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प्रियांशु सक्सेना
ऐ रे कान्हा मधुसूदन
अर्पण तुझको तन और मन
धरे बांसुरी अधर पर
मोर पंख है मुकुटन
घूँघर बाजे पैजनिया
कमर करधनी छन् छन्
ऐ रे कान्हा मधुसूदन
अर्पण तुझको तन और मन
कमल भांति है लोचन तेरे
छवि है अविकल न्यारी
दर्शन की अभिलाषी मीरा
हो गयी तेरी बौरन
ऐ रे कान्हा मधुसूदन
अर्पण तुझको तन और मन
(काव्य दीप के प्रथम वर्षगांठ पर आयोजित काव्य प्रतियोगिता में शामिल यह कविता दूसरे स्थान पर रही)
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."
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