हैं और विधान परिषद में प्रतिनिधित्व शून्य हो चुका है। अठारहवीं विधानसभा के चुनाव में जिसे बमुश्किल ढाई प्रतिशत वोट मिले थे। पार्टी के सिकुड़ते जनाधार के बीच कांग्रेस मुख्यालय के बंद रहने वाले गेट आम जन ही नहीं, पार्टी कार्यकर्ताओं से भी उसके लगातार कटते संपर्कों का प्रतीक हैं।
उत्तर प्रदेश में पार्टी की कमांडर बनीं प्रियंका गांधी वाड्रा विधानसभा चुनाव के बाद चार महीनों में एक दिन भी लखनऊ में नहीं रहीं। बीती एक जून को पार्टी की ओर से आयोजित नव संकल्प कार्यशाला में शामिल होने के लिए वह लखनऊ आयीं भी तो प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में उनका प्रवास कुल 45 मिनट ही रहा। यह उस कांग्रेस का हाल है जो 24 घंटे चुनावी मोड में रहने वाली भाजपा से मुकाबिल होने के सपने देख रही है।
यह विडंबना ही है कि पिछले महीने प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित नव संकल्प कार्यशाला के मंच से खुद प्रियंका गांधी वाड्रा ने यह स्वीकार किया कि जनता से जुड़ाव न हो पाने और आम जन तक अपनी बात न पहुंचा पाने के कारण ही विधान सभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। मंच से उन्हें यह कहने के लिए विवश होना पड़ा था कि जो भी हमने किया, वो काफी नहीं था।
प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा था कि हमने संगठन और अपने कार्यक्रमों में बदलाव तो किया लेकिन जनता से नहीं जुड़ पाए। पहले कांग्रेस नेता सिर्फ राजनीतिक नहीं, सामाजिक मुद्दों को लेकर और तीज-त्योहारों पर नता के बीच जाते थे लेकिन आज हम ऐसा नहीं करते हैं। हमारे कार्यक्रमों में सिर्फ पार्टी के लोग जुटते हैं, जनता नहीं। यह बात और है कि प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय के बंद दरवाजे यह संकेत देते हैं कि पार्टी जनता से ही नहीं, अपने कार्यकर्ताओं से भी दूर होती जा रही है।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."