अनिल अनूप
भाजपा को अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करना पड़ा और दिल्ली भाजपा के मीडिया प्रमुख नवीन कुमार को तो पार्टी से बर्खास्त ही करना पड़ा। भाजपा तो क्या, औसतन राजनीतिक दलों के प्रवक्ता निरंकुश हैं। उनके लिए आचार और नैतिकता की कोई ‘लक्ष्मण-रेखा’ नहीं है। भाजपा के पाले में भगवाधारी चेहरे भी हैं, जो खुद को ‘धर्मगुरू’ मानते रहे हैं। उन्होंने भी कट्टरता की हदें लांघी हैं। उन्हें भरोसा है कि वे वाचाल होकर ऐसा चरमपंथी दुष्प्रचार करने को स्वतंत्र हैं, क्योंकि कोई भी, उनका कुछ भी, बिगाड़ नहीं सकता। यह मुग़ालता 2014 और फिर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के नाम प्रचंड चुनावी जनादेश हासिल करने के बाद बढ़ा है। भगवाधारी खुद को भाजपा का ही हिस्सा मानते रहे हैं। दोनों घोर हिंदूवादी हैं। हिंदूवादी होना पाप नहीं है, लेकिन ‘घोर’ किसी भी लिहाज से नैतिक नहीं है। वह दूसरे की आस्था और धर्म को खंडित करता है। भाजपा प्रवक्ताओं ने पैगंबर मुहम्मद के लिए अपमान-सूचक कुछ कहा था। हम उसका उल्लेख करना उचित नहीं मानते। बेशक मुस्लिम मौलानाओं और प्रवक्ताओं ने भी हिंदू देवी-देवताओं को न सिर्फ अपमानित किया है, बल्कि हिंसक धमकियां तक दी हैं-आंखें नोंच लेंगे, जुबां काट देंगे, उंगली और हाथ भी काट देंगे। ये शब्द किस संविधान के हैं और किस लोकतंत्र में बोले जाने चाहिए?
ये बयान भी घोर निंदनीय और डरावने हैं, लिहाजा अस्वीकार्य हैं। बीते कुछ अरसे से समरसता के बजाय विभाजन की खाई चौड़ी हुई है। हिंदुस्तान के मायने हिंदू बनाम मुसलमान नहीं हैं। दोनों ही इसके हिस्से हैं और परिजन की तरह हैं। बहरहाल संदर्भ भाजपा प्रवक्ताओं का है। देश में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा-एनडीए की सरकार है। जेपी नड्डा की अध्यक्षता में भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। ऐसी पार्टी के प्रवक्ता टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर वाचालता से कट्टरवाद कैसे फैला सकते हैं? यह कट्टरवाद अचानक नहीं उभरा है। भाजपा को कवर करने का अनुभव रहा है कि वह एक निश्चित वोट बैंक को संबोधित करने के मद्देनजर मुसलमान, इस्लाम की आलोचना करती रही है। यह बिल्कुल स्पष्ट है, बेशक भाजपा वक्तव्य जारी करती रहे कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है। बहरहाल प्रवक्ताओं को बलि का बकरा इसलिए बनाना पड़ा, क्योंकि खाड़ी के देशों में ‘भारत के बहिष्कार’ का आह्वान गूंजने लगा था। हमारे उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू कतर के आधिकारिक प्रवास पर थे। उन्हें फजीहत का एहसास हुआ होगा, जब हमारे राजदूत को तलब किया गया और कतर सरकार ने अपना विरोध जताया। कतर के अलावा क्यूबा ने भी भारत के राजदूत को समन किया और मोदी सरकार के प्रति विरोध जताया। उन देशों ने साफ कहा कि वे इस्लाम के नबी, हुजूर साहेब का अपमान किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेंगे। कूटनीति के लिहाज से खाड़ी देश भारत के समर्थक और रणनीतिक हिस्सेदार रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी दावा करते रहे हैं कि इन देशों के साथ संबंधों को उन्होंने खुद मजबूत किया है और उन्हें लगातार सींचते रहे हैं।
नौबत यहां तक आ सकती थी कि खाड़ी देश भारतीय वस्तुओं के बहिष्कार के ऐलान कर सकते थे। कच्चे तेल का कारोबार प्रभावित हो सकता था। इन स्थितियों और धार्मिक नफरत के नतीजतन ही भाजपा प्रवक्ताओं पर गाज गिरानी पड़ी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर तक को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि ये बयानबाज ही हिंदुस्तान के ‘नव संभ्रान्त’ नहीं हैं, ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने का यह भारतीय रास्ता या तरीका नहीं है। बहरहाल भारत में ही मुसलमानों की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी है। अभी हाल ही में देवबंद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद का सम्मेलन हुआ था, जिसमें संगठन के सदर मौलाना महमूद मदनी बार-बार दोहराते रहे कि यह मुल्क हमारा है। हमारे पुरखों ने भी आज़ादी के लिए कुर्बानियां दी थीं। यदि कोई मुसलमानों से नफरत करता है, तो वह देश छोड़ कर जा सकता है, हम तो अपने मुल्क में ही रहेंगे। इशारा भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की तरफ था, जिन्हें सत्ता में आने के लिए मुस्लिम वोट नहीं चाहिए। लेकिन वे सरकार में हैं, तो पूरे देश की सरकार हैं, मुसलमानों के भी प्रधानमंत्री हैं। सवाल यह है कि टीवी चैनलों पर जो बेलगाम चर्चाएं होती हैं और कोई कुछ भी बोलता रहता है, उसके नतीजतन भारत को कभी गंभीर अंजाम भुगतने पड़ सकते हैं। नफरत के भाषणों पर तुरंत पाबंदी थोप देनी चाहिए और चर्चाओं के लिए भी कानूनन आचार-संहिता तय की जानी चाहिए। किसी भी धर्म के खिलाफ किसी भी व्यक्ति को टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। अगर कोई ऐसा करता है, तो उसे दंडित किया जाना चाहिए क्योंकि इससे दो धर्मों के बीच खाई बढ़ती है। आशा है कि भविष्य में इस तरह की घटना नहीं होगी।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."