कुसुम पंडित की रिपोर्ट
हमीरपुर भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। हिमाचल की निचली पहाडि़यों पर स्थित हमीरपुर जिला समुद्र तल से 600 से 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पाइन के पेड़ों से घिरा यह शहर हिमाचल के अन्य शहरों से सामान्यत: कम ठंडा है। कांगडा जिले से अलग करने के बाद 1972 में हमीरपुर अस्तित्व में आया था।
भौगौलिक दृष्टि से प्रदेश का सबसे छोटा जिला हमीरपुर अपने में समृद्ध इतिहास समेटे हुए हैं। राजा हमीरपुर ने हमीरपुर कस्बे को बसाया। हमीरपुर जिला कांगड़ा का अभिन्न भू-भाग रहा है। यह जिला प्रथम सितंबर, 1972 को अपने अस्तित्व में आया। 18वीं शताब्दी के प्रथम चरण में कांगड़ा क्षेत्र में कटोच वंश के उदय होने के समय जिला हमीरपुर अपने ऐतिहासिक क्षेत्र में प्रवेश किया। हमीरपुर का अस्तित्व राजा हमीरपुर चंद के शासन काल से संबधित है, जिसने 18 वीं शताब्दी में हीरानगर के समीप सामरिक दृष्टि से एक दुर्ग का निर्माण करवाया था उसी के नाम से जिले का नाम हमीरपुर पड़ा।
राजा हमीरपुर चंद
राजा हमीरपुर चंद 1740- 1780 ई. तक कांगड़ा रियासत के शासक रहे थे। हमीरपुर नगर में एक बड़ा तहसील भवन सन 1888 में बनाया गया। हमीरपुर थाना का भवन, हमीरपुर तहसील भवन ऐतिहासिक संदर्भ इस तथ्य के साक्षी हैं और प्राचीन संस्कृति व इतिहास के गवाह हैं। जिला हमीरपुर में सुजानपुर टीहरा अपना ऐतिहासिक स्थान है। इस नगर की स्थापना की नींव कांगड़ा नरेश घमंड चंद ने 1761-1773 ई. में रखी थी और इनके पौत्र महाराज संसार चंद द्वारा इस नगर को गरिमा प्रदान की। इसी शासन काल में सुजानुपर टीहरा होली उत्सव, व्रज भूमि की होली की प्राचीन संस्कृति आज भी ¨जदा हैं। इन्होंने अपने शासनकाल में कला से पूर्ण मंदिरों का निर्माण किया। इनमें मुरली मनोहर मंदिर, गौरी शंकर मंदिर व नर्वदेश्वर मंदिर प्रमुख हैं।
महल मोरियां का किला हमीरपुर से 15 किलोमीटर दूर ताल व महल गांव के बीच की पहाड़ी पर कुनाह खड्ड के किनारे पर हैं। यहां पर 1805 ई. में राजा संसार चंद गोरखा सेना से परास्त हुए थे। महाराजा संसार चंद ने सुजानपुर टिहरा के साथ नादौन में कुछ समय व्यतीत किया जहां आज भी उनके पूर्वज रहते हैं।
सुजानपुर टीहरा
यह स्थान एक जमाने में कटोक्ष वंश की राजधानी थी। यहां बने एक प्राचीन किले को देखने के लिए लोगों का नियमित आना जाना लगा रहता है। यहां एक विशाल मैदान है जिसमें चार दिन तक होली पर्व आयोजित किया जाता है। यहां एक सैनिक स्कूल भी स्थित है। धार्मिक केन्द्र के रूप में भी यह स्थान खासा लोकप्रिय है और यहां नरबदेश्वर, गौरी शंकर और मुरली मनोहर मंदिर बने हुए हैं।
यहां हैं बाबा बालक नाथ का मंदिर
उत्तर भारत की प्रसिद्ध दिव्य सिद्धपीठ बाबा बालकनाथ धाम दियोटसिद्ध नामक स्थान पर स्थित है जो जिला बिलासपुर के उपमंडल घुमारवीं की तहसील शाहतलाई के साथ लगता है। यहां पर देश व प्रदेश के श्रद्धालु बाबा के दर्शनों के लिए आते हैं। गुफा में दर्शन के लिए बाबा जी का अखंड धूना, धार्मिक पुस्तकालय, भतृहरि मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर चरण पादुका व बाबा जी की तलाई शामिल है। यहां पुराण प्रसिद्ध मार्कंडेय ऋषि की मूर्ति स्थापित हैं। टौणीदेवी व अवाहदेवी मंदिर भी हमीरपुर जिला के लिए दर्शनों का स्थान हैं। हमीरपुर जिला प्राचीन सांस्कृति व पुरातात्विक दृष्टि से प्रदेश भर में शिक्षा व विकास के नाम से जाना जा रहा हैं।
सैनिक स्कूल,सुजानपुर टीहरा
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के छोटे से ऐतिहासिक कस्बे सुजानपुर टीहरा में स्थापित भारत का 18वां सैनिक स्कूल आज देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में शुमार हो चुका है। इस समय भारत में कुल 23 सैनिक स्कूल हैं, जो कि केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के तहत आते हैं। 2 नवम्बर 1978 को स्थापित सैनिक स्कूल सुजानपुर टीहरा एनडीए परीक्षा में लगातार शानदार परिणाम देता रहा है। इस कारण यह संस्थान रक्षा मंत्रालय द्वारा कई बार सम्मानित किया जा चुका है। स्कूल का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ॰ नीलम संजीव रेड्डी ने किया था। शांति काल का सवोर्च्च वीरता पुरस्कार, अशोक चक्र (मरणोपरांत) पाने वाले मेजर सुधीर वालिया इस स्कूल के दूसरे बैच के छात्र थे। कारगिल युद्ध में वीर चक्र पाने वाले मेजर संजीव जाम्वाल इसी स्कूल के नौवें बैच के छात्र रहे हैं। यह स्कूल हिमाचल के महाराजा संसार चंद की याद भी दिलाता है, जो अठारहवीं सदी में सुजानपुर के मैदान में अपने सैनिकों को ट्रेनिंग देते थे।
पहनावा
हमीरपुर जिला मैदानी गर्म इलाका है इसमें पुरुषों के पहनावे में कुर्ता, पायजामा, टोपी, पगड़ी, लंगोट, धोती, परना, मफलर, बास्कट आदि प्रमुख है। सर्दियों में कोट, स्वैटर, कोटी, पट्ट आदि पहने जाते हैंमहिलाओं के पहनावे में सलवार, कुर्ती, सुथण, अंगी चोली, दुपट्टा, घघरी, नवविवाहिताओं के लिए रहीड़ा (लाल रंग का किनारियां जड़ा हुआ दुपट्टा), बास्कट आदि प्रमुख है। हमीरपुर के साथ लगता जिला है ऊना। ऊना जिला पंजाब की सीमा 1, को भी छूता है। यह इलाका पूरी तरह से मैदानी और गर्म है। यहां पंजाब और हिमाचल की संस्कृति का मिलाजुला असर है।
पुरुषों के पहनावे में यहां धोती, कुर्ता प्रमुख रहा है लेकिन वर्तमान में कमीज, पायजामा प्रचलित है। सर्दियों में कोट, स्वैटर, लोई और पट्ट का इस्तेमाल किया जाता है। महिलाएं पहले लहंगा, कुर्ता, दुपट्टा पहनती थीं। त्योहार के मौके पर यही वस्त्र चटख रंग के होते थे। लेकिन 1970 के बाद लहंगा, कुर्ती का स्थान सलवार, कमीज और दुपट्टे ने ले लिया है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."