किरण कश्मीरी की रिपोर्ट
अक्टूबर में स्तन कैंसर जागरूकता माह के दौरान शुरू किए गए इस अभियान में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) से निर्मित महिलाओं को बस में संतरे लिए दिखाया गया था, जिसके शीर्षक में महिलाओं से अनुरोध किया गया था कि वे (स्तन कैंसर) रोग का पता लगाने के लिए समय रहते ‘महीने में एक बार अपने संतरे की जांच कराएं।’ हालांकि, यह पोस्टर केवल एक ट्रेन पर था लेकिन यात्रियों ने इसकी तस्वीरें खींच ली, इसे व्यापक रूप से साझा किया और यह मुद्दा शीघ्र ही सोशल मीडिया सहित विभिन्न मंचों पर गंभीर चर्चा का विषय बन गया।
कलाकार और स्तन कैंसर से पीड़ित सुनैना भल्ला ने इस पोस्टर को लेकर नाराजगी जताते हुए पूछा, ‘‘क्या (पोस्टर) निर्माताओं में मानवीय शालीनता की इतनी कमी है कि वे शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग की तुलना एक फल से कर रहे हैं? यदि आपमें शरीर के अंग की परिभाषा का सम्मान करने की शालीनता नहीं है, तो आप महिलाओं को इसके बारे में सहजता से बात करना कैसे सिखा रहे हैं, जांच करवाना तो दूर की बात है?” भल्ला ने इस अभियान को ‘‘अप्रभावी, निरर्थक और आपत्तिजनक” करार दिया।
भल्ला ने कहा, ‘‘यह स्तन है – पुरुषों और महिलाओं दोनों में यह होता है और हां, दोनों को कैंसर हो सकता है। यह पोस्टर विज्ञापन उद्योग का एक नया निम्न स्तर है।” ‘‘अनुचित सामग्री” के खिलाफ लोगों की कड़ी आपत्ति के कारण दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) ने त्वरित प्रतिक्रिया दी और बुधवार रात पोस्टर हटा दिया।
एक्स यूज़र्स ने महिलाओं के शरीर के अंगों की तुलना फलों से करके इस मुद्दे को महत्वहीन बनाने पर प्रकाश डाला। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी विज्ञापन अभियान के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा लिया। एक्स पर डीएमआरसी के हैंडल को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा, “यह स्तन है, स्तन। कृपया इसे ज़ोर से बोलें। आपकी माँ के पास, आपकी पत्नी, आपकी बहन, आपकी बेटी के पास भी हैं। तकनीकी रूप से आपके पास भी एक जोड़ी है। अगर आपने ध्यान नहीं दिया है तो वे संतरे नहीं हैं।” कुछ यूज़र्स ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पुरुषों में भी स्तन कैंसर का निदान किया जा सकता है ।
गुरुवार को डीएमआरसी ने एक्स पर पोस्ट किया: “डीएमआरसी अधिकारियों ने सामग्री को अनुचित पाया और तुरंत मामले का गंभीर संज्ञान लिया। उक्त विज्ञापन केवल एक ट्रेन में प्रदर्शित पाया गया और बुधवार शाम करीब 7.45 बजे इसे हटा दिया गया।”
डीएमआरसी हमेशा जनता की भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहने का प्रयास करता है और किसी भी तरह के अभियान/गतिविधि/प्रदर्शन विज्ञापन को प्रोत्साहित नहीं करता है जो अच्छे स्वाद में नहीं है या सार्वजनिक स्थानों पर विज्ञापन के प्रचलित दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है। दिल्ली मेट्रो यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगी कि अनुचित विज्ञापन की ऐसी घटनाएं उसके परिसर में न हों,” उसने कहा।
“अपने संतरे चेक करें” इस विज्ञापन का उद्देश्य महिलाओं को अपने स्वास्थ्य की जाँच के प्रति जागरूक करना था, ताकि वे स्तन कैंसर के शुरुआती लक्षणों को पहचान सकें। हालाँकि, ‘संतरे’ शब्द के प्रयोग ने सोशल मीडिया और विभिन्न प्लेटफार्मों पर तीव्र प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न कीं, जिसमें कई लोगों ने इसे अश्लील और अपमानजनक बताया।
विज्ञापन की आलोचना करने वालों का कहना था कि “संतरे” जैसे प्रतीक का उपयोग महिलाओं के प्रति समाज में अनुचित दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकता है और यह संदेश युवाओं के लिए भी असुविधाजनक हो सकता है। आलोचकों ने इस प्रकार के प्रतीक को महिलाओं के प्रति असंवेदनशील माना और इसे स्तन कैंसर जैसे गंभीर विषय को गम्भीरता से प्रस्तुत करने के मार्ग में बाधा बताया।
इसके विपरीत, विज्ञापन का समर्थन करने वालों का तर्क था कि यह एक सरल और प्रभावी तरीका है, जो महिलाओं को स्तन कैंसर के बारे में सजग और जागरूक कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि कैंसर जैसे संवेदनशील विषयों पर जागरूकता फैलाने के लिए इसे आसान और आकर्षक तरीके से पेश किया जाना चाहिए, ताकि लोग इसे आसानी से समझ सकें। प्रतीकात्मक भाषा का उपयोग कई बार ऐसे विषयों पर बातचीत शुरू करने में सहायक हो सकता है, जो पारंपरिक रूप से वर्जित माने जाते हैं।
इस विवाद के कारण, दिल्ली मेट्रो ने इस विज्ञापन को हटा लिया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि समाज में जागरूकता अभियानों में रचनात्मकता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। इस घटना ने यह भी दर्शाया कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों में भाषा और प्रतीकों का चयन कैसे समाज के अलग-अलग वर्गों के दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकता है।
इस विवाद से यह सीख मिलती है कि समाज में महत्वपूर्ण संदेश देने के लिए प्रतीकों और भाषा के चयन में सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि उद्देश्य पूरा हो और किसी भी वर्ग में असुविधा उत्पन्न न हो। जागरूकता के साथ-साथ समाज की संवेदनशीलता का सम्मान करते हुए संचार के सही तरीके ढूँढना ऐसे अभियानों की सफलता के लिए आवश्यक है।
जागरूकता अभियान ने भले ही संदेश का प्रसार किया हो, लेकिन इसकी आलोचना करने वाले लोग अपनी टिप्पणियों में बिल्कुल स्पष्ट थे। कुछ ही समय में, सोशल मीडिया मंचों पर ऐसे पोस्ट की बाढ़ आ गई, जिसमें पूर्व क्रिकेटर एवं कैंसर से पीड़ित रह चुके युवराज सिंह द्वारा स्थापित गैर-लाभकारी संस्था द्वारा चलाए जा रहे अभियान को ‘‘लोगों की भावनाएं समझने में असमर्थ”, ‘‘ प्रतीक का मूर्खतापूर्ण इस्तेमाल”, ‘‘मानवीय शालीनता की कमी” वाला करार दिया गया है।
चिकित्सकों और कार्यकर्ताओं सहित विशेषज्ञों ने इस बहस में शामिल होकर कहा कि स्तन कैंसर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर संदेश ‘‘सीधा और सार्थक” होना चाहिए। कार्यकर्ता योगिता भयाना, जो पहले ‘यूवीकैन’ फाउंडेशन से जुड़ी थीं, ने स्वीकार किया कि गैर सरकारी संगठन से ‘‘गलती” हुई है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."