जीशान मेंहदी की रिपोर्ट
लखनऊ: दुनिया की निगाहें इस वक्त यूक्रेन में चल रहे युद्ध पर टिकी हैं। यूपी के भी हजारों परिवार पल-पल यूक्रेन की घटना पर नजर बनाए हुए हैं। वजह है कि इन परिवारों के सदस्य हजारों भारतीय की तरह यूक्रेन में फंसे हैं। लखनऊ की रहने वाली गरिमा मिश्रा के सामने आए वीडियो को देख कर दूसरे छात्रों के परिवार वाले भी परेशान हैं। ऐसे परेशान परिवारों और उनके अपनों को वतन वापस लाने में मदद के लिए लखनऊ के शास्त्री भवन में एक कंट्रोल रूम बनाया गया है। राहत आयुक्त कार्यालय में यह कंट्रोल रूम 24 घंटे काम कर रहा है।
एक बंकर में छिपे चंद लोग और बंकर के बाहर होने वाली गोलियों की तड़तड़ाहट-बम व मिसाइल के धमाके। हर धमाके के बाद यही कयास कि कहीं बंकर की छत से मिसाइल न टकराई हो। मौत और जिंदगी के बीच खौफनाक मंजर में वक्त बिता रहे इन छात्रों की बेबसी, बेचारगी और बंदिशों का दौर यहीं खत्म नहीं हो रहा। क्योंकि पेट भरने से लेकर गला तर करने की भी मोहताज-गी साथ लगी है। एक ब्रेड किसी तरह ले भी आओ तो उस पर सभी लोग टूट पड़ते हैं।
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव थमने का नाम नहीं ले रहा है। लगातार रूस की ओर से यूक्रेन पर आक्रमक तेवर अपनाते हुए हमले किए जा रहे हैं। इस बीच यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों की वापसी के लिए कई देश प्रयास कर रहे हैं। वहीं, भारत सरकार की ओर से भी अपने नागरिकों को भारत लाने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं।
मथुरा का ओम
इसी कड़ी में जनपद मथुरा के रहने वाले कई छात्र-छात्राएं यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। सरकार के प्रयास से जनपद मथुरा के कई छात्र-छात्राएं अपने घर सही सलामत पहुंच चुके हैं। यूक्रेन से अपने घर पहुंचे छात्र-छात्राओं ने वहां के हालात से सभी को अवगत कराया।
वहीं उन्होंने सही सलामत घर वापसी के लिए सरकार को धन्यवाद भी दिया और कहा कि हम उम्मीद करेंगे कि जो हमारे अन्य साथी वहां अभी भी फंसे हैं, उनकी भी जल्द वतन वापसी हो। ओम आगे बताया कि यूक्रेन में मेरी बहन भी थी, वो बहुत ज्यादा डरी हुई थी। जिसकी वजह से मुझे भी डर लग रहा था। लेकिन वह भी अब सुरक्षित घर लौट चुकी है। हमारी घर वापसी में सरकार का अहम योगदान रहा है। हमें बिल्कुल निशुल्क और सुविधा के साथ बहुत कम समय में घर तक वापस लाया गया है।
बरसाना की राधिका
मथुरा के बरसाना की रहने वाली राधिका गोयल ने बताया कि 22 फरवरी की रात 3 बजे आचनक धमाकों की आवाज सुनाई दी, जिसे सुनकर हॉस्टल में मौजूद सभी छात्र डर गए। सायरन बजने लगे और इसके बाद वहां आफरा-तफरी मच गई। तुरंत सभी लोगों ने बाजार से खाने पीने का सामान स्टॉक कर लिया और हमने एटीम से पैसे निकाल लिए। इस दौरान हमे वहां के प्रशासन ने किसी अप्रिय घटना से बचने को बंकर में रहने के लिए भेज दिया। इवानो के प्रशासन ने हमे बताया कि लगातार सायरल बजे तो तुरंत बंकर में जाकर छिपना है।
आगे उसने बताया कि 25 फरवरी तक लगातार इवानो शहर पर हमले हो रहे थे। एयरपोर्ट पर भी धमके शुरू हो गए थे। ऐसे में हम किसी तरह से 25 की रात को टैक्सी से रोमानिया बॉर्डर पर पहुंच गए। इस दौरान करीब तीन किलोमीटर हम पैदल भी चले। वहीं, हमारी भारतीय दूतावास ने भी काफी मदद की। टैक्सी पर तिरंगा लगा होने के कारण न तो रूसी सेना ने और न ही यूक्रेन की सेना ने हमारी गाड़ी को रोका। सरकार की वजह आज हम लोग अपने वतन सुरक्षित लौटे हैं।
फाल्गुनी
यूक्रेन से लौटी एमबीबीएस छात्रा फाल्गुनी ने बताया कि दो देशों की लड़ाई के बीच इंडिया के छात्र स्ट्रगल कर रहे हैं। हालांकि यूक्रेन के हालात को लेकर भारतीय दूतावास से 20-25 दिन पहले एडवाइजरी आई थी। लेकिन हमारी यूनिवर्सिटी ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया था। वहीं, जब राजधानी कीव पर हमले तो हमारे पास इंडिया लौटने का कोई ऑप्शन ही नहीं था। भारतीय दूतावास ने उस समय तीन फ्लाइट अरेंज की थी, जो पूरी तरह से फुल थी। वहीं फाल्गुनी ने इसे एक बुरा सपना करार देते हुए कहा कि अभी भी जो छात्र यूक्रेन में रह गए हैं उनके लिए बहुत मुश्किल भरा समय है।
अलीगढ़ की रहने वाली फाल्गुनी यूक्रेन में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा है। फाल्गुनी ने बताया कि करीब मेरे साथ ढाई हजार भारतीय छात्र यूक्रेन में फंसे हैं। फाल्गुनी ने बताया कि यूक्रेन से रोमानिया आने तक पैसे खर्च हुए। लेकिन रोमानिया से इंडिया आने में कोई पैसा खर्च नहीं हुआ। भारत सरकार ने फूड और ट्रांसपोर्ट का पूरा प्रबंध कराया। फाल्गुनी ने बताया कि भारत सरकार जितना कर सकती थी कर रही है लेकिन यूक्रेन की सरकार अगर पहले ही भारतीयों को खतरे का आगाह कर देती तो ऐसी स्थिति नहीं होती। फाल्गुनी ने बताया कि अब परिस्थितियां बहुत कठिन है। इसलिए भारत सरकार ने अपने मिनिस्टर को रोमानिया और पौलेंड भेजा है।
फाल्गुनी ने बताया कि हमारी क्लासेस ऑफलाइन चल रही थी और ऐसी परिस्थितियों में छात्रों द्वारा क्लास में उपस्थित नहीं होने पर भारी फाइन देना पड़ता है। यूक्रेन की सरकार रशिया के हमले को हल्के में लिया। अगर यूक्रेन की सरकार ने समय पर यूक्रेन से निकलने का नोटिस दे दिया होता तो आज ऐसी स्थिति नहीं बनती। फाल्गुनी ने यूक्रेन में फंसे होने का एक-एक पल बयां किया। उन्होंने बताया कि एक अलार्म बजने पर ही हम लोग को बंकरों में भागना पड़ता था। उन्होंने बताया कि बंकर्स में यूक्रेन के लोगों को पहले वरीयता दी जाती थी। इंडियंस के लिए अलग से सेंटर नहीं बनाये गए थे।
फाल्गुनी बताती है कि रोमानिया बॉर्डर पर भी पहुंचना आसान नहीं था। बहुत खतरनाक स्थिति थी। फाल्गुनी ने बताया कि हमें एमबीबीएस की किताब नहीं लाने दिया गया। हमें सिर्फ अपने दो जोड़ी कपड़े, थोड़ा खाना और पानी की बोतल ही अपने साथ ले जाना था। वहां का तापमान माइनस 5 डिग्री था। उन्होंने बताया कि भारतीय लोगों के लिए शेल्टर की कोई व्यवस्था नहीं की गई। हम लोगों ने गत्ते को फाड़कर और उसे बिछाकर छह से सात घंटे भीषण ठंड में बिताए।
फाल्गुनी ने बताया कि भारतीय दूतावास की तरफ से मैसेज आया था कि रशियन आर्मी इंडियन को कुछ नहीं कहेंगे अगर बसों पर भारतीय झंडे लगाए। फाल्गुनी ने बताया कि अगर आप झंडा नहीं लगाएंगे तो हो सकता है हमला हो सकता है। हमारा तिरंगा झंडा ही पासपोर्ट था और किसी ने कुछ नहीं कहा। वहीं, फाल्गुनी के पिता पंकज ने बताया कि यूक्रेन की हालत से अभिभावक परेशान हैं। अलीगढ़ के अभी भी 23 बच्चे यूक्रेन में फंसे हुए हैं।
यूपी शासन की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक, यूपी के 1 हजार 242 लोग यूक्रेन में फंसे हैं। इनमें लखनऊ के 66, बिजनौर के 59, गाजियाबाद के 48 और गोरखपुर के 46 लोग अभी भी मदद के इंतजार में हैं। यूक्रेन के हालात दिन पर दिन बिगड़ने से छात्र लगातार अपने वतन वापसी की गुहार लगा रहे हैं। लखनऊ में बना कंट्रोल रूम इनसे लगातार संपर्क में है। यूक्रेन में फंसे बच्चों की जानकारी उनके परिवार को भी दी जा रही है। साथ ही, सभी जानकारियां विदेश मंत्रालय को दी जा रही हैं।
85 लोगों की सुरक्षित यूपी वापसी
कंट्रोल रूम के आंकड़ों के मुताबिक, अभी तक यूक्रेन में फंसे 85 लोगों की सुरक्षित घर वापसी हो चुकी है। इनमें अधिकतर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्र हैं। यूपी से बड़ी संख्या में बच्चे मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए यूक्रेन जाते हैं। अभी बड़ी संख्या में बच्चे वहां फंसे हैं। भारत सरकार इन्हें जल्द सुरक्षित वापस लाने का दावा कर रही है। मगर, वहां के बदलते हालात ने परेशानियां बढ़ा दी हैं।
मेरठ का अजीम पिछले 3 दिनों से यूक्रेन-पोलैंड बॉर्डर पर लापता है। परिवार ने बेटे की 3 दिन से न आवाज सुनी, न वीडियो कॉल में सूरत ही देखी है। जंग और अफरा-तफरी के माहौल में उनके जिगर का टुकड़ा कैसा और कहां है, मां-बाप कुछ नहीं जानते। घरवालों के लिए एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा है। घर में चुप्पी के साथ अनहोनी का खौफ है। रिश्तेदारों की आवाजाही लगी है।
छोटी बहनों की नजरें एक पल मोबाइल की स्क्रीन से ओझल नहीं होतीं। वे बार-बार फोन की आवाज चेक करती हैं, तो कभी नेटवर्क देखती हैं। क्या पता कब भाई का फोन आ जाए और एक सेकेंड ही सही वे उसका चेहरा तो देख लें। उनका भाई आखिर कैसा है, कहां है?
‘मैं पिता हूं, छुपकर रो लेता हूं’
मेरठ के हूमायूं नगर में रहने वाले आईए खान का बेटा अजीम इवानो से एमबीबीएस पांचवें सेमेस्टर की पढ़ाई कर रहा है। बेटे के गम में डूबे खान आंसू छुपाने के लिए तीन दिन से चश्मा चढ़ाए हैं। कभी भावनाओं को काबू करने के लिए सिर नीचे झुका लेते हैं। खान कहते हैं, ‘मैं आदमी हूं, अपना गम दिखा नहीं सकता। मुझे पत्नी, बच्चों को संभालना है। मुझे टूटने की इजाजत नहीं। मगर, मैं एक बाप भी हूं, जो बेटे की याद में तड़प रहा है। पत्नी से छिपकर बाथरुम में रोकर दिल हल्का कर लेता हूं
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."