हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
नक्सलवाद, जो कभी वंचितों और गरीबों के हक की लड़ाई के रूप में शुरू हुआ था, आज देश की सुरक्षा के लिए आतंकवाद से भी बड़ी चुनौती बन गया है। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह समस्या अपनी जड़ें इतनी गहरी जमा चुकी है कि इसे उखाड़ पाना अत्यंत कठिन प्रतीत होता है। हाल के बीजापुर जिले के अंबेली गांव में हुए आईईडी विस्फोट ने इस खतरे को एक बार फिर उजागर कर दिया, जहां 8 जवान और एक वाहन चालक शहीद हो गए। यह हमला न केवल हमारे सुरक्षा तंत्र की खामियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि नक्सली किस हद तक खतरनाक हो चुके हैं।
नक्सलवाद के बढ़ने के कारण
गरीबी और असमानता: आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया। जब दो वक्त की रोटी, शिक्षा, और रोजगार नहीं मिलता, तो हताशा और गुस्सा जन्म लेता है।
भ्रष्टाचार: प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार ने इन लोगों के अधिकारों और न्याय से वंचित कर दिया।
प्रेरणा और हिंसा: साम्यवादी विचारधारा के नाम पर नक्सलवादियों ने गरीब और वंचित वर्ग को बहला-फुसलाकर हिंसा के रास्ते पर धकेला।
असफल विकास नीतियां: सरकार द्वारा घोषित विकास योजनाएं अक्सर प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंच ही नहीं पातीं।
केंद्र सरकार के दावे और चुनौतियां
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि मार्च 2026 तक नक्सलवाद का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा। हालांकि, यह दावा जितना प्रेरणादायक है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। आंकड़े बताते हैं कि 2024 में 287 नक्सली मारे गए, 1000 से अधिक गिरफ्तार किए गए, और 837 ने आत्मसमर्पण किया। लेकिन इसके बावजूद नक्सलियों की पकड़ मजबूत बनी हुई है। बीजापुर और दंतेवाड़ा जैसे क्षेत्रों में आए दिन होने वाले हमले इस बात का सबूत हैं कि नक्सलवादियों की रणनीति अभी भी कारगर है।
सुरक्षा तंत्र की खामियां
अंबेली हमले में जिस तरह से 70 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया, उसने सुरक्षा तंत्र की गंभीर खामियों को उजागर किया है। ‘रोड ओपनिंग पार्टी’ का यह प्राथमिक दायित्व है कि किसी भी प्रकार के खतरे को पहले ही भांपकर निष्क्रिय करे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। सवाल उठता है कि सुरक्षा बलों की आवाजाही को सड़कों के बजाय हवाई मार्ग से क्यों नहीं किया जा सकता?
नक्सलवाद के खिलाफ समाधान
सामाजिक और आर्थिक विकास: प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, रोजगार, और बुनियादी ढांचे का विकास किया जाए।
भ्रष्टाचार पर सख्ती: प्रशासनिक व्यवस्था को पारदर्शी बनाया जाए ताकि वंचितों को न्याय और उनके अधिकार मिल सकें।
सुरक्षा बलों की आधुनिकता: सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक तकनीक और उपकरणों से लैस किया जाए।
स्थानीय लोगों को सशक्त करना: आदिवासी समुदाय के साथ संवाद स्थापित कर उन्हें नक्सलियों के प्रभाव से बाहर लाया जाए।
नक्सलवाद केवल एक सुरक्षा समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारी सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की विफलता का प्रतिबिंब है। इसे केवल बल प्रयोग से नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और विकास के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है। हालांकि, सरकार के प्रयास और हमारे सुरक्षा बलों के बलिदान सराहनीय हैं, लेकिन 2026 तक नक्सलवाद के पूर्ण खात्मे का लक्ष्य तभी साकार होगा जब हम समस्या की जड़ों पर वार करेंगे। बीजापुर का ताजा हमला यह याद दिलाता है कि अभी भी बहुत काम बाकी है। देश नक्सलवाद के खात्मे का इंतजार कर रहा है और यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक कि इस समस्या का नामलेवा भी शेष न रह जाए।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."