दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
चार धाम हिमालय में चार पवित्र भारतीय तीर्थों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ – का एक समूह है। यमुनोत्री का छोटा पहाड़ी गांव चार धाम यात्रा तीर्थ यात्रा (मई से अक्टूबर) का आरंभिक बिंदु है, जहां से पहले यमुनोत्री फिर गंगोत्री होते हुए केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा होती है।
यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट 3 मई को खुल गए थे। केदारनाथ धाम के कपाट 6 मई की सुबह खुल गए। वहीं बद्रीनाथ धाम के कपाट 8 मई को सुबह 6 बजकर 15 मिनट पर खुले।
तीर्थयात्रियों की संख्या प्रतिदिन के हिसाब से तय की गई है। दैनिक सीमा बद्रीनाथ के लिए 15,000, केदारनाथ के लिए 12,000, गंगोत्री के लिए 7,000 और यमुनोत्री के लिए 4,000 है। यह नियम सरकार द्वारा भारी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की संभावना को देखते हुए जारी किए गए हैं।
गौरीकुंड पहुंचने के बाद वहां से केदारनाथ के लिए 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा के लिए हम तैयार हुए। पहले तो हमने निर्णय लिया कि हम सब पैदल ही यात्रा करेंगे, लेकिन समय की कमी और बच्चों के कारण हमने सबने घोड़े से जाना उचित समझा और घोड़ों के लिए रजिस्ट्रेशन कराया जहां पर भी हमारा करीब एक घंटा व्यर्थ हुआ।उसके बाद हम घोड़े पर सवार होकर केदारनाथ की यात्रा के लिए आगे चले।
केदारनाथ बाबा की यात्रा का जो रास्ता है वह थोड़ा सा सकरा होने की वजह से जगह-जगह पर घोड़ों की भीड़ लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी लेकिन सभी महादेव का जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे सबके मन में उत्साह था महादेव से मिलने का और महादेव की धुन में सब आगे बढ़ते जा रहे थे जैसे मानो उनका डर खत्म हो गया हो। रास्ते में हमें बर्फ मिलना शुरू हुई। पहाड़ों पर पहले से जमी हुई बर्फ और बहते हुए झरने देखने को मिले।
हम मंदिर की तरफ पहुंचे सब की खुशी का ठिकाना नहीं था। हम सब ने मंदिर के साथ अपनी अपनी तस्वीर कैमरे में कैद की। 15 से 20 मिनट बाद लाइन में लगकर हमें बाबा केदारनाथ के दर्शन हुए। मन इतना उत्साहित था कि मानो आंखों से जैसे गंगा माँ प्रवाहित हो रही हों। जी भर के मन भर के बाबा केदारनाथ के दर्शन हुए। मन में महादेव महादेव महादेव गूंज रहा था आंखों से माँ गंगा प्रवाहित हो रही थी और मन बहुत ही प्रफुल्लित था बहुत अच्छे से दर्शन हुए बाबा केदारनाथ के।
बाबा केदारनाथ के दर्शन करके हम मंदिर प्रांगण में निकले और भीम शिला की ओर बढ़े मंदिर के पीछे एक विशाल शिला रखी हुई है जिसे भीम शिला के नाम से जाना जाता है यह वही भीम शिला है जो साल 2013 की महा जलप्रलय में अचानक अपने आप ठीक मंदिर के पीछे आकर रुक गई थी। और मंदिर में शरण लिए हुए सभी भक्तों और मंदिर की रक्षा की थी। कहां जाता है कि महाराज भीम इस मंदिर के रक्षक के रूप में आज भी इस शिला में विद्यमान है।
Author: samachar
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