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November 22, 2024 9:08 am

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वर्तमान समय और समाज में पसरते कोलाहल को भी अपनी अनुभूतियों में समेटा है “रंग आंसुओं के”

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राजीव कुमार झा

सुपरिचित कवि राजेश कुमार गुप्ता के प्रस्तुत कविता संग्रह ” रंग आंसुओं के ” में उनके लिखे गीत गजल और गाने संग्रहित हैं और इनमें प्रेम के सहज भावों के सहारे जीवन के वैयक्तिक राग विराग के अलावा वर्तमान समय और समाज में पसरते कोलाहल को भी अपनी अनुभूतियों में समेटा है । कविता को यथार्थ का आईना कहा जाता है और इसके कैनवास पर आदमी की जिजीविषा कई रूपों मे प्रकट होती है और जिंदगी का सच्चा रंग    ।     

कविता को पठनीय बनाता है । राजेश कुमार गुप्ता की इन कविताओं को इस दृष्टि से उल्लेख नीय  कहा जा सकता है और इनमें रोजमर्रा के जीवनानुभवों के अलावा समाज के बदलते परिवेश   ।

से उपजे सवालों को भी कवि ने काफी शिद्दत से उठाया है । प्रेम परक शैली में रची गई इन कविताओं में वर्तमान काल के संकट और मानवीय रिश्तों में दस्तक देने वाली खामोशी रास्तों में दिखायी देने वाले सन्नाटे के साथ आदमी के इस अकेले सफर  में निरंतर उसके मनप्राण को कचोटती रहने वाली अनगिनत बातें इस संग्रह की ज़्यादातर कविताओं में उभरती प्रतीत होती हैं ।

” तुम्हें मनाने की कोशिशों को मेरा हुनर न कहो / जो हुनर हैं , वो हुनर भी अब कहां साथ चले / बहुत भीड़ बढ़ गयी है शहर की हर गली में / तुम्हें देखने की हसरत दम न कहीं तोड़ चले / तुम्हारा मेरे ख्वाबों में आने का सिलसिला जारी है / क्या हम भी आते हैं तेरे ख़्वाबों में कैसे पता चले । “

जीवन से मन के गहरे लगाव को उकेरती इन कविताओं के सरल ताने बाने में अभिप्राय के रूप में व्यापक अर्थों की प्रतीति समायी है और तमाम तरह के अलगाव घुटन संत्रास पीड़ा और व्यथा के बीच यहां कविता निश्छल प्रेम की सृष्टि से आदिम संगीत की तान से   मन को आत्मिक सुख की लय में पिरोककर अपनी अर्थपरकता को प्रमाणित करती है ।

कवि राजेश कुमार गुप्ता

” ढह गये जो शहंशाह हुआ करते थे / इस सच को झूठलाता क्यूं है / डर जाते हैं गली में खेलते हुए बच्चे / हर कोई इतनी जोर से चिल्लाता क्यूं है / सब रहते हैं कांच के घरों में /फिर दिन भर सच को झूठ से छिपाता क्यूं है / हर कोई इस शहर में चोट खाया हुआ है / फिर दूसरों को वो सताता क्यूं है । “

जीवन को स्मृतियों की रेखाओं से  अर्थ प्रदान करना और काल के प्रवाह में इसके धुंधले अक्सों को कविता में उकेरना जितना रोचक है , उतना ही कठिन भी है । राजेश कुमार गुप्ता की कविताओं में प्राय: समय का यह चित्र जीवन की पहेलियों को साफ – साफ प्रकट करता है और तमाम तरह के बदलावों में आत्मीय रिश्तों की आंच को जिलाये रखता है !

” वो आम का मौसम / और हैंडपंप का ठंडा पानी / वो बांट के खाना / खुल के खिलखिलाना / बारिश के मौसम में / मां का पकौड़े बनाना । “

रोमानी शैली में लिखी गयी इन कविताओं में पहली कविता से लेकर आखिरी कविता तक यथार्थ और कल्पना के माधयम से कवि जीवन को देखने – जानने के यत्न के अलावा कविता में उसको रचता हुआ भी दिखाई देता है । इस रूप में इन कविताओं का सृजन सार्थक कहा जा सकता है । प्रेम की पावनता और उसी अनुरूप इसके प्रतिदान को पाने की साधना ही सचमुच प्रेम का ध्येय हो सकता है ! इस संग्रह की कविताएं इस तथ्य को प्रमाणित करती हैं !

” आंखों में तुम थे / तुममें मैं था /मुझमें खुशी थी / जब हम स मिले थे / चेहरे पर चमक थी / लबों पे लाली थी / खनकती हंसी थी / जब हम साथ चले थे/ बिना किसी बात के / गलतफहमी की रात में / क्यों मन दुख गया / मेरी एक बात से / दिलों में शिकवे हैं / आंखों में पानी है /दीन में अंधेरा है / सिसकती क्यों धूप है / काले सब पत्ते हैं / तुम्हें पुकारता हूं / खुद ही सुनता हूं । “

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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