• प्रमोद दीक्षित मलय
वीर प्रसविनी बुंदेली धरा में पानी का संकट भले ही रहा हो पर बुंदेली संतानों की देह और आंखों में पानी हमेशा बना रहा, हिलोरे लेता रहा है। यह पानीदार पानी समाज की समृद्धि के लिए नवल वितान रचता रहा है तो ममता-समता, न्याय एवं विश्वास के जीवंत प्रतिमान भी गढ़ता रहा है। बुंदेली पानी अपनी जाज्वल्यमान आग और निर्मल शीतलता सहेजे महान विभूतियों की सेवा साधना एवं कर्तव्य परायणता का साक्षी रहा है और प्रेरणा का कारण भी। पानी एवं बानी के आराधक मां भारती के एक ऐसे ही तप: पूत युवा समाज सेवा साधक गोपाल भाई के ललाट पर अरुण सूरज ने रोली का तिलक कर चार दशक पूर्व समाज रचना के कर्म क्षेत्र में बढ़ने और कुछ नया रचने-बुनने-गुनने को प्रवृत्त-प्रेरित किया था। जेपी आंदोलन की ऊर्जा से उद्भूत और पं.दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय दर्शन से प्रभावित होकर बुंदेलखंड के बीहड़ क्षेत्र पाठा में कदम धरा तो बस यहीं के होकर रह गये।
पाठा के बाशिंदे कोल वनवासियों का जीवन शेष देश-दुनिया के जीवन से बिल्कुल अलग नीरस, बेरंग, बेजान तो था ही अंधेरे की चादर ओढ़े अपने अधिकारों से अनजान बेसुध पड़ा भी था। पाठा में पानी में पहरा था और जवानी बंधक थी।
कर्ज के जाल में उलझे कोल का श्रम पीढ़ी दर पीढ़ी किसी ऊंची चौखट पर विवश खड़ा था। आजीवन हाड़तोड़ श्रम के बाद भी कर्ज की ब्याज विष बेल घटने की बजाय बढ़ती-लहलहाती रही। तो ऐसे वनवासी कोलों के जीवन में रंग भरने, अपने खेत पर मालिक होकर स्वयं खेती करने, कर्ज के मकड़जाल से मुक्त हो आजाद पंछी की मानिंद उड़ने और सबसे बडी़ बात एक इंसान के रूप में पहचान दिलाने का महती कार्य जिस महनीय व्यक्तित्व के अनवरत संघर्ष, कानूनी पैरवी से सम्पन्न हो सका उसे हम सभी गोपाल भाई के नाम से जानते हैं।
गोपाल भाई का जीवन समाज की रचना में जुटने वाली नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणा एवं प्रोत्साहन का हेतु है। आपका रोपा पौधा अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान समाज रचना का प्रेरक स्थल बनकर समाज में उमंग, उत्साह, उल्लास भर रहा है।
बुंदेलखंड के जनपद बांदा के ग्राम बिगहना में आज से 82 साल पहले एक बालक ने जन्म लिया। सामाजिक विषमताओं के बीच बचपन धीरे-धीरे आकार लेने लगा। तमाम चुनौतियां एवं झंझावातों से गुजर प्राथमिक शिक्षा पूरी की।
कौन जानता था खेत की माटी में खेलता यह बालक एक दिन अपने गांव ‘बिगहना’ के नाम को सार्थक कर अपने हाथों में सेवा साधना की तमाम उपलब्धियों के विशेष गहनों से अलंकृत होगा। अपने कर्म, चिंतन एवं सफल प्रेरणाप्रद सेवा उदाहरणों की सुगंध से देश में पाठा की पहचान बनेगा।
प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही आपकी नैसर्गिक संगठन क्षमता, कंठ की मिठास और नेतृत्व-प्रबंधन का गुण शिक्षकों ने पहचान लिया था। गुरुओं की निस्वार्थ सेवा के कारण ही आप शिक्षकों के प्रिय शिष्य बने। विद्यालय में विषयों का सम्यक पारायण कर होशियार छात्र के रूप में आगे रहे तो पाठ्येतर गतिविधियों गायन, वादन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़ कर सहभागिता करते रहे। यह मां सरस्वती की विशेष कृपा रही कि आपका कंठ प्राकृतिक रूप से सुरीला रहा। इस कारण जल्दी ही आप लोक संगीत की मंडलियों के भी प्रिय हो गये। कालांतर में आप लोक साहित्य, संगीत, वाद्य एवं गीतों के अन्वेषण में जुटे और लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए ‘लोकलय’ नामक सांस्कृतिक कार्यक्रम आरंभ किया जिसमें खोज-खोजकर बुंदेलखंड की विभिन्न विधाओं यथा सोहर, दादरा, कजली, सावनी, चंगेली, राई, चैती, लमटेरा, फाग, कहरवा, अहिरही आदि के लोक गायकोंं को प्रशिक्षण देकर मंच प्रदान किया तो शास्त्रीय संगीत में पखावज के संरक्षण के लिए सुश्याम जयंती का आयोजन कर समूह मृदंग वादन का शहर दिया। इतना ही नहीं, आप मित्रता को जीवन की पूंजी मानते हैं, जीते हैं। इसके साक्षी हैं बचपन के मित्र। ऐसे ही बालमित्र है छिबांव वासी रामयश द्विवेदी नन्ना।
एक बार मुझे गोपाल भाई के साथ दीपावली के बाद ग्राम सहेवा में आयोजित दीवारी लोक नृत्य देखने का अवसर मिला था। वापसी में खुरहंड स्थित नन्ना के आवास पर कुछ देर रुकना हुआ। तब आपने नन्ना का परिचय कराते हुए कहा कि स्कूली जीवन में हम नाटकों में साथ-साथ अभिनय करते थे। नन्ना की संवाद कला अद्भुत थी। हमारी जोड़ी इलाके में प्रसिद्ध हो गयी। मेरे गीत और नन्ना की संवाद अदायगी के चर्चे होते थे। आज भी यह मित्रता अपनी खुशबू बिखेर रही है।
गोपाल भाई ग्रामीण युवक-युवतियों के प्रशिक्षण, स्वरोजगार एवं स्वावलंबन के लिए सदा चिंतित रहे। योजनाएं बनायीं और धरातल पर उतारा भी। आज तमाम युवा संस्कारित होकर समाज जीवन की समृद्धि में अपना योगदान दे रहे हैं।
अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान, मानिकपुर, चित्रकूट आज स्वैच्छिक सेवा संस्थानों के मध्य अपनी गरिमामय पहचान के साथ सतत साधनारत है और गोपाल भाई भी। आठ दशकों का वैयक्तिक जीवन तमाम उतार-चढ़ावों, संघर्षों और आदर्श समाधानों का जीवन रहा है। उनका जीवन पाठा की सूनी आंखों में स्वप्न बोने और आनंद की फसल उगाने का रहा है। दीन-हीन कोलों की सघन अंधेरी कुटिया के द्वार पर आप ही अनवरत दीपक बन जले हैं तो वंचित पीडित मानवता की पीर कसक ओर वेदना को हरने हेतु हिमालय सा गले भी हैं। आपके जीवन का पल-पल दुःखी मानवता के उत्थान एवं सुख समिधा के समर्पण के लिए ही है। वह विशाल वटवृक्ष की भांति सभी को शीतल सुखद छाया में आश्रय लेकर भीषण ताप से बचाते हैं और स्वाभिमान से खड़ा होने की प्रेरणा भी बनते हैं। गोपालन, जैविक कृषि, ग्राम स्वावलंबन, जल संसाधनों का रक्षण सम्वर्द्धन करते हुए गोपाल भाई राष्ट्र निर्माण में अपनी सम्यक भूमिका निर्वहन करते हुए नवल पीढ़ी का प्रकाश स्तंभ की भांति मार्गदर्शन करते रहेंगे।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."