विरेन्द्र हरखानी की रिपोर्ट
आज के दिन यानी कि 8 अप्रैल 1857 को दलितो के पूर्वज मातादीन भंगी को फांसी हुई थी। हमारे देश का दुखद पहलू है कि जातिवादी सवर्ण इतिहासकारों ने केवल उन्हीं पन्नों को ही लिया जो सवर्णों से जुड़े थे और सवर्णों को महान बना सकते थे। बाक़ी दलित-बहुजनों को इतिहास में ना ही शामिल किया और ना ही उन पन्नों को ज़िंदा रहने दिया। 1857 की क्रांति पर बात करते हुए मंगल पांडे महान यौद्धा लगता होगा पर सच यही है कि वो देश के लिए नहीं बल्कि ब्राह्मण धर्म के लिए लड़े।
मंगल पांडे की महानता पर कई किताबें मिल जाएंगी पर दलित क्रांतिकारी शहीद मातादीन भंगी की बारे में आपको बमुश्किल पढ़ने मिलेगा। 1857 की क्रांति के बीज रोपने वाला कोई और व्यक्ति नहीं बल्कि मातादीन भंगी ही थे।
कोलकाता से 16 मील दूर बैरकपुर छावनी में कारतूस बनाने का कारखाना था, जहाँ प्रायः अछूत समुदाय के लोग काम करते थे। मातादीन भंगी जो कारखाने का कर्मचारी था ने एक दिन बहुत प्यास लगने पर एक सैनिक मंगल पांडे से पानी पीने के लिए लोटा मांगा। पर कट्टर सनातनी अहंकारी मंगल पांडे ने ब्राह्मणत्व की रक्षा करते हुए एक अछूत नीच को अपमानित करते हुए लोटा देने से मना कर दिया। मातादीन को बहुत अपमानित हुए और उन्होंने मंगल पांडे को फटकार लगाते हुए कहा कि-‘ बड़ा आया ब्राह्मण का बेटा। जिन कारतूसों का तुम उपयोग करते हो उन पर गाय और सुअर की चर्बी लगाई जाती है, जिसे तुम दाँतों से तोड़ कर बंदूकों में भरते हो। उस समय तुम्हारा ब्राह्मणत्व और धर्म का अहंकार कहाँ चला जाता है? धिक्कार है तुम्हें और तुम्हारे इस ब्राह्मणत्व को…..।’
मातादीन उस कारखाने के कर्मचारी थे जहाँ नए कारतूस बनाए जा रहे थे। उनकी फेंकी चिंगारी के कारण पूरी सैनिक छावनी में विद्रोह की सुगबुगाहट शुरू हो गई। 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने अपने वरिष्ठ अधिकारी को गोली मारकर जो क्रांति की शुरुआत की उसे मातादीन ने ही रोपा था बाद में यह 1857 का गदर बना।
इस विप्लव का दोषी मानते हुए कई क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियाँ की गई। 8 अप्रैल 1857 को पहली फाँसी मातादीन भंगी को हुई, उसके बाद मंगल पांडे और बाकी गिरफ्तार सैनिकों को। इस केस में फाँसी पहले दी गई और बाद में कोर्ट मार्शल किया गया। इस मुकदमे का नाम ही “ब्रिटिश सरकार बनाम मातादीन” था। इस गिरफ्तार चार्जशीट में पहला नाम मातादीन भंगी का ही था और फाँसी पर झूलने वाला भी वही था।
पर जातिवाद ने मातादीन भंगी को ना ही शहीद माना न ही सम्मान दिया सिर्फ इसलिए कि वो अछुत थे। 1857 का संग्राम दअरसल सवर्णों के स्वार्थ पर ही आधारित था जिसे सबने अपने-अपने स्वार्थ के लिए लड़ा था, ना कि देश भक्ति के लिए। महान देश भक्ति से इसे बाद में सवर्ण इतिहासकारों द्वारा जोड़ दिया गया…….इस सब में कई दलित बहुजन नायक मिटा दिए गए।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."