अनिल अनूप की खास रिपोर्ट
एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य की पुलिस से भिड़ रही है। कानून का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। देश का संघीय चरित्र दांव पर है। ज्ञानवापी मंदिर है या मस्जिद है, काशी में यह हंगामा भी बरपा है। हर-हर महादेव बनाम अल्लाह हू अकबर के नारे गूंज रहे हैं। देश का परिवेश कैसा होता जा रहा है? नफरत, चिढ़, असहिष्णुता, विभाजन के भाव सहज ही महसूस किए जा सकते हैं, लेकिन हमारी घनघोर चिंता यह है कि गरीबी, बेरोज़गारी, महंगाई और आर्थिक संकट से आम आदमी निचुड़ रहा है। न सरकार और न ही औद्योगिक इकाइयां उसकी कराह सुनने को तैयार हैं। ये समस्याएं राष्ट्रीय मुद्दा और जन-अभियान नहीं बन पा रही हैं।
घरेलू रसोई गैस का सिलेंडर 50 रुपए महंगा कर दिया गया है। अब राजधानी दिल्ली में एक सिलेंडर 999.50 रुपए में मिलेगा। इसे 1000 रुपए ही मान लें। यह सामान्य बढ़ोतरी नहीं है। 2012-14 में यह सिलेंडर 410 रुपए में मिलता था। जब कांग्रेस की यूपीए सरकार का कार्यकाल समाप्त हुआ, तब करीब 46,458 करोड़ रुपए की सबसिडी भी दी जाती थी। मोदी सरकार ने सबसिडी बिल्कुल खत्म कर दी है। अब 8-10 साल के दौरान दाम करीब अढाई गुना बढ़ गए हैं।
बीते एक साल के दौरान रसोई गैस का 14.2 किलोग्राम का सिलेंडर 190.50 रुपए महंगा हो चुका है। कहने को आंकड़ा इतना खतरनाक नहीं लगता, लेकिन इसके आर्थिक प्रभाव बेहद गंभीर और व्यापक हैं।
घरेलू गैस 143 फीसदी महंगी हुई है, तो सोया तेल 111 फीसदी, आटा 60 फीसदी और अरहर की दाल 47 फीसदी महंगी हो गई है। बीते 10 माह के दौरान दूध की कीमत दो बार बढ़ चुकी है। हेयर ऑयल की कीमत 280 रुपए से बढ़ कर 340 रुपए हो गई है। उसकी मात्रा भी कम कर दी गई है। बच्चों की पढ़ाई भी महंगी हुई है।
परिवहन का किराया 500 से बढ़कर 2500 रुपए प्रति बच्चा हो गया है। अब ऐसी रपटें सामने आ रही हैं कि अधिकतर गरीब और निम्न मध्यवर्गीय परिवारों ने एक ही वक़्त का खाना बनाना शुरू कर दिया है। आधा खाना बनाने की मज़बूरी भी राष्ट्रीय संकट है। हमारे प्रधानमंत्री या राजनीतिक प्रवक्ता अंतरराष्ट्रीय हालात के पीछे छिप कर दलीलें नहीं दे सकते।
यदि अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा आदि देशों में महंगाई की दर ऐतिहासिक स्तर पर उछल रही है और भारत में 7 फीसदी से कम है, तो दोनों पक्षों की तुलना नहीं की जा सकती। हमारे राजनेता इन विकसित देशों की प्रति व्यक्ति आय का आकलन भी करें और फिर भारत की गरीबी की तुलना करें, तो निष्कर्ष सामने होगा कि भारत में महंगाई, बेरोज़गारी और सीमित आय कितने भयावह स्तर पर हैं?
प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को और एक स्वतंत्र भी सर्वे कराने चाहिए कि जिन करोड़ों परिवारों को ‘उज्ज्वला गैस योजना’ के तहत निःशुल्क सिलेंडर बांटे गए थे, उनमें से अब कितने गैस सिलेंडर इस्तेमाल कर पा रहे हैं? यथार्थ सामने होगा कि अधिकतर लोग लकड़ी, उपले के चूल्हे वाले दौर में लौट आए हैं। जीने और भोजन की मज़बूरी है। अब ये मौलिक अधिकार नहीं हैं।
मोदी सरकार जिन 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज बांट रही है, आखिर उसे पकाने के लिए भी गैस सिलेंडर की बुनियादी दरकार है। क्या आम आदमी इतनी महंगी गैस खरीद सकता है?
अब आर्थिक विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि करीब 35 करोड़ आबादी तो गरीबी-रेखा के नीचे जीने को विवश है। जो लोग अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उनकी तनख्वाह और आर्थिक संसाधन इतने नहीं हैं कि घर के दूसरे खर्चों के साथ-साथ 1000 रुपए का गैस सिलेंडर भी वहन कर सकें। आर्थिक विशेषज्ञों का सुझाव है कि तुरंत एक उच्चस्तरीय और अधिकार सम्पन्न कमेटी का गठन किया जाए। मौजूदा हालात मुद्रास्फीति आपातकाल के हैं, लिहाजा देश के 25 करोड़ परिवारों का, महंगाई के आधार पर, वर्गीकरण किया जाए कि किस परिवार को, किस स्तर की महंगाई, चुभती है। सरकार उस वर्गीकरण के आधार पर महंगाई का बोझ डाले।
Author: samachar
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