कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
लखनऊ। पिछले चुनाव में ममता चौधरी को कांग्रेस ने मोहनलालगंज विधानसभा सीट से उतारा था। ममता मालवीय नगर वार्ड से पार्षद भी हैं, लेकिन ग्रामीण इलाका होने और कांग्रेस का प्रभाव कम होने से ममता को हार का सामना करना पड़ा था और भाजपा उम्मीदवार ने बाजी मारी थी। ममता को चार हजार मतों पर ही सुकून करना पड़ा था। विधायकी का चुनाव हारने के बाद उनका फोकस मालवीय नगर वार्ड पर बना रहा।
सूबे की बड़ी पंचायत में पहुंचने का मंसूबा पूरा नहीं हो पाया तो पार्षद व पूर्व पार्षद नगर निगम सदन की सीढियां चढ़ने को उतावले दिख रहे हैं। पार्षदी का जलवा घर की देहरी से बाहर जाने नहीं देना चाहते हैं। लिहाजा पार्षद चुनाव को लेकर बजी डुगडुगी के बाद से ही मतदाताओं के बीच पहुंचना शुरू कर दिया है।
2006 में पार्षदी का पहला चुनाव लडऩे पर उन्होंने कांग्रेस का परचम फहराया था और फिर 2012 और 2017 में भी वह जीत कर नगर निगम सदन पहुंचीं थीं। अब नवंबर में फिर से पार्षद के चुनाव हैं, लिहाजा ममता चौधरी ने अपने वार्ड में सक्रियता और बढ़ा दी। वह कहती हैं कि कांग्रेस ने मोहनलालगंज विधानसभा सीट से टिकट दिया था और उन्होंने चुनौती को स्वीकारा। अब उनका ध्यान पार्षदी चुनाव पर है और वह उसे लड़ेंगी। आगे मौका मिला तो फिर से विधायकी का चुनाव लडेंगे।
सुरेंद्र सिंह राजू गांधी ने सपा के टिकट पर कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन भाजपा उम्मीदवार ब्रजेश पाठक के सामने हार का सामना करना पड़ा था। मोती लाल नेहरू वार्ड की पार्षदी लंबे समय से राजू गांधी के घर पर ही है। पार्षदी का पहला चुनाव 2000 में हार गए थे और राजू गांधी 2006 के चुनाव में पार्षद बन गए थे। फिर 2012 में पार्षद बने लेकिन 2017 में वार्ड की महिला सीट होने पर पत्नी चरनजीत गांधी को मैदान में उतारा था और वह जीत गईं। सपा ने 2022 के चुनाव में कैंट सीट से राजू गांधी को टिकट दिया था। उनका कहना है कि पहली बार सपा का कोई उम्मीदवार कैंट सीट से 68 हजार मत पाया था लेकिन हार के बाद भी वह पार्षद का चुनाव लडऩे की तैयारी रहे हैं।
गीतापल्ली वार्ड से सपा के टिकट पर 2000 और 2006 पार्षद बनने वालीं सुरेश चौहान 2012 में विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर लड़ी थीं लेकिन हार लगी थी फिर 2017 में पार्षद का चुनाव भी हार गईं थीं अब वह फिर से पार्षद का चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही हैं।
यहियागंज से पार्षद और नगर निगम कार्यकारिणी समिति के उपाध्यक्ष रहे रजनीश गुप्ता भाजपा के टिकट पर पिछला विधानसभा चुनाव मध्य सीट से लड़े थे लेकिन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार रविदास मेहरोत्रा से हार गए। इसके बाद से अपने नाम के आगे पार्षद के बजाय मध्य सीट से उपविजेता लिखने वाले रजनीश गुप्ता का कहना है कि अब वह फिर से विधानसभा की तैयारी कर रहे और पार्षद का चुनाव नहीं लडऩे की बात कह रहे हैं लेकिन चर्चा है कि वह परिवार के ही किसी को सदस्य को मैदान में उतारकर पार्षदी को घर में ही रखना चाहते हैं। 2000 से पार्षदी रजनीश के पास ही है। 2000 में वह खुद थे और 2006 में पत्नी पार्षद बनीं थीं, फिर 2012 और 2017 में पार्षद बने थे।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."