इरफान अली लारी और संजय वर्मा की रिपोर्ट
नेपाल बस हादसा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के लिए भी दुखद खबर लेकर आया। लोगों को अपने चहेते मुस्तफा चाचा के अंतिम दर्शनों का बेसब्री से इंतजार था।
पोखरा से काठमांडू जाते समय जो बस खाई में गिरी थी, उसे गोरखपुर के पिपराइच स्थित तुरवां गांव के मुस्तफा चला रहे थे।
शनिवार की देर रात 11:15 पर जब उनका शव गांव पहुंचा तो स्वजन सहित आसपास के गांव के लोग रो पड़े। इस दौरान वहां मौजूद हर सख्स की आंखें नम थी।
मुस्तफा बेहद शालीन और हंसमुख व्यवहार के थे, उनके जाने का गम परिवार सहित पूरे गांव के लोगों को है। भगवानपुर टोला में मुस्लिम परिवारों की कुल संख्या 25 के आसपास है, लेकिन मुस्तफा का परिवार इन सभी में एक अलग स्थान रखता था। जैसे ही शव उनके गांव की दहलीज पर पहुंचा, अंतिम दर्शन करने वालों का तांता लग गया। लोग कतारों में इस तरह खड़े हुए थे, जैसे किसी बहुत बड़े व्यक्ति का जनाजा जा रहा हो।
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बेटी और पत्नी से किया वादा नहीं कर पाए पूरा
मुस्तफा उर्फ मुर्तुजा के बड़े बेटे इब्राहिम के मुताबिक शुक्रवार को हादसे की खबर मिलते ही घर पर ग्रामीणों का हुजूम इकट्ठा होना शुरू हो गया था। हादसे की सूचना मिलते ही मैं मौका पर पहुंचा था। घर से लगातार कई लोगों का फोन आ रहा था, लोग पल-पल की जानकारी ले रहे थे।
पोस्टमार्टम होने के बाद शनिवार की शाम 4 बजे तक नेपाल से गोरखपुर शव लेकर पहुंचने की सूचना के बाद से सभी रिश्तेदार और गांव के लोग घर पर जमा होना शुरू हो गए थे।
इब्राहिम ने बताया कि मेरी मां बेहद बीमार रहती है। पिताजी ने वादा किया था कि नेपाल से लौटने के बाद उनका किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज कराऊंगा, लेकिन ऊपर वाले की मर्जी के आगे किसी का बस नहीं चलता।
दो बहने हसीना और सकीना का धूमधाम से निकाह करने का उनका सपना भी अधूरा रह गया। अब मालिक को जो मंजूर था, वह हो गया। सभी जिम्मेदारियां और उनकी इच्छाएं मुझे पूरी करनी है। केसरवानी परिवार के सेठ विष्णु जी का पूरे परिवार पर अटूट विश्वास था। पिताजी वहां पिछले कई सालों से नौकरी कर रहे थे।
पत्नी का रो रोकर बुरा हाल
वहीं उनकी बीमार पत्नी मजलूनिशा दहाड़े मार कर रो रही थी और बार-बार कह रही थीं कि अभी कल ही तो फोन पर बात की थी।
उन्होंने कहा था, जल्द आऊंगा, और नेपाल से लौटते ही, तुम्हारा किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज कराऊंगा। अब क्या होगा इब्राहिम के अब्बू? कौन कराएगा मेरा अच्छे डॉक्टर से इलाज। यह सुनकर वहां मौजूद सभी का कलेजा फट जा रहा था। मुर्तजा के बड़े भाई इम्तियाज अली का कहना था कि भैया बड़े शांत और शालीन व्यवहार के मालिक थे।
गांव में लोग उनकी बहुत इज्जत करते थे, इतने सालों में उनका किसी से कोई विवाद नहीं था। केसरवानी परिवार का हर सदस्य उन्हें अपना समझता था, उनकी मौत के बाद हम सभी को लगता है कि हमारा एक अभिभावक खो गया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."