दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
इन दिनों चारधाम यात्रा अपने चरम पर है और देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु दर्शनों को पहुंच रहे हैं। इस आध्यात्मिक यात्रा में विभिन्न प्रांतों की संस्कृति एवं परंपराओं के रंग भी देखने को मिलते हैं। ऐसी ही एक परंपरा बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश से आने वाले कुछ श्रद्धालु आज भी निभाते आ रहे हैं, जो पितरों के प्रति उनकी अटूट आस्था का अनुपम उदाहरण है।
इन प्रांतों से आने वाले कई श्रद्धालु अपने साथ पितरों की निशानी (तस्वीर, छड़ी, कंबल, गमछा, टोपी, धोती-कुर्ता आदि) को भी चारधाम की यात्रा पर लाते हैं। यह निशानियां बकायदा पितरों के नाम आरक्षित सीट पर सम्मान के साथ विराजमान होकर चारधाम पहुंचती हैं।
चारधाम यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश पहुंचने के बाद यह यात्री संयुक्त रोटेशन, रोडवेज या निजी परिवहन सेवाओं से चारधाम यात्रा करते हैं। पितरों (दिवंगत माता-पिता) को चारधाम की यात्रा कराने के लिए यह श्रद्धालु स्वयं के अलावा दो और सीट बुक कराते हैं।
इसके लिए बुकिंग क्लर्क या ट्रैवल एजेंट को ‘तिन सीटिया’ (एक सीट स्वयं और दो सीट पितरों की निशानी रखने के लिए) बुकिंग की जानकारी दी जाती है। इसके बाद ऐसे श्रद्धालुओं को ‘तिन सीटिया’ यात्रा के लिए बुकिंग दे दी जाती है और यात्री आस्था पूर्वक पितरों को चारधाम के दर्शन कराकर तीर्थ में उनका पिंडदान करते हैं।
दादा की निशानी साथ लाए हैं राम खिलावन
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर निवासी राम खिलावन ने बताया कि उनके दादा अपने जीवन में कभी चारधाम यात्रा नहीं कर पाए। इस बार गांव के अन्य यात्रियों के साथ उन्हें भी चारधाम आने का सौभाग्य मिला तो दादा-दादी की तस्वीर व छड़ी भी साथ लाए हैं।
बताया कि यात्रा के लिए उन्होंने अपने ट्रैवल एजेंट से ‘तीन सीटिया’ बुकिंग कराई है। गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) निवासी 84 वर्षीय विमला देवी भी गांव के 33 यात्रियों के साथ चारधाम यात्रा पर हैं।
वह अपने पति स्व. लाल बहादुर सिंह की छड़ी व अन्य निशानियां साथ लेकर आई हैं। विमला देवी के पति का निधन 15 वर्ष पूर्व हो गया था और उनकी चारधाम यात्रा की इच्छा अधूरी रह गई थी, जिसे अब विमला देवी पूरी कर रही हैं।
ट्रैवल्स संचालक पंकज शर्मा ने बताया कि ‘तीन सीटिया’ यात्रा के लिए इस बार बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व बिहार से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। उनकी भावनाओं का पूरा सम्मान किया जाएगा।
Author: samachar
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