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4 March 2025 1:14 am

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बेवा कलावती की बदहाली: सरकारी योजनाओं का इंतजार, समाजसेवी सुमित शुक्ला ने बढ़ाया मदद का हाथ

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सुशील कुमार मिश्रा की रिपोर्ट

बांदा। गरीबी किसी अभिशाप से कम नहीं होती, खासकर जब किसी के अपने मजबूरियों के कारण दाने-दाने को मोहताज हो जाएं। ऐसा ही एक मामला विकासखंड महुआ के ग्राम सहेवा में देखने को मिला, जहां बच्चा यादव की गंभीर बीमारी के कारण कुछ महीने पहले मृत्यु हो गई। उनके इलाज में परिवार ने अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी, लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें बचा नहीं सके।

कलावती की दयनीय स्थिति

बच्चा यादव की विधवा पत्नी कलावती ने बताया कि उनके पास अब सिर्फ दो बीघा जमीन बची है, बाकी सारी संपत्ति इलाज में चली गई। अब उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि जीवनयापन भी मुश्किल हो गया है। सरकारी योजनाओं में से अब तक उन्हें सिर्फ राशन का लाभ मिल पाया है, लेकिन अन्य योजनाओं जैसे विधवा पेंशन और प्रधानमंत्री आवास योजना से वे वंचित हैं।

समाजसेवी सुमित शुक्ला ने बढ़ाया मदद का हाथ

हालांकि, कहते हैं कि डूबते को तिनके का सहारा मिल ही जाता है। इसी क्रम में समाजसेवी सुमित शुक्ला को जब इस परिवार की हालत की जानकारी मिली, तो वे तुरंत उनके घर पहुंचे। उन्होंने स्थिति का जायजा लेने के बाद ग्राम प्रधान अशोक कुशवाहा से फोन पर बात की और सरकार द्वारा संचालित योजनाओं की जांच कराकर लाभ दिलाने का अनुरोध किया।

आगे की कार्रवाई

सुमित शुक्ला ने कहा,

“बच्चा यादव के इलाज में पूरा परिवार आर्थिक रूप से टूट चुका है, लेकिन सरकार और नेताओं से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। अब जब हमें जानकारी हुई है, तो हमने ग्राम प्रधान को इस विषय में अवगत कराया है। इसके अलावा, हम जल्द ही अधिकारियों और नेताओं से संपर्क कर इस परिवार को हरसंभव मदद दिलाने का प्रयास करेंगे।”

क्या जरूरत है सरकारी मदद की?

कलावती जैसी विधवाओं को सरकार की योजनाओं का लाभ समय पर नहीं मिल पाना व्यवस्था की खामी को दर्शाता है। यदि प्रशासन और जनप्रतिनिधि समय रहते ध्यान दें, तो ऐसे कई परिवारों को आर्थिक संकट से उबारा जा सकता है।

इस घटना से स्पष्ट है कि जरूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं का लाभ तुरंत पहुंचाने की जरूरत है। अगर समाजसेवी और जागरूक नागरिक आगे बढ़कर पहल करें, तो कई गरीब परिवारों की तकदीर बदल सकती है। अब देखना यह होगा कि क्या कलावती को सरकारी मदद मिल पाती है या फिर यह मामला भी सिर्फ आश्वासनों तक ही सीमित रह जाता है?

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