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November 23, 2024 9:00 am

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यहां खेली गई थी “खून की होली” जिसे याद कर आज भी सहमे लोग खून के आंसू बहाते हैं

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

इटावा: आज से करीब 16 साल पहले चंबल क्षेत्र में 101 ब्राह्मणों के सिर कलम करने का ऐलान करने वाले कुख्यात दस्यु सरगना जगजीवन परिहार की खूनी होली की याद कर ग्रामीण सहम जाते है। रंगो का पर्व होली हर किसी की जिंदगी में खुशी लेकर आता है लेकिन इटावा जिले में 16 साल पहले डाकू जगजीवन की खूनी होली की याद कर आज भी लोग सहम जाते है।

बिठौली थाना क्षेत्र के तहत चौरैला, पुरा रामप्रसाद और ललुपुरा गांव मे 16 मार्च 2006 को डाकू जगजीवन ने मुखबिरी के शक में खूनी होली खेली और जनवेद सिंह, करन सिंह और महेश की हत्या कर दी थी। इस खूनी होली की गूंज सारे देश मे सुनाई दी क्योंकि चंबल घाटी में होली पर इस तरह को कोई दूसरा कांड नही हुआ था। इस जघन्य वारदात के बाद होली में जिंदा जलाए गए युवक के स्वजन होली के त्योहार पर रंग-बिरंगे रंगों में मस्त होने के बजाय खून के आंसू बहाते हैं।

होलिका दहन पर मुखबिरी के शक में जगजीवन परिहार के साथ आए डकैतों के साथ धावा बोलकर भय कायम रखने के लिए अपनी ही जाति के जनवेद सिंह को जलती होली में जिदा फेंककर ग्रामीणों के सामने फूंक दिया था। इसके बाद ललूपुरा गांव में धावा बोलकर करन सिंह को बातचीत के नाम पर गांव के तालाब के पास बुलाया और गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया था। इतने पर भी डकैतों को सुकून नहीं मिला, तो पुरा रामप्रसाद में सो रहे अनुसूचित जाति के महेश को गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया था।       

14 मार्च 2007 को सरगना जगजीवन परिहार व उसके गिरोह के पांच डाकुओं को मध्य प्रदेश के मुरैना एवं भिंड जिला पुलिस ने संयुक्त आपरेशन में मार गिराया था। गढि़या गांव में लगभग 18 घंटे चली मुठभेड़ में जहां एक पुलिस अफसर शहीद हुआ, वहीं पांच पुलिसकर्मी घायल हुए थे। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व राजस्थान में आतंक का पर्याय बन चुके करीब आठ लाख रुपये के इनामी जगजीवन परिहार गिरोह का मुठभेड़ में खात्मा हुआ था। ललूपुरा गांव के बृजेश कुमार सहित अन्य ग्रामीण बताते हैं कि जगजीवन की दहशत क्षेत्र में इस कदर व्याप्त थी कि उस समय गांव में कोई रिश्तेदार नहीं आता था। लोग अपने घरों के बजाय दूसरे घरों में रात बैठ कर के काटा करते थे। उस समय डाकुओं का इतना आतंक था कि लोगों की नींद उड़ी हुई थी।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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