-अनिल अनूप
पत्रकारिता का क्षेत्र एक समय में एक सम्मानित और जिम्मेदार पेशा माना जाता था। इसका मूल उद्देश्य था समाज के सामने सत्य को प्रस्तुत करना, जन-हित के मुद्दों को उजागर करना, और लोकतंत्र को मजबूत बनाने में योगदान देना। लेकिन हाल के वर्षों में पत्रकारिता में जिस तरह का अनियंत्रित प्रसार हुआ है, उससे इस क्षेत्र की छवि और विश्वसनीयता पर गंभीर असर पड़ा है।
मीडिया के विकेंद्रीकरण का प्रभाव
डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के उदय के साथ, पत्रकारिता अब केवल बड़े समाचार संगठनों तक सीमित नहीं रही। अब हर कोई, चाहे वह व्यक्तिगत हो या छोटे समूह, अपने स्मार्टफोन और माइक के साथ किसी भी घटना या व्यक्ति के पास जाकर सवाल पूछ सकता है और इसे इंटरनेट पर प्रसारित कर सकता है।
यह स्थिति इस दृष्टिकोण को जन्म देती है कि कोई भी पत्रकार बन सकता है, बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण या पत्रकारिता के मानदंडों की समझ के।
तथ्य-जांच और विश्वसनीयता की कमी
जब पत्रकारिता में हर किसी के पास माइक और कैमरा हो, तो कई बार बिना तथ्य-जांच के खबरें प्रसारित होने लगती हैं। इससे अफवाहें और गलत जानकारी फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
कई “यूट्यूब पत्रकार” या “स्वतंत्र पत्रकार” खुद को पहले से स्थापित संस्थानों के समान महत्व देते हैं, लेकिन उनके पास वही जिम्मेदारी या संरचना नहीं होती। इस तरह की पत्रकारिता में एक बड़ा खतरा यह है कि जनता को सटीक और प्रामाणिक जानकारी नहीं मिल पाती।
पब्लिसिटी और सनसनीखेज पत्रकारिता
कई नए पत्रकार केवल पब्लिसिटी के लिए अपने कंटेंट का निर्माण करते हैं। वह समाज में गहरी रुचि रखने वाली या महत्वपूर्ण समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय ऐसी खबरें चुनते हैं जो सनसनीखेज हों और जल्दी से वायरल हो सकें।
कैमरे के सामने आकर किसी नेता या अधिकारी से विवादास्पद सवाल पूछना और सोशल मीडिया पर इसे दिखाना अधिकतर लोकप्रियता के लिए किया जाता है। यह वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय ध्यान भटकाता है।
वास्तविक पत्रकारों की प्रतिष्ठा पर असर
इस ‘भौकाल’ वाली पत्रकारिता ने वास्तविक, प्रशिक्षित और समर्पित पत्रकारों की प्रतिष्ठा को धूमिल किया है। जब हर कोई पत्रकार बन सकता है, तो जनता के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन विश्वसनीय है और कौन नहीं। इससे न केवल पत्रकारिता के पेशे का अपमान होता है, बल्कि सच और झूठ के बीच की रेखा भी धुंधली हो जाती है।
संपादकीय अखंडता का ह्रास
संपादकीय अखंडता, जो कि किसी भी समाचार संगठन की सबसे बड़ी पूंजी होती है, इन स्वतंत्र पत्रकारों के हाथों कमजोर हो रही है। एक संपादक के मार्गदर्शन के बिना, कई बार महत्वपूर्ण मुद्दों की गहराई से पड़ताल नहीं हो पाती और खबरों की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
प्रशिक्षण और पेशेवर पत्रकारिता के मानदंडों की अनदेखी
पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है विषय की गहरी समझ, नैतिकता, और जिम्मेदारी का पालन करना। लेकिन आज के कई नए पत्रकार इस महत्वपूर्ण पहलू की अनदेखी कर रहे हैं। पत्रकारिता केवल सूचनाओं को इकट्ठा करना और उन्हें प्रसारित करना नहीं है, बल्कि यह एक सेवा है जिसे जिम्मेदारी के साथ निभाया जाना चाहिए।
समाज पर नकारात्मक प्रभाव
जब पत्रकारिता की विश्वसनीयता खतरे में होती है, तो इसका सीधा असर समाज पर होता है। लोग गलत जानकारी के आधार पर निर्णय लेने लगते हैं, जिससे सामजिक ताने-बाने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब वास्तविक मुद्दे और तथ्य दरकिनार होते हैं, तो जनता को उन समस्याओं का सही समाधान नहीं मिल पाता जिनसे वह जूझ रही होती है।
आज की पत्रकारिता में जो अराजकता और भौकाल देखा जा रहा है, उसने इस पेशे को एक कठिन मोड़ पर ला दिया है। पत्रकारिता में बदलाव लाने के लिए आवश्यक है कि पेशे में फिर से एक नैतिक ढांचा और जिम्मेदारी की भावना लाई जाए। पत्रकारों को यह समझना चाहिए कि उनकी जिम्मेदारी केवल समाचार देने की नहीं है, बल्कि जनता को सच से रूबरू कराना है।
भौकाल वाली पत्रकारिता को रोकने और पत्रकारिता की गरिमा और विश्वसनीयता को पुनः स्थापित करने के लिए कुछ ठोस उपाय किए जा सकते हैं:
प्रशिक्षण और शैक्षिक योग्यता पर जोर
पत्रकारिता में आने वालों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और पत्रकारिता का औपचारिक प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए। इससे पेशेवर और प्रशिक्षित पत्रकारों की संख्या बढ़ेगी जो इस पेशे को गंभीरता से लेते हैं।
सख्त मीडिया नियामक कानून
मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए सख्त नियम और कानून बनाने की जरूरत है। इससे फेक न्यूज़, भ्रामक जानकारी और अनैतिक पत्रकारिता पर रोक लगेगी।
नियामक निकायों को सक्रिय रूप से इन मामलों की निगरानी करनी चाहिए और उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।
समाचार संस्थानों की जिम्मेदारी बढ़ाना
समाचार संस्थानों को अपनी संपादकीय नीति को मजबूत बनाना चाहिए और अपने पत्रकारों के काम की गुणवत्ता पर नजर रखनी चाहिए। अनियंत्रित रिपोर्टिंग से बचने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश और अनुशासनात्मक उपाय लागू करने चाहिए।
तथ्य-जांच (फैक्ट-चेकिंग) को अनिवार्य बनाना
हर खबर को प्रसारित करने से पहले तथ्य-जांच (फैक्ट-चेकिंग) अनिवार्य होनी चाहिए। इससे अफवाहों और गलत सूचनाओं के प्रसार पर रोक लगेगी और जनता तक केवल सत्य और सटीक जानकारी पहुंच पाएगी।
नैतिकता और जिम्मेदारी पर जोर
पत्रकारों के लिए एक मजबूत नैतिक संहिता का पालन आवश्यक होना चाहिए। उन्हें पत्रकारिता के मूल्यों—सत्यता, निष्पक्षता, और जिम्मेदारी—का पालन करना चाहिए। इस संहिता का उल्लंघन करने वाले पत्रकारों पर दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर नियंत्रण
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, प्लेटफार्मों पर पोस्ट की गई खबरों और जानकारी की निगरानी और नियंत्रण जरूरी है। प्लैटफॉर्म्स को फेक न्यूज़ या सनसनीखेज कंटेंट को हटाने और ऐसे अकाउंट्स पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत है जो गलत सूचनाओं का प्रसार करते हैं।
पत्रकारिता में गुणवत्ता के मानक स्थापित करना
पत्रकारिता के लिए गुणवत्ता के मानक निर्धारित किए जाएं, जिससे केवल उन पत्रकारों को मान्यता मिले जो इन मानकों को पूरा करते हैं। यह भौकाल बनाने वाले लोगों और पेशेवर पत्रकारों के बीच एक स्पष्ट अंतर स्थापित करेगा।
प्रोत्साहन योजनाएँ
सरकार और प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान उत्कृष्ट पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार और प्रोत्साहन योजनाएँ बना सकते हैं। इससे पत्रकारिता में गुणवत्ता और नैतिकता को बढ़ावा मिलेगा।
पब्लिक अवेयरनेस और मीडिया साक्षरता
जनता को भी मीडिया साक्षरता (media literacy) की ओर बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि लोग सनसनीखेज और फेक न्यूज़ को पहचान सकें और केवल विश्वसनीय स्रोतों पर भरोसा करें।
स्वतंत्र और पारदर्शी पत्रकारिता संगठनों का समर्थन
स्वतंत्र और पारदर्शी पत्रकारिता को बढ़ावा देने वाले संगठनों को आर्थिक और सामाजिक समर्थन प्रदान किया जाना चाहिए, ताकि वे उच्च गुणवत्ता वाली रिपोर्टिंग कर सकें और मीडिया में फैली अराजकता का मुकाबला कर सकें।
इन उपायों के माध्यम से पत्रकारिता के पेशे में गरिमा और विश्वसनीयता को वापस लाया जा सकता है, और भौकाल वाली पत्रकारिता पर रोक लगाई जा सकती है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."