सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव में जन्मे राकेश टिकैत आज भारतीय किसान आंदोलन का एक मजबूत चेहरा हैं। वे भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र हैं। राकेश टिकैत का नाम 1993-1994 के लाल किले किसान आंदोलन और हालिया 2020 के किसान आंदोलन में प्रमुखता से उभरा।
1993-1994 का किसान आंदोलन और पुलिस की नौकरी से इस्तीफा
साल 1993-94 में जब दिल्ली के लाल किले पर महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसान आंदोलन चल रहा था, तब सरकार ने इसे खत्म कराने के लिए राकेश टिकैत पर दबाव बनाया। उस समय वे दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल थे। अधिकारियों ने उनसे कहा कि वे अपने पिता महेंद्र सिंह टिकैत और भाइयों को आंदोलन खत्म करने के लिए मनाएं। लेकिन राकेश टिकैत ने ऐसा करने से मना कर दिया और पुलिस की नौकरी से इस्तीफा देकर किसानों के संघर्ष में कूद गए।
यह उनके किसान नेता बनने की शुरुआत थी। पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद राकेश टिकैत पूरी तरह भारतीय किसान यूनियन के आंदोलन का हिस्सा बन गए। महेंद्र सिंह टिकैत की मृत्यु के बाद राकेश ने उनके किसान आंदोलन की विरासत को आगे बढ़ाया।
राकेश टिकैत का जीवन परिचय
4 जून 1969 को सिसौली में जन्मे राकेश टिकैत ने अपनी स्कूली शिक्षा ताशी नामग्याल हाई स्कूल से की और मेरठ यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। बाद में उन्होंने एलएलबी भी किया। 1985 में उनकी शादी सुनीता देवी से हुई, जिनसे उनके तीन बच्चे हैं—बेटा चरण सिंह और दो बेटियां, सीमा और ज्योति। बेटा चरण सिंह खेती करता है।
राजनीतिक सफर और संघर्ष
राकेश टिकैत ने राजनीति में भी हाथ आजमाया। 2007 में उन्होंने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। 2014 में उन्होंने अमरोहा से लोकसभा चुनाव लड़ा, जहां राष्ट्रीय लोक दल (RLD) ने उन्हें टिकट दिया, लेकिन यहां भी वे सफलता नहीं पा सके।
हालांकि, राजनीति में हार के बावजूद उन्होंने किसान आंदोलन को अपनी प्राथमिकता बनाए रखा। किसान अधिकारों के लिए लड़ाई के चलते वे अब तक 44 बार जेल जा चुके हैं। मध्य प्रदेश में भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ आंदोलन के दौरान उन्हें 39 दिन जेल में बिताने पड़े थे। संसद भवन के बाहर गन्ना मूल्य बढ़ाने की मांग को लेकर प्रदर्शन करने पर उन्हें तिहाड़ जेल भी जाना पड़ा था।
महेंद्र सिंह टिकैत का प्रभाव
महेंद्र सिंह टिकैत ने 1987 में भारतीय किसान यूनियन की स्थापना की थी। उनके नेतृत्व में कई बड़े आंदोलन हुए, जिनमें बिजली के दामों के खिलाफ शामली के करमुखेड़ी में हुआ ऐतिहासिक आंदोलन भी शामिल है। पिता के संघर्ष और साहस का गहरा प्रभाव राकेश टिकैत पर पड़ा। यही वजह थी कि उन्होंने किसान आंदोलन को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
2020 का किसान आंदोलन
राकेश टिकैत 2020 के किसान आंदोलन में एक प्रमुख नेता के रूप में उभरे। यह आंदोलन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ था, जिसे आखिरकार केंद्र सरकार को वापस लेना पड़ा। आंदोलन के दौरान टिकैत का भावुक वीडियो काफी वायरल हुआ, जिसने आंदोलन को नई ऊर्जा दी। उनके नेतृत्व में किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर महीनों तक डेरा डाले रखा।
वर्तमान किसान आंदोलन और राकेश टिकैत का दृष्टिकोण
हाल ही में, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में किसान अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। राकेश टिकैत फिर से चर्चा में आए जब उन्हें प्रदर्शन में शामिल होने से रोका गया। हालांकि, इस बार वे पहले की तुलना में कम सक्रिय दिख रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार ने किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए एक उच्चस्तरीय समिति बनाई है, और बातचीत से ही समाधान निकल सकता है।
राकेश टिकैत का मानना है कि आंदोलन को सफल बनाने के लिए सभी किसान संगठनों का एकजुट होना आवश्यक है। उनका कहना है कि दिल्ली कूच करने की बजाय धरना स्थल पर ही अपनी मांगों को सरकार के सामने रखना चाहिए।
राकेश टिकैत का किसान आंदोलन में योगदान उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत की विरासत का विस्तार है। संघर्ष, जेल यात्राएं, और आंदोलनों के जरिए उन्होंने किसानों की आवाज को बुलंद किया है। वर्तमान में भी वे किसान अधिकारों के लिए मजबूती से खड़े हैं और उनका शांतिपूर्ण और संगठित आंदोलन का दृष्टिकोण आने वाले समय में भारतीय किसान आंदोलनों को दिशा देता रहेगा।